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वन अमले पर पथराव, जान बचाकर भागी टीम: श्योपुर में अतिक्रमण हटाने पहुंची टीम पर आदिवासियों का हमला; डिप्टी रेंजर समेत 4 घायल – Sheopur News


आदिवासियों के हमले के बाद टीम को जान बचाकर वहां से भागना पड़ा।

श्योपुर में वनभूमि से अतिक्रमण हटाने पहुंची पुलिस और वन विभाग की टीम पर आदिवासियों ने पथराव कर दिया। जेसीबी समेत कई सरकारी वाहनों में तोड़फोड़ भी की। हमले में चार वनकर्मी घायल हो गए। टीम को जान बचाकर वहां से भागना पड़ा।

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घटना शनिवार दोपहर को मोरका गांव की है। हमले में डिप्टी रेंजर गणपत आदिवासी के अलावा तीन वनकर्मी मनोज कुमार आदिवासी, वीतेंद्र सिंह राजपूत और धीरज सक्सेना को चोट लगी है। उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती कराया है।

रेंजर पवन कुमार शर्मा की रिपोर्ट पर डुम्मा आदिवासी, गुरुदयाल आदिवासी, पवन और रामविलास के साथ ही 30-40 अज्ञात के खिलाफ रघुनाथपुर थाना पुलिस ने FIR दर्ज कर ली है।

घटनास्थल की तस्वीरें

वन विभाग की जमीन पर कब्जा हटवाने प्रशासनिक टीम पहुंची थी।

पुलिस और वन विभाग की संयुक्त टीम कार्रवाई करने पहुंची थी।

आदिवासियों ने अमले पर पथराव किया। कई सरकारी वाहन के शीशे टूट गए।

500 बीघा वनभूमि पर अवैध कब्जा दरअसल, टर्रा-ओछापुरा रोड स्थित वन क्षेत्र में करीब 500 बीघा वनभूमि की जमीन पर अवैध कब्जा था। इसे ही हटाने वन विभाग की टीम पहुंची थी। वहां पहले से ही बड़ी संख्या में ग्रामीण मौजूद थे। टीम के पहुंचते ही महिलाओं ने विरोध शुरू कर दिया।

विरोध के दौरान ग्रामीणों ने एक झोपड़ी में आग लगा दी। हालांकि वन विभाग का कहना है कि कार्रवाई रुकवाने के लिए ग्रामीणों ने जानबूझकर झोपड़ी में आग लगाई। वहीं ग्रामीणों का आरोप है कि आग प्रशासनिक टीम ने लगाई, जिसमें उनका घरेलू सामान था।

डीएफओ ने कहा- पहले से हमले की थी योजना डीएफओ सामान्य वनमंडल श्योपुर केएस रंधा ने कहा कि सामान्य वनमंडल कि जमीन पर अतिक्रमण हटाने गए थे। फारेस्ट और पुलिस की संयुक्त टीम भी मौजूद थी। अतिक्रमणकारी पहले से हमले कि योजना बनाकर बैठे थे। रघुनाथपुर थाने में आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज करवाया है।

एसडीओ ने कहा-तीन साल से किया था कब्जा एसडीओ इंदर सिंह धाकड़ ने बताया कि पिछले तीन साल से ग्रामीण वन विभाग की जमीन पर कब्जा कर झोपड़ी बना रहे थे। जिन्हें पिछले साल प्रशासन ने हटवाया था। इसके बावजूद उन्होंने दोबारा झोपड़ी बना ली। इसे लेकर 2 महीने पहले उन्हें नोटिस दिया गया था। लेकिन ग्रामीणों ने जमीन को खाली नहीं किया था।



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