चंबल नदी में मगरमच्छ और घड़ियालों की संख्या बढ़ी।
चंबल नदी में मगरमच्छ और घड़ियालों का प्राकृतिक आवास बदल रहा है। पिछले दस वर्षों में जलवायु परिवर्तन का असर इन जलजीवों के प्रजनन काल पर स्पष्ट दिखाई दे रहा है। पहले अप्रैल में अंडे देने वाले मगरमच्छ और घड़ियाल अब मार्च के पहले सप्ताह से ही प्रजनन शुरू
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मगरमच्छ और घड़ियालों का एक साथ संरक्षण
बता दें कि, मुरैना स्थित देवरी घड़ियाल सेंचुरी न केवल देश, बल्कि दुनिया में संरक्षण केंद्र है। यहां मगरमच्छ और घड़ियाल दोनों का संरक्षण एक साथ किया जा रहा है। हर साल यहां की स्टडी रिपोर्ट तैयार कर केंद्र सरकार को भेजी जाती है।
ताजा आंकड़ों के मुताबिक सेंचुरी में इस समय घड़ियालों की संख्या 2462 और मगरमच्छों की संख्या 1072 है। इन सभी पर ट्रांसमीटर लगाए गए हैं और उनकी निगरानी विशेषज्ञों की टीम कर रही है।
चंबल नदी में में 2,462 घड़ियाल और 1,072 मगरमच्छ हैं।
जलवायु परिवर्तन ने बदला प्रजनन चक्र
देवरी घड़ियाल सेंचुरी की प्रभारी ज्योति दंडोतिया ने बताया कि पिछले दस सालों में जलवायु परिवर्तन के कारण घड़ियाल और मगरमच्छों का प्रजनन काल बदल गया है। अब 10-12 मार्च से अंडे देने का सिलसिला शुरू हो जाता है, जो अप्रैल तक चलता है। मई-जून में हेचरी से बच्चे निकलने लगते हैं।
ढाई सौ किलोमीटर बहाव में जाने के बाद भी लौट आते हैं घड़ियाल
चंबल के जलजीवों की सबसे दिलचस्प बात यह है कि बाढ़ या पानी के तेज बहाव में घड़ियाल 250 किलोमीटर तक बहकर चले जाते हैं, लेकिन पानी शांत होने पर अपनी पुरानी कॉलोनी में लौट आते हैं। ट्रांसमीटर के जरिए हुई स्टडी रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है।
बारिश के दौरान तेज बहाव में छोटे मगर और घड़ियालों की मौत भी हो जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि मगरमच्छ की तुलना में घड़ियाल ज्यादा संवेदनशील और नाजुक होते हैं, इसलिए दुनियाभर में इनकी संख्या तेजी से घट रही है
अटेर किले की गुंबद पर घड़ियाल का प्रतीक चिन्ह आज भी मौजूद है।
घड़ियालों का ऐतिहासिक महत्व रहा है
इतिहास में भी चंबल के मगर और घड़ियालों का जिक्र मिलता है। स्थानीय लोगोंं के अनुसार, भदावर राजा के राज्य में इन जलीय जीवों के कारण सुरक्षा अभेद्य थी। दुश्मन नदी के उत्तरी छोर से राज्य पर हमला नहीं कर पाते थे, क्योंकि नदी में मौजूद खतरनाक मगरमच्छ और घड़ियाल किसी भी हमलावर को मौत के घाट उतार देते थे।
इन्हीं कारणों से भदावर राज्य में किलों की गुंबदों और दीवारों पर मगर-घड़ियालों के प्रतीक चिन्ह अंकित कराए गए थे। आज भी चंबल नदी के मगर और घड़ियाल प्राकृतिक प्रहरी की भूमिका निभा रहे हैं।