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Akal Takht Sahib: श्री अकाल तख्त साहिब का स्थापना दिवस सिख इतिहास में धार्मिक स्वतंत्रता, न्याय, और आत्म-सम्मान की आधारशिला माना जाता है. यह दिन केवल एक स्मृति नहीं, बल्कि साहस, सेवा और सत्य के मार्ग पर चलने की…और पढ़ें
हाइलाइट्स
- श्री अकाल तख्त साहिब का स्थापना दिवस मनाया गया.
- गुरु हरगोबिंद साहिबजी ने 1606 में अकाल तख्त की स्थापना की.
- अकाल तख्त सिखों के लिए न्याय, स्वाभिमान और एकता का केंद्र है.
श्री अकाल तख्त साहिब का स्थापना दिवस आज दुनिया भर के सिख समुदाय ने श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया. इस पवित्र दिन पर हजारों श्रद्धालुओं ने अकाल तख्त साहिब में मत्था टेका. विशेष गुरमत समारोह आयोजित किए गए, जिसमें अखंड पाठ साहिब का भोग डाला गया. छठे सिख गुरु श्री गुरु हरगोबिंद साहिबजी ने इसकी स्थापना की थी. यह तख्त श्री हरिमंदिर साहिब (गोल्डन टेंपन) के ठीक सामने, अमृतसर में स्थित है. गुरु हरगोबिंद साहिबजी ने इसे मिरी-पिरी का प्रतीक बनाया यानी आध्यात्मिक और सांसारिक सत्ता का संतुलन. जत्थेदार अकाल तख्त साहिब ज्ञानी कुलदीप सिंह गर्गज ने विश्व भर के सिखों को इस अवसर पर बधाई दी.
जत्थेदार ने बताया कि अकाल तख्त साहिब केवल एक इमारत नहीं, बल्कि सिखों का एक उच्च और पवित्र सिद्धांत है. उन्होंने युवा पीढ़ी से इसकी अवधारणा और इतिहास को समझने की अपील की. जब तक हम सिख सिद्धांतों, परंपराओं और शिष्टाचार को नहीं समझेंगे, हम अपने धर्म को पूरी तरह नहीं जान सकते. अकाल तख्त साहिब के इतिहास पर कई किताबें उपलब्ध हैं, जिन्हें पढ़ना चाहिए. सतगुरु सच्चे बादशाह ने हमें अश्लील गीतों और नकारात्मकता से दूर रहने का उपदेश दिया है. सिख, हिंदू, मुस्लिम और सभी समुदायों के युवाओं को ऐसी चीजों से बचना चाहिए. एकता से हम धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत होंगे. यह शांतिपूर्ण मार्ग हमें गुरु नानक देवजी के दिखाए रास्ते पर ले जाएगा.
हरगोबिंद साहिबजी ने की थी स्थापना
बता दें कि आज (16 जून) श्री अकाल तख्त साहिब का स्थापना दिवस मनाया जाता है. यह सिख धर्म का सर्वोच्च अस्थायी (टेम्पोरल) प्राधिकरण स्थल है, जिसकी स्थापना 1606 को छठे सिख गुरु, श्री गुरु हरगोबिंद साहिबजी ने अमृतसर के गोल्डन टेंपल परिसर में की थी. इसे मूल रूप से ‘अकाल बुंगा’ के नाम से जाना जाता था. गुरुजी ने इसे न्याय और सिख समुदाय के सांसारिक मामलों के समाधान के लिए बनाया, जो मिरी (राजनीतिक शक्ति) और पीरी (आध्यात्मिक शक्ति) का प्रतीक है.
तेग और धर्म दोनों का दिया था उपदेश
इसकी नींव गुरु हरगोबिंद जी, भाई गुरदासजी और बाबा बुद्धाजी ने मिलकर रखी थी. यह 12 फीट ऊंचा मंच मुगल सम्राट जहांगीर के आदेशों का उल्लंघन करता था, जो सिखों की संप्रभुता का प्रतीक था. आज भी अकाल तख्त सिखों के लिए न्याय, स्वाभिमान और एकता का केंद्र है. यह पांच सिख तख्तों में से सर्वप्रथम और सर्वोच्च माना जाता है. आज भी अकाल तख्त से सिख धर्म से जुड़े धार्मिक फैसले जारी किए जाते हैं. गुरु हरगोबिंद साहिबजी ने अकाल तख्त पर बैठकर तेग और धर्म दोनों का उपदेश दिया था. यहीं से पहली बार सिखों के लिए शस्त्र धारण करना और सैन्य प्रशिक्षण लेना अनिवार्य हुआ, एक संत और सिपाही की परंपरा इसी तख्त से आरंभ हुई थी.
मैं धार्मिक विषय, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष उपाय पर 8 साल से भी अधिक समय से काम कर रहा हूं। वेद पुराण, वैदिक ज्योतिष, मेदनी ज्योतिष, राशिफल, टैरो और आर्थिक करियर राशिफल पर गहराई से अध्ययन किया है और अपने ज्ञान से प…और पढ़ें
मैं धार्मिक विषय, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष उपाय पर 8 साल से भी अधिक समय से काम कर रहा हूं। वेद पुराण, वैदिक ज्योतिष, मेदनी ज्योतिष, राशिफल, टैरो और आर्थिक करियर राशिफल पर गहराई से अध्ययन किया है और अपने ज्ञान से प… और पढ़ें