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स्टारलिंक को सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस के लिए ऑपरेटिंग लाइसेंस मिला: अब सिर्फ IN-SPACe की मंजूरी का इंतजार, ₹840 में अनलिमिटेड डेटा मिलेगा


नई दिल्ली7 मिनट पहले

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इलॉन मस्क की स्टारलिंक को सैटेलाइट इंटरनेट प्रोजेक्ट के लिए टेलीकॉम मिनिस्ट्री से ऑपरेटिंग लाइसेंस मिल गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ये लाइसेंस ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्यूनिकेशन बाय सैटेलाइट (GMPCS) है, जो भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस शुरू करने के लिए जरुरी होता है।

यानी, स्टारलिंक ने अब भारत में कमर्शियल सर्विस शुरू करने के लिए एक और कदम बढ़ा दिया है। अब उसे सिर्फ इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड ऑर्थराइजेशन सेंटर (IN-SPACe) से फाइनल अप्रूवल और स्पेक्ट्रम आवंटन का इंतजार है। उसे डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशन (DoT) से पहले ही लेटर ऑफ इंटेंट (LOI) मिल चुका है।

वनवेब और जियो को मिल चुका है यह लाइसेंस स्टारलिंक तीसरी कंपनी है, जिसे ये लाइसेंस मिला है। इससे पहले यूटेलसैट वनवेब (Eutelsat OneWeb) और रिलायंस जियो को भी ये लाइसेंस मिल चुका है। ये भारतीय टेलीकॉम मार्केट में जियो और एयरटेल जैसी कंपनियों को टक्कर देगी। स्टारलिंक की सर्विस खासतौर पर उन इलाकों के लिए फायदेमंद होगी जहाँ फाइबर या मोबाइल नेटवर्क नहीं पहुंचता।

भारत में ₹840 में अनलिमिटेड डेटा देगा स्टारलिंक द इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, स्पेसएक्स भारत में अपनी स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट सर्विसेज मंथली 10 डॉलर यानी लगभग 840 रुपए से कम कीमत वाले शुरुआती प्रमोशनल अनलिमिटेड डेटा प्लान से शुरू करेगा।

स्टारलिंक समेत सैटेलाइट कम्यूनिकेशंस कंपनियों का टारगेट अपने यूजर बेस को तेजी से बढ़ाना है। यह मिड-टू-लॉन्ग टर्म में 10 मिलियन यानी 1 करोड़ कस्मटर तक पहुंच सकता है। इससे कंपनियों को भारी स्पेक्ट्रम कॉस्ट की भरपाई करने में मदद मिलेगी।

स्पेक्ट्रम महंगा, लेकिन स्टारलिंक को दिक्कत नहीं

टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (Trai) ने सैटेलाइट कम्यूनिकेशंस कंपनियों से शहरी यूजर्स के लिए मंथली चार्ज ₹500 रखने की सिफारिश की है। जिससे सैटेलाइट कम्यूनिकेशंस स्पेक्ट्रम ट्रेडिशनल टेरेस्टेरियल सर्विसेज की तुलना में ज्यादा महंगा हो जाता है।

रिपोर्ट्स के अनुसार, एक्सपर्ट्स का मानना ​​है कि प्रीमियम प्राइसिंग के चलते स्टारलिंक जैसी फाइनेंशियली स्ट्रांग कंपनियों को भारत के शहरी मार्केट में दूसरी कंपनियों के साथ कॉम्पिटिशन करने में कोई दिक्कत नहीं होगी।

रेवेन्यू शेयर और लाइसेंस फीस वसूलता है ट्राई

ट्राई की सिफारिशों में एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) पर 4% फीस और प्रति मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम पर मिनिमम 3,500 रुपए एनुअल फीस शामिल है। इसके अलावा सैटेलाइट कम्युनिकेशन प्रोवाइडर्स को कॉमर्शियल सर्विसेज देने के लिए 8 लाइसेंस फीस देनी होगी।

सभी प्रपोजल को लागू करने से पहले सरकार के आखिरी अप्रूवल का इंतजार है। इन प्राइस पॉइंट्स के बावजूद एक्सपर्ट्स का मानना है कि लिमिटेड सैटेलाइट कैपेसिटी भारतीय यूजर बेस के तेजी से बढ़ने की क्षमता को कम कर सकती है।

कंपनियों के लिए कैपेसिटी एक चुनौती साबित होगी

IIFL रिसर्च के अनुसार, स्टारलिंक की 7,000 सैटेलाइट का मौजूदा ग्रुप ग्लोबल लेवल पर लगभग 4 मिलियन यूजर्स को सर्विस प्रोवाइड करता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर 18,000 सैटेलाइट्स हों, तो भी स्टारलिंक वित्त-वर्ष 2030 तक सिर्फ 1.5 मिलियन भारतीय कस्टमर्स को ही सर्विसेज प्रोवाइड करने में सक्षम होगा।

IIFL रिसर्च ने कहा था, ‘कस्टमर की संख्या बढ़ाने के मामले में कैपेसिटी यानी क्षमता की कमी एक चुनौती साबित हो सकती है। यह ग्राहक को जोड़ने के लिए कम कीमत के टूल्स की इफेक्टिवनेस को भी कम कर सकता है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि स्टारलिंक ने पहले भी अमेरिका और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में इसी तरह की कैपेसिटी लिमिट्स के कारण ग्राहकों को जोड़ना बंद कर दिया था।’

सैटेलाइट इंटरनेट भारत में होम ब्रॉडबैंड की तुलना में महंगा

IIFL के एनालिसिस में कहा गया था कि किसी भी समय भारत को कवर करने वाली सैटेलाइट्स की हिस्सेदारी टोटल ग्लोबल सैटेलाइट काउंट का सिर्फ 0.7-0.8% होगी, जो मोटे तौर पर देश के टोटल लैंड एरिया के प्रोपोर्शनल है।

वर्तमान में सैटेलाइट-बेस्ड ब्रॉडबैंड भारत में ट्रेडिशनल होम ब्रॉडबैंड सर्विसेज की तुलना में काफी महंगा है। JM फाइनेंशियल ने बताया कि सैटकॉम ब्रॉडबैंड की लागत स्टैंडर्ड होम इंटरनेट प्लान्स की तुलना में 7 से 18 गुना ज्यादा है।

स्टारलिंक को IN-SPACe की मंजूरी का इंतजार

सैटेलाइट कम्युनिकेशन सर्विसेज के लिए डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशन की मंजूरी के बाद स्टारलिंक को अब भारत में सर्विसेज शुरू करने के लिए IN-SPACe से अप्रूवल मिलने का इंतजार है। इससे पहले यूटेलसैट वनवेब और जियो सैटेलाइट कम्युनिकेशंस ने 2021 और 2022 में इसी तरह के लाइसेंस हासिल किए थे, लेकिन IN-SPACe की मंजूरी के लिए लगभग दो साल इंतजार किया था।

डिपार्टमेंट ऑफ स्पेस ने जून 2020 में IN-SPACe को स्थापित किया था। यह स्पेस एक्टिविटीज में प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी को रेगुलेट करने और उसे सुविधाजनक बनाने के लिए सिंगल-विंडो एजेंसी के रूप में काम करती है। IN-SPACe नॉन-गवर्नमेंटल एंटिटीज के लिए लाइसेंसिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर शेयरिंग और स्पेस बेस्ड स‌र्विसेज को बढ़ावा देने का काम भी करती है।

सैटेलाइट्स से आप तक कैसे पहुंचेगा इंटरनेट?

  • सैटेलाइट धरती के किसी भी हिस्से से बीम इंटरनेट कवरेज को संभव बनाती है। सैटेलाइट के नेटवर्क से यूजर्स को हाई-स्पीड, लो-लेटेंसी इंटरनेट कवरेज मिलता है। लेटेंसी का मतलब उस समय से होता है जो डेटा को एक पॉइंट से दूसरे तक पहुंचाने में लगता है।
  • स्टारलिंक किट में स्टारलिंक डिश, एक वाई-फाई राउटर, पॉवर सप्लाई केबल्स और माउंटिंग ट्राइपॉड होता है। हाई-स्पीड इंटरनेट के लिए डिश को खुले आसमान के नीचे रखना होगा। iOS और एंड्रॉइड पर स्टारलिंक का ऐप मौजूद है, जो सेटअप से लेकर मॉनिटरिंग करता है।

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