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स्टालिन ने गैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मांगा सपोर्ट: लेटर लिखकर कहा- सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति के संदर्भ का विरोध करें


चेन्नई5 मिनट पहले

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स्टालिन ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने राष्ट्रपति को सुप्रीम कोर्ट से संदर्भ लेने की सलाह दी और यह एक चाल थी।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने रविवार को पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, केरल, झारखंड, पंजाब और जम्मू-कश्मीर के 8 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चिट्‌ठी लिखी। जिसमें उन्होंने राष्ट्रपति के सुप्रीम कोर्ट से मांगे गए संदर्भ का विरोध करने की अपील की है।

स्टालिन ने लिखा- हम सभी जानते हैं कि जब किसी मुद्दे पर कोर्ट के आधिकारिक फैसले से पहले ही फैसला लिया जा चुका हो, तब सुप्रीम कोर्ट के सलाहकार क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। फिर भी, भाजपा सरकार ने राष्ट्रपति पर संदर्भ मांगने के लिए जोर दिया है, जो उनके भयानक इरादे बताता है।

दरअसल राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के प्रेसिडेंट और गवर्नर के लिए डेडलाइन तय करने पर सवाल उठाए थे। उन्होंने केंद्र सरकार की सलाह पर 13 मई 2025 को संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे।

एक वीडियो में राष्ट्रपति ने कहा था कि संविधान में इस तरह की कोई व्यवस्था ही नहीं है, तो सुप्रीम कोर्ट कैसे राष्ट्रपति-राज्यपाल के लिए बिलों पर मंजूरी की समयसीमा तय करने का फैसला दे सकता है।

ये मामला तमिलनाडु गवर्नर और राज्य सरकार के बीच हुए विवाद से उठा था। जहां गवर्नर से राज्य सरकार के बिल रोककर रखे थे। सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को आदेश दिया कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है।

CM स्टालिन की चिट्‌ठी में क्या है…

CM स्टालिन ने 8 मुख्यमंत्रियों को 17 मई को चिट्‌ठी भेजी। इसमें उन्होंने कहा- “हमें कोर्ट के समक्ष एक समन्वित कानूनी रणनीति बनानी चाहिए। संविधान के मूल ढांचे को संरक्षित और सुरक्षित रखने के लिए एक संयुक्त मोर्चा पेश करना चाहिए। जैसा कि हमारे सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले (तमिलनाडु राज्य बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल) में बरकरार रखा है। मैं इस मुद्दे में आपके तत्काल और व्यक्तिगत हस्तक्षेप की आशा करता हूं।”

गवर्नर की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर सुप्रीम कोर्ट के 4 पॉइंट्स

1. बिल पर फैसला लेना होगा: सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 201 कहता है कि जब विधानसभा किसी बिल को पास कर दे। उसे राज्यपाल के पास भेजा जाए और राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेज दे। इस स्थिति में राष्ट्रपति को बिल पर मंजूरी देनी होगी या फिर बताना होगा कि मंजूरी नहीं दे रहे हैं।

2. ज्यूडिशियल रिव्यू होगा: सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आर्टिकल 201 के तहत राष्ट्रपति का निर्णय की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है। अगर बिल में केंद्र सरकार के निर्णय को प्राथमिकता दी गई हो, तो कोर्ट मनमानी या दुर्भावना के आधार पर बिल की समीक्षा करेगा।

अदालत ने कहा कि बिल में राज्य की कैबिनेट को प्राथमिकता दी गई हो और राज्यपाल ने विधेयक को मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के विपरीत जाकर फैसला किया हो तो कोर्ट के पास बिल की कानूनी रूप से जांच करने का अधिकार होगा।

3. राज्य सरकार को राज्यपाल को कारण बताने होंगे: सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब कोई समय-सीमा तय हो, तो वाजिब टाइम लाइन के भीतर फैसला करना चाहिए। राष्ट्रपति को बिल मिलने के 3 महीने के भीतर फैसला लेना अनिवार्य होगा। यदि देरी होती है, तो देरी के कारण बताने होंगे।

4. बिल बार-बार वापस नहीं भेज सकते: अदालत ने कहा कि राष्ट्रपति किसी बिल को राज्य विधानसभा को संशोधन या पुनर्विचार के लिए वापस भेजते हैं। विधानसभा उसे फिर से पास करती है, तो राष्ट्रपति को उस बिल पर फाइनल डिसीजन लेना होगा और बार-बार बिल को लौटाने की प्रक्रिया रोकनी होगी।

विवाद पर अब तक क्या हुआ…

17 अप्रैल: धनखड़ बोले- अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ 17 अप्रैल को राज्यसभा इंटर्न के एक ग्रुप को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की उस सलाह पर आपत्ति जताई, जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने की समय सीमा तय की थी।

धनखड़ ने कहा था- “अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत कोर्ट को मिला विशेष अधिकार लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24×7 उपलब्ध न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है। जज सुपर पार्लियामेंट की तरह काम कर रहे हैं।” पूरी खबर पढ़ें…

18 अप्रैल: सिब्बल बोले- भारत में राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया

राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कि जब कार्यपालिका काम नहीं करेगी तो न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना ही पड़ेगा। भारत में राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया है। राष्ट्रपति-राज्यपाल को सरकारों की सलाह पर काम करना होता है। मैं उपराष्ट्रपति की बात सुनकर हैरान हूं, दुखी भी हूं। उन्हें किसी पार्टी की तरफदारी करने वाली बात नहीं करनी चाहिए।’

सिब्बल ने 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का जिक्र करते हुए कहा- ‘लोगों को याद होगा जब इंदिरा गांधी के चुनाव को लेकर फैसला आया था, तब केवल एक जज, जस्टिस कृष्ण अय्यर ने फैसला सुनाया था। उस वक्त इंदिरा को सांसदी गंवानी पड़ी थी। तब धनखड़ जी को यह मंजूर था। लेकिन अब सरकार के खिलाफ दो जजों की बेंच के फैसले पर सवाल उठाए जा रहे हैं।’ पूरी खबर पढ़ें…

8 अप्रैल: विवाद सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से शुरू हुआ

सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को तमिलनाडु गवर्नर और राज्य सरकार के केस में गवर्नर के अधिकार की सीमा तय कर दी थी। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा था, ‘राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है।’ सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के 10 जरूरी बिलों को राज्यपाल की ओर से रोके जाने को अवैध भी बताया था।

इसी फैसले के दौरान अदालत ने राज्यपालों की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर भी स्थिति स्पष्ट की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल की तरफ से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा। यह ऑर्डर 11 अप्रैल को सार्वजनिक किया गया। पूरी खबर पढ़ें…

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