प्रतापगढ़ से सिक्किम हनीमून पर गए कौशलेंद्र सिंह और अंकिता का 15 दिन बाद भी कुछ पता नहीं चल सका है। उन्हें खोजने के लिए यहां से गया परिवार निराश होकर लौट आया है। अब गांव के ही मंदिर पर महामृत्युंजय जाप कर रहे हैं। एनडीआरएफ और सिक्किम प्रशासन रेस्क्यू
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11 दिन तक परिवार के 6 लोग सिक्किम में रहे। घटनास्थल तक गए। एक समय ऐसी स्थिति आ गई कि खुद ही रेस्क्यू के लिए रस्सी बांधकर नीचे जाने लगे। आखिर यह स्थिति क्यों आई? क्यों कह रहे कि यूपी सरकार की तरफ से सहयोग नहीं मिला? क्यों लगता है कि बेटा-बहू वापस आएंगे? रेस्क्यू कैसे चल रहा? इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने हम प्रतापगढ़ में पीड़ित परिवार से मिलने पहुंचे।
कौशलेंद्र और अंकिता की यह तस्वीर 26 मई की है। दोनों गंगटोक पहुंचे थे।
30 मई को पता चला बेटा-बहू लापता प्रतापगढ़ जिले के राहाटीकर गांव की मंदिर में 11 जून से महामृत्युंजय जाप हो रहा है। शेर बहादुर सिंह के बेटे कौशलेंद्र सिंह की शादी 5 मई को अंकिता सिंह से हुई थी। 25 मई को दोनों हनीमून पर सिक्किम गए। 29 मई की रात 8 बजे से लापता हो गए। जिस गाड़ी में बैठे थे, उसमें बैठे 6 और लोगों का भी कुछ पता नहीं चल रहा। उनके कुछ सामान 1 हजार फीट नीचे खाई में मिले हैं। कौशलेंद्र और अंकिता से जुड़ा कुछ भी नहीं मिला है।
शेर बहादुर सिंह और उनकी पत्नी बेटे-बहू की सलामत वापसी के लिए महामृत्युंजय जाप कर रहे हैं।
अंकिता सिंह ने 29 मई की रात 8 बजकर 5 मिनट पर अपनी मां को फोन किया था। 30 सेकेंड की नॉर्मल बातचीत हुई। 8 बजकर 7 मिनट पर एक साथ अंकिता और कौशलेंद्र का फोन बंद हो गया। परिवार के लोगों को लगा कि हो सकता है बैट्री डाउन हो गई हो। अगले दिन जिस गाड़ी से गए थे उस ट्रैवल्स ने फोन करके बताया कि गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई है। इसे सुनकर मानो कौशलेंद्र और अंकिता के परिवार के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। 30 मई की शाम 4 बजे 6 लोग सिक्किम के लिए गाड़ी से निकल गए। इसमें कौशलेंद्र के पिता, चाचा व अंकिता के भाई व चाचा शामिल थे।
72 घंटे बाद एनडीआरएफ पहुंची प्रतापगढ़ में हमारी मुलाकात कौशलेंद्र के चाचा दिनेश सिंह से हुई। भतीजे की तलाश में वह भी सिक्किम गए थे। दिनेश कहते हैं- 30 मई को 4 बजे निकलने के बाद हम 31 मई की सुबह 10 बजे सिक्किम के जलपाईगुड़ी पहुंच गए। यहीं रेलवे स्टेशन पर अपनी गाड़ी खड़ी कर दी और फिर ट्रैवलर के जरिए शाम को गंगटोक पहुंच गए।
उस दिन हम हॉस्पिटल में गए और जो दो घायल लड़के थे उनका हाल जाना। एक वेंटिलेटर पर था और दूसरा आईसीयू में। हमने आईसीयू वाले लड़के को भतीजे और बहू की तस्वीर दिखाई, उसने हां में सिर हिलाया। हमें लगा कि हो सकता है, अभी दिमाग स्थिर न हो इसलिए हम लोग चल दिए।
यही वो जगह है, जहां से गाड़ी 1000 फीट नीचे खाई में गिरी थी।
दिनेश कहते हैं- हम 1 जून को घटनास्थल पर जाने के लिए गंगटोक से निकले। घटनास्थल करीब 98 किलोमीटर दूर मंगन जिले के चुंगथांग इलाके में था। आगे बढ़े तो पता चला कि जिस तीस्ता नदी से होकर जाना है, उसका पुल टूट गया है। हमारी गाड़ी दूसरे रास्ते से घटनास्थल के लिए निकली, उस रास्ते पर लैंडस्लाइड हुआ था, इसलिए हमें वापस आना पड़ा। हमारी बात मंगन जिले के एसपी सोनम डेचू भूटिया से हुई। उन्होंने बताया कि मौसम खराब है, राहत और बचाव काम जारी है।
जिस वक्त यह हादसा हुआ था, उस वक्त सिक्किम के इस हिस्से में जोरदार बारिश हो रही थी। 2 दिन तक इतनी बारिश हुई कि तीस्ता नदी उफान पर आ गई। यहां तक पहुंचने के सारे रास्ते बंद हो गए। रेस्क्यू अभियान भी बंद करना पड़ा।
2 जून को पहली बार एनडीआरएफ उतरी दिनेश सिंह कहते हैं- 8 लोग लापता थे, लेकिन इसके बावजूद सिक्किम प्रशासन रेस्क्यू को लेकर बहुत गंभीर नहीं दिखाई दे रहा था। हम लोग 2 जून की सुबह डीजीपी अक्षय सचदेवा से मिले। उसके बाद एसपी से मिले। फिर हमें प्रशासन घटनास्थल पर लेकर गया। एनडीआरएफ ने सर्च अभियान शुरू किया। उन्हें जो कुछ भी मिलता, वह उसे हमें वीडियो कॉल के जरिए दिखाते और पूछते कि क्या यह आपका सामान है?
कौशलेंद्र के दूसरे चाचा प्रमोद सिंह भी सिक्किम गए थे। वह कहते हैं- जिस वक्त घटना घटी, उसके आधे घंटे बाद प्रशासन के हर व्यक्ति तक सूचना पहुंच गई। लेकिन, इसके बावजूद रेस्क्यू के लिए तेजी नहीं दिखाई गई। चुंगथाना के एसओ आए। उनके साथ मानवता के चलते आईटीबीपी के जवान लग गए। इन लोगों ने रेस्क्यू किया और सुबह करीब 4 बजे 150 फीट नीचे फंसे दो लड़कों को निकाला, जो गाड़ी के पीछे बैठे थे और किसी तरह से बाहर गिर गए।
खराब मौसम रेस्क्यू में चुनौती बना सिक्किम में पर्यटन के लिहाज से अक्टूबर से मार्च तक सबसे उचित माना जाता है। सिक्किम की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर ही निर्भर है। यही वजह है कि तय महीने से आगे भी पर्यटकों को भेजा जाता रहा। 25 मई को सिक्किम के मौसम विभाग ने हाई अलर्ट जारी किया था। भारी बारिश की आशंका जताई थी। इसके बावजूद पर्यटन विभाग लोगों को जीरो पॉइंट और कंचन जंघा तक जाने दे रहा था।
ये रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान की तस्वीर है। तीस्ता नदी में तेज बहाव के कारण अभियान पर असर पड़ा।
प्रमोद सिंह बताते हैं- 29 मई को एक्सीडेंट के तुरंत बाद लोकल प्रशासन ने रेस्क्यू शुरू किया। 150 फीट से नीचे नहीं जा सके। क्योंकि, तीस्ता नदी में पानी का बहाव बेहद तेज था। अगले 2 दिनों तक तेज बारिश हुई। 29 मई को जो गाड़ी नीचे नजर आ रही थी, वह अगले दो दिनों में तेज धार में बह गई। 2 जून को पहली बार एनडीआरएफ इसमें नीचे उतरी और सर्च अभियान शुरू किया। शुरुआत में घटना स्थल से 1 किलोमीटर के एरिया को चिह्नित किया।
खुद खाई में उतरने लगे परिवार के लोग प्रमोद सिंह बताते हैं- करीब 3 दिन तक रेस्क्यू अभियान चलने के बाद भी अंकिता और कौशलेंद्र का कुछ पता नहीं चल सका। कौशलेंद्र के पिता परेशान हो गए। वह रेस्क्यू टीम से खुद को नीचे भेजने की बात कहने लगे। उनके साथ अंकिता के चाचा भी तैयार हो गए, लेकिन एसडीएम ने रोका।
एनडीआरएफ की टीम को 3 दिन बाद ईयर फोन, चप्पल, जूते और कुछ बैग मिले। इसे हम लोगों को भेजा गया, लेकिन हमने कहा कि यह सब मेरा नहीं है। दो दिन के अंदर 6 फोन भी मिल गए, लेकिन इसमें कौशलेंद्र और अंकिता का कुछ भी नहीं था। टीम ने अपनी जांच का दायरा बढ़ा दिया। अब वह 5 किलोमीटर के एरिया में सर्च कर रहे थे। नदी के अंदर ऊंचे और बड़े पत्थर सबसे बड़ी चुनौती बन रहे थे। ऐसा था कि अगर इनके नीचे कुछ दब जाए, तो देखना कठिन हो जाएगा।
जिस जगह वाहन खाई में गिरा वहां बड़े-बड़े पत्थर हैं। इन पत्थरों के आस-पास भी तलाशा जा रहा है।
गांवों में अपनों को तलाशते रहे अंकिता के भाई सौरभ से हमने पूछा कि क्या आप लोग हर दिन घटनास्थल पर जाते थे? सौरभ कहते हैं- हम लोग घटनास्थल पर नहीं जाते थे। वहां जाना भी कठिन था। प्रशासन ने भी कहा कि यहां आने का कोई फायदा नहीं, हम आपको सर्च के फोटो-वीडियो भेजते रहेंगे। कुछ अगर मिलता है, तो उसे भेजकर पहचान करवाएंगे। हम सब ज्यादातर वक्त होटल में रहे या फिर संबंधित अधिकारियों से मिलते रहे।
सौरभ कहते हैं- हम वहां कौशलेंद्र और अंकिता को खोजने गए थे, इसलिए सारा फोकस हमारा इसी पर रहता था। तीस्ता नदी का बहाव जिधर है, हम लोग उधर के गांव में गए। नदी के दोनों तरफ 8 से 10 गांव हैं, हम लोग हर गांव में गए, हर घर में गए। उन लोगों को फोटो दिखाए, पूछा कि क्या ये लोग आपकी तरफ आए?
पिता ने सीएम योगी से हाथ जोड़कर की अपील 8 दिन बीत जाने के बाद भी जब कौशलेंद्र और अंकिता का कुछ पता नहीं चला, तो कौशलेंद्र के पिता शेर बहादुर सिंह ने एक वीडियो बनाया। उसमें उन्होंने हाथ जोड़कर यूपी के सीएम से अपील की कि सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग से बात करके राहत और बचाव कार्य में तेजी लाने को कहें। अभी तक जो कपड़े, जूते, घड़ी, चश्मा और बैग मिला है, उसमें कोई भी सामान मेरे बेटे-बहू का नहीं है। जब तक मेरा बेटा-बहू नहीं मिल जाते, तब तक हम सिक्किम से नहीं जाएंगे। सभी देशवासियों से अपील करता हूं कि मेरे बेटे-बहू के लिए प्रार्थना करें।
सिक्किम पहुंचने के बाद शेर बहादुर सिंह ने लोगों से मदद की अपील की।
अंकिता के भाई से हमने पूछा कि क्या यूपी सरकार की तरफ से आप लोगों को कोई मदद नहीं मिली? वह कहते हैं- हमें यूपी सरकार से बहुत उम्मीद थी, लेकिन हमारी बात को किसी ने नहीं रखा। सीएम योगी ने कोई अपील नहीं की। कोई अगर हमारी बात को रखता, तो निश्चित तौर पर कार्रवाई होती। ओडिशा की फैमिली के साथ घटना हुई थी, वहां के सीएम मोहन मांझी ने सिक्किम के सीएम से वीडियो कॉल पर बात की। लोगों की हरसंभव मदद और सर्च अभियान में तेजी लाने की बात की। लेकिन, हमारे यहां नेता-विधायक, मंत्री किसी ने कोई बात नहीं की।
सौरभ कहते हैं- इस वक्त सिक्किम जाना मौत के कुएं में जाने जैसा है। वहां रास्ता ही ठीक नहीं है। कब पानी बरसना शुरू हो जाए, कब लैंडस्लाइड हो जाए, कुछ पता ही नहीं रहता? मैं तो हाथ जोड़कर लोगों से अपील करता हूं कि सिक्किम मत जाइए, कहीं और चले जाइए। सिक्किम पर्यटन को लेकर इसी तरह की टिप्पणी बाकी जो लोग गए थे उन्होंने भी की।
एनडीआरएफ के जवान अलग-अलग जगहों पर नीचे उतरकर सर्च ऑपरेशन चला रहे हैं।
कौशलेंद्र के बड़े ताऊ उम्मेद सिंह कहते हैं- सिक्किम की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर निर्भर है। इसके लिए वो लोग रिस्क लेते हैं। वहां घूमने का सही समय अक्टूबर से लेकर मार्च तक है। लेकिन, इसके बाद भी लोगों को बुलाया जाता है। टूरिस्ट को उन जगहों पर ले जाया जाता है, जहां भयानक रिस्क है। यह घटना तो खुल गई, लेकिन बहुत सारी घटनाओं को तो वह पब्लिक में आने ही नहीं देते। अब चूंकि उनकी अर्थव्यवस्था इससे जुड़ी है, इसलिए सीएम तक बहुत बंदिश नहीं लगाते। वह खुद वीडियो बनाकर लोगों से सिक्किम आने की अपील कर रहे हैं।
13 दिन के बाद वापस आ गया परिवार प्रतापगढ़ से गए सभी 6 लोग 10 मई को वापस आ गए। कौशलेंद्र के पिता वापस नहीं आना चाहते थे, लेकिन परिवार के लोगों ने उन्हें समझाया। स्थानीय प्रशासन ने भी कहा कि आप वापस चले जाइए। यहां जो कुछ भी हो रहा है, उसके वीडियो और फोटो आप तक भेजे जाते रहेंगे। वीडियो कॉल पर भी सर्चिंग की प्रक्रिया को दिखाया जाता रहेगा। इन आश्वासनों और परिवार के बाकी लोगों के समझाने के बाद सभी वापस आ गए।
11 जून से गांव के ही मंदिर पर 51 हजार महामृत्युंजय जाप की शुरुआत हुई। परिवार के सभी लोग सुबह से शाम तक पूजा-पाठ और भजन कर रहे हैं। वह चाहते हैं कि आज नहीं तो कल कौशलेंद्र और अंकिता सही-सलामत वापस आ जाएं। आखिर में इस पूरी घटना को इस ग्राफिक से समझिए।
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