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हाईवे के नाम पर सिंगल लेन रोड: ओवर स्पीडिंग-तेज रोशनी से 3 साल में 611 मौतें, सड़क के लिए संत आंदोलन पर; रियलिटी चेक – Bhind News


हाईवे के चौड़ीकरण की मांग के लिए 10 अप्रैल से संत अखंड आंदोलन कर रहे हैं।

संत समाज को अक्सर किसी धार्मिक मुद्दे पर मुखर होते देखा जा सकता है, लेकिन मध्यप्रदेश के भिंड जिले में संत समाज सिक्स लेन हाईवे की मांग को लेकर पिछले एक हफ्ते से अखंड आंदोलन कर रहा है। आंदोलन के पांचवें दिन, 14 अप्रैल को मप्र रोड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन

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उन्होंने कहा, सिक्स लेन बनाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और संतों से 20 दिन का समय मांगा। मगर, संतों ने कहा, गडकरी भी फोरलेन बनाने की घोषणा कर चुके हैं। अब हमें सरकार के वादों पर भरोसा नहीं रहा। जब तक काम शुरू नहीं होगा, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।

हाईवे पर गायों की मौत से संत समाज नाराज दरअसल, ग्वालियर से भिंड होते हुए यूपी के इटावा को जोड़ने वाले इस हाईवे का ज्यादातर हिस्सा टू लेन है, जिसकी वजह से यहां आए दिन सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। साल 2024 में ही यहां 683 हादसों में 218 लोगों की जान चली गई। हाईवे पर गायों की मौत से भी संत समाज नाराज है।

ग्वालियर-इटावा हाईवे पर हादसों की आखिर क्या वजह है? ये जानने के लिए दैनिक भास्कर ने चंबल पुल से मालनपुर तक 80 किमी का सफर तय किया, तो हादसों की कई वजह सामने आई। ​

​​​​​​भास्कर रिपोर्टर ने सबसे पहले चंबल पुल से हाईवे का सफर शुरू किया…

ये हाईवे नहीं, सिंगल रोड है चंबल पुल मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश की सीमा को जोड़ता है। भास्कर रिपोर्टर ने हाईवे की पड़ताल इसी पुल से शुरू की। चंबल पुल की चौड़ाई ज्यादा नहीं है। यहां सड़क काफी संकरी हो जाती है। जब पुल के दोनों से तरफ से ट्रक या भारी वाहन गुजरते हैं तो दोनों गाड़ियों के बीच बहुत कम स्पेस रहता है।

भास्कर रिपोर्टर की यूपी से आने वाले प्रदीप सिंह से मुलाकात हुई। वह यूपी से सब्जी का ट्रक मुंबई ले जा रहे थे। उन्होंने बताया- पूरे सफर में दो से तीन हाईवे पड़ेंगे। उनसे इस हाईवे के बारे में पूछा तो बोले- ये हाईवे कहां है? ये तो सिंगल रोड है। इसपर इतना ट्रैफिक है कि ग्वालियर तक संभल कर चलना पड़ता है। इसके बाद आगरा-मुंबई हाईवे पकड़ूंगा।

प्रदीप से बात होने के बाद भास्कर रिपोर्टर ने यूपी से आ रही एक कार को रोका। कार चलाने वाले अर्जुन सिंह ने बताया कि वह अक्सर इस हाईवे से गुजरते हैं, यहां गाड़ी चलाना बिल्कुल सुरक्षित नहीं है। हाईवे की कमियां गिनाते हुए अर्जुन सिंह ने कहा कि एक तो कहीं पर डिवाइडर नहीं है। रात में गाड़ी चलाना सबसे ज्यादा रिस्क है क्योंकि भारी वाहन हाई बीम पर गाड़ी दौड़ाते हैं।

चंबल पुल से हर दो-तीन किलोमीटर पर गांव या कस्बा चंबल पुल से मालनपुर तक हाईवे पर हर दो से तीन किलोमीटर की दूरी पर कोई न कोई गांव या कस्बा पड़ता है। खास बात ये है कि इस हाईवे से चार विधानसभा क्षेत्र अटेर, भिंड, मेहगांव, गोहद भी जुड़ी है। इसके बाद भी हाईवे पर न पर्याप्त साइन बोर्ड हैं, न ही डिवाइडर।

फूप कस्बे के रहने वाले गोवर्धन से बात हुई तो उन्होंने बताया कि यह टू लेन हाईवे है और अक्सर वाहन ओवरटेक करते समय रॉन्ग साइड में आ जाते हैं। यदि सामने से कोई तीसरा वाहन आ जाए तो हादसे की आशंका बहुत बढ़ जाती है। हाईवे में गड़बड़ी तो है ही, कई लोग लापरवाही भी बरतते हैं।

हादसे को न्योता देने वाली दो तस्वीरें देखिए

सफर के दौरान कुछ लोग ड्राइव करते हुए फोन पर बात करते और बिना हेलमेट ड्राइव करते मिले। यह भी हादसे की एक बड़ी वजह है।

यह भी देखने को मिला कि हाईवे से सटे भारी वाहन खड़े रहते हैं। जिनसे हादसों की स्थित बनती है।

16 में से 11 ब्लैक स्पॉट सुधारे, बावजूद इसके नहीं थमे हादसे हाईवे पर दो से तीन साल पहले तक 16 ब्लैक स्पॉट थे। प्रशासन का दावा है कि इनमें से 11 ब्लैक स्पॉट को सुधार दिया गया है। यानी अब केवल 5 ब्लैक स्पॉट बचे हैं, लेकिन भास्कर की पड़ताल में सामने आया कि यहां हादसे थमे नहीं है। सिलसिलेवार जानिए इन स्पॉट्स के बारे में….

स्पॉट कारण
निबुआ की चौकी क्षेत्र दोनों ओर से सीधी सड़कों का हाईवे से जुड़ाव है, लेकिन न कोई साइन बोर्ड है और न सुरक्षा संकेतक। अचानक आने वाले वाहन अक्सर हादसों का कारण बनते हैं।
फूप कस्बा भदाकुर मोड़ से लेकर मुख्य बाजार तक कई गंभीर हादसे हो चुके हैं। ट्रैफिक सेंस की कमी, भीड़भाड़ और नियमों की अनदेखी यहां की प्रमुख समस्याएं हैं।
कनकूरा से डिडी पुल तक यहां गांवों के रास्ते सीधे हाईवे से जुड़ते हैं, जिससे तेज रफ्तार में चल रहे वाहन टकराते हैं। क्वांरी पुल पर ब्रेकर और संकेतक मौजूद हैं। बावजूद हादसे हो रहे।
भिंड बटालियन से सुभाष तिराहा एक साल में तेज रफ्तार के कारण यहां 3 से 4 लोगों की जान जा चुकी है।
दबोहा मोड़ यहां वाहन हाईवे पर सीधे चढ़ते हैं। स्पीड ब्रेकर और साइन बोर्ड होने के बावजूद हादसे लगातार हो रहे हैं।
लावन मोड़ और बरोही गांव यहां रिहाइशी इलाके होने के कारण हादसे होने की बात सामने आई।
मेहगांव क्षेत्र यहां सड़क चौड़ी की गई है, बस स्टैंड बनाए गए हैं और सेफ्टी जाली भी लगाई गई है। बावजूद इसके दुर्घटनाओं की रफ्तार नहीं थमी।
गिंगरिखी, बहुआ, बरहद और हरिराम की कुइया

यहां स्पीड ब्रेकर और संकेतक तो लगाए गए हैं, लेकिन वे पर्याप्त नहीं हैं। सुधार कार्य नाकाफी साबित हो रहे हैं।

छीमका और गोहद चौराहा

छीमका में सुरक्षा इंतजाम किए गए हैं, लेकिन वे बेअसर रहे। गोहद चौराहे पर ट्रैफिक का दबाव ज्यादा है और ब्लैक स्पॉट सुधार के बाद भी हादसे कम नहीं हुए।

मालनपुर इंडस्ट्रियल एरिया यहां साइन बोर्ड को अज्ञात वाहन ने टक्कर मार दी, जो टूटा जमीन पर मिला। यह क्षेत्र दिन-रात भारी ट्रैफिक के दबाव में रहता है।

तीन साल में दो हजार से ज्यादा हादसे, 611 मौतें भिंड ट्रैफिक पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक ग्वालियर-इटावा हाईवे पर पिछले तीन सालों में 2014 हादसे हुए इनमें 611 लोगों की मौत हुई। साल 2022 में कुल 712 हादसे हुए, जो 2023 में घटकर 619 रह गए, लेकिन 2024 में फिर से बढ़कर 683 तक पहुंच गए। हाईवे रोजाना 20 हजार से ज्यादा वाहन गुजरते हैं।

ट्रैफिक थाना प्रभारी राघवेंद्र भार्गव कहते हैं कि हम समय-समय पर जागरूकता अभियान चलाते हैं। लोगों को बताते हैं कि हाईवे पर चलते समय कौन सी सावधानियां रखें। जो नियमों को तोड़ते हैं उनके खिलाफ कार्रवाई भी करते हैं। देखा गया है कि दो पहिया वाहन चालक बिना हेलमेट के ही हाईवे पर गाड़ी चलाते हैं। हालांकि जागरूकता के साथ हाईवे को चौड़ा करने की भी जरूरत है।

पीडब्ल्यूडी के रिटायर्ड कार्यपालन यंत्री ज्ञानवर्धन मिश्रा के अनुसार, बरही और मालनपुर टोल प्लाजा पर हर दिन 9 से 12 हजार चार पहिया वाहन दर्ज होते हैं। दो पहिया वाहन इससे अधिक संख्या में बिना टोल के निकलते हैं। अनुमान है कि कुल 20 हजार से ज्यादा वाहन रोज इस हाईवे से गुजरते हैं।

सड़क मानक के अनुसार:

  • प्रतिदिन 10,000 वाहन तक ट्रैफिक होने पर टू-लेन सड़क पर्याप्त मानी जाती है।
  • 20,000 वाहन ट्रैफिक होने पर फोर-लेन की आवश्यकता होती है।
  • यदि प्रतिदिन 30,000 से अधिक वाहन चलते हैं, तो उस मार्ग को सिक्स-लेन होना चाहिए।

‘सिक्स लेन करना सबसे उपयुक्त’- एक्सपर्ट मैनिट भोपाल के प्रोफेसर सिद्धार्थ रोकड़े बताते हैं, मुझे लगता है कि रोड के इस हिस्से पर ट्रैफिक बहुत अधिक है। इस हाईवे का अधिकांश हिस्सा अनडिवाइडेड है, बीच में कोई डिवाइडर नहीं है। ऐसी स्थिति में कैपेसिटी के अनुसार, फोर लेन या सिक्स लेन करना सबसे उपयुक्त रहेगा। इसके अलावा, देखा गया है कि जो रिहायशी क्षेत्र हैं वहां टू-व्हीलर्स के हादसे बहुत ज्यादा होते हैं, जिसमें मौत तक हो जाती है। जरूरी है कि ऐसी जगहों पर सर्विस लेन का प्रावधान हो, जिससे उस इलाके के लोग हाईवे को आकर न मिलें।

उन्होंने कहा कि यह भी जरूरी है कि वेहिकल अंडरपास और थ्रू ट्रैफिक के लिए ओवर पास बनाए जा सकते हैं। ऐसा करने से हादसों को रोका जा सकता है। नाइट टाइम विजिबिलिटी भी एक कारण हो सकता है, जो रिहायशी इलाके हैं वहां लाइट की प्रॉपर व्यवस्था होना चाहिए।

वाहनों की रफ्तार को कम करने के लिए ट्रांसवर्स बार मार्किंग जैसे माध्यमों का उपयोग कर सकते हैं। साथ ही साथ यह जरूरी है कि हम साइन बोर्ड, रोड मार्किंग करें। सख्ती के साथ यह भी किया जाना चाहिए कि नशा करके ड्राइविंग पर रोक लगा सकें। पब्लिक अनाउंसमेंट से लोगों को बताया जा सके, एजुकेट किया जा सके।

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यह खबर भी पढ़िए…

कांग्रेस ‘मौत का हाईवे’ बता चुकी

उपनेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस नेता हेमंत कटारे ने विधानसभा में ग्वालियर-इटावा नेशनल हाईवे-719 को मौत का हाईवे बताया। कटारे विधानसभा में कह चुके हैं कि एक विषय है जो हमारे क्षेत्र से जुड़ा है, इसके लिए मैं हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूं कि आप इसे संज्ञान में लीजिए।

हालांकि यह विषय केंद्र का है, इसलिए मैंने उसे अशासकीय संकल्प के माध्यम से पहले दो बार और इस बार भी भेजा है। जो हमारा ग्वालियर से भिंड और भिंड से इटावा का हाईवे है, इसे अब मौत का हाईवे नाम दिया जाने लगा है। क्योंकि वहां आए दिन 8-10 लोगों की मौत हो ही जाती है। पूरी खबर पढ़िए…

संतों के समर्थन में दो लोग 5KM दंडवत करते हुए पहुंचे कलेक्ट्रेट

संत समाज के अखंड आंदोलन के समर्थन में बुधवार को दो समाजसेवियों ने अनोखा विरोध प्रदर्शन किया। करीब पांच किलोमीटर तक दंडवत करते हुए ये लोग कलेक्ट्रेट पहुंचे और एसडीएम को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के नाम ज्ञापन सौंपा। पूरी खबर पढ़िए…



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