100 साल पुराना है हजारीबाग में रामनवमी आयोजन
हजारीबाग में रामनवमी त्योहार का आयोजन 100 साल से अधिक पुराना है। यहां पहली बार रामनवमी जुलूस साल 1918 में हुआ था। लगातार दो दिनों तक चलने वाले इस आयोजन की शुरुआत पहला मंगला जुलूस से होती है। इस साल के लिए त्योहार की शुरुआत पहले मंगला जुलूस से हुई। मं
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सड़क पर उतरा राम भक्तों का जनसैलाब
इस मंगला जुलूस के दौरान राम भक्तों का जनसैलाब सड़कों पर उमड़ा। भक्तगण नाचते-गाते नजर आए। जय श्रीराम के जयकारों से पूरा शहर गुंजायमान हो उठा। इसे लेकर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे। बता दें कि होली के बाद पहले मंगलवार से मंगला जुलूस निकालने की परंपरा है।
रामनवमी तक हर मंगलवार को विभिन्न अखाड़े जुलूस निकालते हैं। यह परंपरा न केवल शहर में बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी प्रचलित है। हजारीबाग की रामनवमी की एक विशेषता यह है कि जब देशभर में रामनवमी का समापन हो जाता है, तब यहां उत्सव शुरू होता है। करीब 48 घंटों तक 100 से अधिक अखाड़े अपने जुलूस के साथ सड़कों पर उत्सव मनाते हैं।
100 साल पुराना है हजारीबाग में रामनवमी
हजारीबाग में रामनवमी मनाने का इतिहास सौ साल से अधिक पुराना है। यहां पहली बार साल 1918 में छह लोगों ने मिल कर जुलूस निकाला था। बात मंगला जुलूस की करें तो इसकी शुरुआत 1963 में कुम्हारटोली मुहल्ला से मंगला जुलूस पूजा के रूप में हुई थी। जानकारी के अनुसार शहर के कुम्हारटोली से रामनवमी का जुलूस निकाला गया था। तब जुलूस प्रसाद की थाल, महावीरी झंडा, दो ढोल के साथ निकला था।
जानकार बताते हैं पहली बार जब जुलूस निकाला गया था तब गौधूलि बेला में निकला था। लगभग 40 की संख्या में अखाड़े बड़ा अखाड़ा में जमा हुए। इसके बाद यहां से 40-50 फीट ऊंचे दर्जनों झंडों के साथ जुलूस बड़ा बाजार एक नंबर टाउन थाना के सामने कर्जन ग्राउंड के मुख्यद्वार से जुलूस मैदान में पहुंचता था।
जुलूस में होती हैं कई तरह की झांकियां
बताया जाता है कि शुरुआत के दिनों में जुलूस में ढोल, नगाड़ा, शहनाई, शंख, बांसुरी, झाल-मंजीरा और परंपरागत वाद्य यंत्र रहते थे। अब इसका स्वरूप भी बदला है। 1970 में पहली बार बाडम बाजार ग्वालटोली रामनवमी समिति ने कोलकाता से तासा पार्टी मंगाया था।
बात जुलूस की करें तो अभी हाल ऐसा है कि शहर में दसवीं की रात और एकादशी तक रामनवमी का जुलूस सड़कों पर होता है। अखाड़ों की संख्या लगभग 100 के करीब पहुंच गई है। धार्मिक, सामाजिक संदेश वाले एक से बढ़कर एक झांकी, जीवंत झांकी की प्रस्तुति होती है।