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15 जून को मिथुन संक्रांति, इस दिन सिलबट्टे की क्यों करते हैं पूजा? जानें मुहूर्त और महत्व


मिथुन संक्रांति 15 जून रविवार को है. सूर्य देव जिस समय मिथुन राशि में गोचर करते हैं, उस समय मिथुन संक्रांति होती है. मिथुन संक्रांति के दिन स्नान, दान, पूजा, पाठ का विशेष महत्व होता है. इस बार मिथुन संक्रांति के दिन इंद्र योग और श्रवण नक्षत्र है. मिथुन संक्रांति से सौर कैलेंडर का नया माह प्रारंभ होता है. मिथुन संक्रांति के दिन स्नान करने के बाद भगवान सूर्य की पूजा करनी चाहिए. सूर्य देव को जल से अर्घ्य देना चाहिए. इससे सूर्य का शुभ प्रभाव आपके जीवन पर पड़ेगा. पूजा के बाद सूर्य देव से जुड़ी वस्तुओं का दान करना चाहिए. मिथुन संक्रांति पर​ सिलबट्टे की पूजा का भी विधान है. आइए जानते हैं कि मिथुन संक्रांति पर सिलबट्टटे की पूजा क्यों करते हैं? मिथुन संक्रांति का मुहूर्त क्या है?

मिथुन संक्रांति 2025 मुहूर्त

मिथुन संक्रांति आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी तिथि को है. 15 जून को सुबह 6 बजकर 53 मिनट पर सूर्य देव मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे, उस क्षण ही मिथुन संक्रांति होगी. मिथुन संक्रांति का महा पुण्य काल सुबह 6 बजकर 53 मिनट से सुबह 9 बजकर 12 मिनट तक है. इसका पुण्य काल सुबह 6 बजकर 53 मिनट से दोपहर 2 बजकर 20 मिनट तक रहेगा. इस​ दिन का ब्रह्म मुहूर्त 04:03 ए एम से 04:43 ए एम तक है, वहीं अभिजीत मुहूर्त 11:54 ए एम से 12:50 पी एम तक है.

मिथुन संक्रांति पर सिलबट्टटे की पूजा क्यों करते हैं?

हर साल मिथुन संक्रांति के दिन सिलबट्टटे की पूजा करते हैं. उस दिन से लेकर अगले 4 दिनों तक सिलबट्टटे का उपयोग नहीं किया जाता है. उसे एक ही स्थान पर स्थिर रखा जाता है. इस दिन सिलबट्टटे को भूमिदेवी यानि धरती माता का स्वरूप माना जाता है. मान्यता है कि मिथुन संक्रांति के दिन से धरती माता रजस्वला रहती हैं. मिथुन संक्रांति से लेकर अगले चार दिनों तक यानि 15 जून से लेकर 18 जून तक धरती माता रजस्वला रहेंगी, इस वजह से सिलबट्टटे की पूजा की जाएगी और उसका घर के किसी कार्य में उपयोग नहीं होगा.

जिस प्रकार से सभी महिलाओं में मासिक धर्म होता है, वैसे ही धरती माता का मासिक धर्म मिथुन संक्रांति को होता है. मासिक धर्म के कारण मिथुन संक्रांति को रज संक्रांति भी कहते हैं. यह मान्यता है कि मिथुन संक्रांति से अगले 4 दिन तक धरती माता स्वयं को मानसून के लिए तैयार करती हैं ताकि अगली फसल अच्छी हो.

सिलबट्टटे की पूजा कैसे करते हैं?

मिथुन संक्रांति के दिन सिलबट्टटे की पूजा करने से पूर्व साफ पानी और दूध से उसका अभिषेक करते हैं. इस प्रक्रिया को वसुमति गढ़वा कहा जाता है. उसके बाद अक्षत्, चंदन, सिंदूर, फूल, फल, धूप, दीप आदि से सिलबट्टटे की पूजा करते हैं.

सिलबट्टटे की पूजा के फायदे

मिथुन संक्रांति पर सिलबट्टटे की पूजा विशेषकर महिलाएं करती हैं. यह पर्व महिलाओं से जुड़ा होता है. जिस महिला को संतान सुख प्राप्त नहीं है, उसे गंगा स्नान करने के बाद सिलबट्टटे की पूजाा करनी चाहिए. मान्यताओं के अनुसार सिलबट्टटे की पूजा करने से उनको संतान सुख प्राप्त हो सकता है.

मिथुन संक्रांति पर सूर्य पूजा
मिथुन संक्रांति के अवसर पर सूर्य देव की पूजा करते हैं. सुबह में स्नान के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें. तांबे के लोटे में पानी भर लें. उसमें लाल चंदन, लाल फूल और गुड़ डाल दें, फिर सूर्य मंत्र ऊं घृणि सूर्याय नम: का जाप करते हुए अर्घ्य दें. फिर सूर्य चालीसा और आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें. सूर्य देव की आरती करें. सूर्य देव की कृपा से आपके धन और धान्य में वृद्धि होगी. पूजा के बाद गेहूं, लाल फल, लाल चंदन, तांबा, लाल कपड़ा आदि का दान करें. सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त होगा.

(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारियों पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)



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