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chhava director laxman utekar reveals struggles | ‘छावा’ के डायरेक्टर ने दी 800 करोड़ की ब्लॉकबस्टर फिल्म: लेकिन 6 साल की उम्र में बेचे अंडे, कभी टॉयलेट किए साफ और धोई कार


5 मिनट पहले

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फिल्म ‘छावा’ को भले ही मिले-जुले रिव्यू मिले हों, लेकिन कमाई के मामले में इसने 800 करोड़ से ज्यादा की रिकॉर्ड तोड़ कमाई की। इस फिल्म ने डायरेक्टर लक्ष्मण उतेकर को उनके करियर की सबसे बड़ी हिट फिल्म दी। हालांकि, एक समय ऐसा भी था जब उन्हें कई छोटे-मोटे काम किए। उन्होंने अंडे बेचे, वड़ा पाव का ठेला लगाया और गणेश चतुर्थी पर अमीर लोगों की गणपति की मूर्तियों का विसर्जन किया.

लक्ष्मण उतेकर महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के एक छोटे से गांव में पैदा हुए थे। बचपन में ही उनके मामा उन्हें मुंबई ले आए। वहां उन्होंने बहुत छोटे-छोटे काम किए ताकि दो वक्त की रोटी जुटा सकें। उन्होंने यूट्यूब चैनल ‘मामाज काउच’ पर पॉडकास्ट में अपनी कहानी शेयर की। उन्होंने बताया कि 6 साल की उम्र में वे बार के बाहर उबले अंडे बेचते थे। बाद में शिवाजी पार्क में उन्होंने वड़ा पाव का ठेला लगाया, लेकिन बीएमसी ने उसे जब्त कर लिया।

अमीरों के गणपति विसर्जन कर कमाए ढाई रुपए गणेश चतुर्थी के दौरान लक्ष्मण उतेकर और उनके दोस्त अमीर लोगों के गणपति विसर्जन में मदद करते थे। अमीर लोग खुद मूर्ति लेकर पानी तक नहीं जाते थे, तो लक्ष्मण और उनके दोस्त मूर्ति लेकर विसर्जन कर देते और इसके बदले 5 रुपए लेते। इसमें से 2.50 रुपए उन्हें मिलते।

चाय पहुंचाते-पहुंचाते एडिटिंग के काम में पैदा हुई रुचि लक्ष्मण उतेकर ने ये भी बताया कि एक दिन उन्होंने अखबार में फिल्म स्टूडियो की सफाई की नौकरी का विज्ञापन देखा और वे वहां झाड़ू-पोंछा लगाने लगे। वे टॉयलेट तक साफ करते थे और इतनी ईमानदारी से काम करते थे कि उनके बॉस ने उनकी तारीफ की। वे स्टूडियो में चाय भी पहुंचाते थे और वहीं से उन्हें साउंड और एडिटिंग का काम सीखने में रुचि हुई।

धीरे-धीरे उन्होंने कार धोने, अखबार बेचने और पॉपकॉर्न तक बेचने जैसे कई काम किए। एक दिन उन्हें पता चला कि सहारा कंपनी नया स्टूडियो बना रही है। वे रोज उस जगह जाकर खड़े हो जाते। लोग रोज तीन महीने बाद एक दिन राजेंद्र सिंह चौहान नाम का एक आदमी आया। ने पूछा कि वो रोज यहां क्यों खड़े रहते हैं? लक्ष्मण बोले, “मैं यही सवाल सुनने के लिए तीन महीने से खड़ा हूं।” उसी दिन से उन्हें काम मिल गया।

इसके बाद उन्होंने सिनेमैटोग्राफर बिनोद प्रधान के साथ असिस्टेंट के तौर पर काम शुरू किया। फिर उन्होंने कई बड़ी फिल्मों की शूटिंग की, जैसे ‘हिंदी मीडियम’, ‘डियर जिंदगी’, ‘102 नॉट आउट’। निर्देशक के तौर पर उन्होंने 2014 में मराठी फिल्म ‘टपाल’ से शुरुआत की। ‘छावा’ के अलावा उन्होंने ‘लुका छुपी’, ‘मिमी’ और ‘जरा हटके जरा बचके’ जैसी फिल्में को डायरेक्ट किया।



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