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Raviwar ke upay: रविवार के दिन जरूर करें इस स्तोत्र का पाठ, हर मनोकामना होगी पूरी, मिलेगा सूर्यदेव का आशीर्वाद!


सूर्य देव | Image:
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Surya Stotra: हिंदू धर्म में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित किया गया है, जिसके अनुसार रविवार के दिन भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। कहते हैं जिस व्यक्ति पर सूर्यदेव की कृपा होती है उसका भाग्य सूरज के तेज के समान चमक उठता है। इतना ही नहीं शास्त्रों में भी सूर्यदेव की पूजा को बेहद खास माना गया है।

ऐसे में अगर आप चाहते हैं कि सूर्यदेव की कृपा सदैव आप और आपके परिवार पर बनी रहे तो आपको रविवार के दिन सूर्यदेव की पूजा करने के साथ-साथ उनके इस स्तोत्र का पाठ भी जरूर करना चाहिए। इससे भगवान सूर्य प्रसन्न होकर आपको मनचाहा फल देंगे। तो चलिए जानते हैं इस स्तोत्र के बारे में।

सूर्य अष्टोत्तर शतनामावली स्तोत्र (Surya Ashtottara Shatnamavali Stotra)

सूर्य: सूर्यमा भगस्त्वष्टा पूषार्क: सविता रवि:।
गभस्तिमानज: कालो मृत्युर्धाता प्रभाकर:।।

पृथिव्यापश्च तेजश्च खं वायुश्च परायणम।
सोमो बृहस्पति: शुक्रो बुधोऽड़्गारक एव च।।

इन्द्रो विश्वस्वान दीप्तांशु: शुचि: शौरि: शनैश्चर:।
ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च स्कन्दो वरुणो यम:।।

वैद्युतो जाठरश्चाग्निरैन्धनस्तेजसां पति:।
धर्मध्वजो वेदकर्ता वेदाड़्गो वेदवाहन:।।

कृतं तत्र द्वापरश्च कलि: सर्वमलाश्रय:।
कला काष्ठा मुहूर्ताश्च क्षपा यामस्तया क्षण:।।

संवत्सरकरोऽश्वत्थ: कालचक्रो विभावसु:।
पुरुष: शाश्वतो योगी व्यक्ताव्यक्त: सनातन:।।

कालाध्यक्ष: प्रजाध्यक्षो विश्वकर्मा तमोनुद:।
वरुण सागरोऽशुश्च जीमूतो जीवनोऽरिहा।।

भूताश्रयो भूतपति: सर्वलोकनमस्कृत:।
स्रष्टा संवर्तको वह्रि सर्वलोकनमस्कृत:।।

अनन्त कपिलो भानु: कामद: सर्वतो मुख:।
जयो विशालो वरद: सर्वधातुनिषेचिता।।

मन: सुपर्णो भूतादि: शीघ्रग: प्राणधारक:।
धन्वन्तरिर्धूमकेतुरादिदेवोऽदिते: सुत:।।

द्वादशात्मारविन्दाक्ष: पिता माता पितामह:।
स्वर्गद्वारं प्रजाद्वारं मोक्षद्वारं त्रिविष्टपम।।

देहकर्ता प्रशान्तात्मा विश्वात्मा विश्वतोमुख:।
चराचरात्मा सूक्ष्मात्मा मैत्रेय करुणान्वित:।।

एतद वै कीर्तनीयस्य सूर्यस्यामिततेजस:।
नामाष्टकशतकं चेदं प्रोक्तमेतत स्वयंभुवा।।

सूर्य स्तुति (Surya Stuti)

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
त्रिभुवन-तिमिर-निकन्दन, भक्त-हृदय-चन्दन॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

सप्त-अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी, मानस-मल-हारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

सुर-मुनि-भूसुर-वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

सकल-सुकर्म-प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व-विलोचन मोचन, भव-बन्धन भारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

कमल-समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।
सेवत साहज हरत अति मनसिज-संतापा॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

नेत्र-व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा-हारी।
वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।

सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।
हर अज्ञान-मोह सब, तत्वज्ञान दीजै॥

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