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ये कहना है एडवोकेट प्रमोद सक्सेना का। जो एमपी के बहुचर्चित टेरर फंडिंग मामले के आरोपी ध्रुव सक्सेना के वकील है।
दरअसल, साल 2017 में मप्र एटीएस (एंटी टेरर स्क्वॉड) ने बीजेपी आईटी सेल के जिला संयोजक ध्रुव सक्सेना समेत 11 लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 122 और 123 के तहत मामला दर्ज किया था, जो देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए हथियार और सूचना एकत्र करने से संबंधित है। कोर्ट ने ध्रुव सक्सेना को न तो दोषी माना है और न ही राहत दी है।
ये मामला एक बार फिर सुर्खियों में इसलिए है क्योंकि दिग्विजय सिंह ने 13 अप्रैल को ध्रुव सक्सेना समेत इस केस के सभी 11 आरोपियों के नाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर बीजेपी से पूछा था कि गद्दार कौन है? साथ ही कुछ सवाल भी सरकार से पूछे हैं।
दिग्विजय की इस पोस्ट के बाद दैनिक भास्कर ने आठ साल पुराने इस मामले के आरोपियों के बारे में पता किया। सभी जमानत पर बाहर है और अपना कामकाज कर रहे हैं। सबसे चर्चित नाम ध्रुव सक्सेना फिलहाल अपना रेस्टोरेंट और एक कंपनी चला रहा है।
दिग्विजय सिंह ने 13 अप्रैल को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर 10 लोगों के नाम पोस्ट किए थे।
दिग्विजय ने एक बार फिर आरोप क्यों लगाए? इसका संबंध संसद में हाल ही में पेश हुए वक्फ संशोधन बिल से है। दरअसल, जब ये बिल राज्यसभा में चर्चा के लिए पेश हुआ, तब दिग्विजय समेत विपक्ष के सांसदों ने इस बिल के विरोध में अपने तर्क दिए थे। राज्यसभा में बिल पर चर्चा के दौरान सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने बिना नाम लिए कहा-
याकूब मेनन और डॉक्टर कलाम का जनाजा एक ही दिन निकला था। मगर, ये बात सब जानते हैं कि कौन लोग किसके जनाजे में गए थे। उस समय ये कहने वाले कि याकूब मेनन की ज्यूडिशियल किलिंग हुई है, आज सदन में बैठे हैं। जिन्होंने हाफिज और जाकिर नाइक को शांति का मसीहा कहा था और कहते हैं कि 26/11 आरएसएस ने कराया।
ये सुनते ही दिग्विजय सिंह बोले- मैंने कभी 26/11 हमले में आरएसएस के होने की बात नहीं कही। सुधांशु त्रिवेदी ने दिग्विजय से कहा- सर, मैंने किसी का नाम नहीं लिया है। इसी बीच अमित शाह उठे और दिग्विजय सिंह से बोले- अभी भी मौका है तब नहीं कहा तो अब कह दीजिए।
संसद में इस बहस के बाद 4 अप्रैल को वक्फ संशोधित बिल पास हो गया। संसद में हुए इस पूरे घटनाक्रम के बाद 12 अप्रैल को गुना में भारतीय जनता युवा मोर्चा ने पोस्टर लगाए। जिसपर लिखा था कि दिग्विजय सिंह गद्दार हैं। इसी के बाद दिग्विजय ने टेरर फंडिंग केस के आरोपी ध्रुव सक्सेना समेत दस लोगों के नाम सोशल मीडिया पर शेयर कर हुए लिखा कि बीजेपी-आरएसएस वाले बताएं कि गद्दार कौन है?
12 अप्रैल को दिग्विजय सिंह के खिलाफ गद्दार के पोस्टर लगाए गए थे।
दिग्विजय ने पूछा- सरकार ने केस क्यों नहीं लड़ा? दिग्विजय यहीं नहीं रुके, उन्होंने 15 अप्रैल को इंदौर में सवा घंटे की प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इसमें उन्होंने कहा कि शिवराज सिंह के कार्यकाल में 2017 में मध्य प्रदेश एटीएस ने बजरंग दल, युवा मोर्चा, भाजपा और विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के लिए जासूसी करते हुए पकड़ा था।
इन सभी लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था, लेकिन राज्य सरकार ने केस नहीं लड़ा और सभी आरोपी जमानत पर छूट गए। दिग्विजय सिंह ने सवाल उठाए कि क्या ये लोग गद्दार नहीं है और क्या इनकी मदद करने वाले गद्दार नहीं है?
अब सिलसिलेवार जानिए इस पूरे केस के बारे में दिग्विजय सिंह ने जिन 10 लोगों के नाम लिए हैं। उनका कनेक्शन 2017 के टेरर फंडिंग केस से है। नवंबर 2016 में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने सतविंदर सिंह और दादू को गिरफ्तार किया था। इन पर सेना से जुड़ी खुफिया जानकारियां लीक करने का आरोप लगाया था। इन्होंने कबूल किया था कि-
- एमपी से इन्हें सेना से जुड़ी तमाम जानकारियां और मदद मिला करती थीं। इसके लिए इन्हें मोटी रकम दी जाती थी।
- पाकिस्तानी हेंडलर्स इस रकम को सतना में रहने वाले बलराम के खाते में ट्रांसफर करते थे।
- सतविंदर पाकिस्तानी हेंडलर्स के कहने पर सैन्य सूचनाएं जुटाता था। पुल और सेना के कैम्प की फोटो खुफिया तरीके से लेता था।
- इसके अलावा, केंद्रीय सुरक्षा बलों के मूवमेंट और वाहनों की जानकारी भी जुटाई जा रही थी।
इस इनपुट के आधार पर एमपी एटीएस ने ग्वालियर, भोपाल, जबलपुर और सतना से 11 लोगों को हिरासत में लिया। इनसे 3 हजार से ज्यादा सिम कार्ड, 50 मोबाइल फोन समेत 35 सिम बॉक्स जब्त किए गए थे। इसके अलावा फर्जी नाम-पते पर खोले गए सैकड़ों बैंक खातों की भी जानकारी मिली थी।
अब जानिए किसकी क्या भूमिका थी
एटीएस ने बताया था मास्टरमाइंड
बलराम को ग्वालियर से गिरफ्तार किया गया था। एटीएस के मुताबिक कश्मीर के दो लोगों के खाते में बलराम ने पैसा भेजा था। उसके सिस्टम पर पाकिस्तान से रोज 100 से ज्यादा कॉल आती थी। इन कॉल्स से रोजाना करीब 2 लाख से ज्यादा कमाई होती थी। इन पैसों को वह फर्जी बैंक खातों में ट्रांसफर करता था।
10 पर्सेंट कमीशन रखने के बाद सारा पैसा दिल्ली में साड़ी की दुकान में काम करने वाले जब्बार को भेजता था। जब्बार अपना कमीशन काटकर बाकी रुपयों की साडियां पाकिस्तान भेजता था और पाकिस्तान में बैठा साड़ी व्यापारी इनकी कीमत टेलीफोन एक्सचेंज चलाने वालों को देता था।
कई नेताओं से रिलेशन सामने आए थे ध्रुव सक्सेना भोपाल के अशोका गार्डन में 2009 से इंटरनेशनल कॉलिंग सेंटर चला रहा था। कॉल सेंटर में काम करने वाले वर्कर्स को ट्रेनिंग भी देता था। इसी दौरान बीजेपी ने ध्रुव को नगरीय निकाय चुनाव में बल्क मैसेज और बल्क कॉलिंग का काम दिया। इसके बाद वह बीजेपी की आईटी सेल से जुड़ गया। एटीएस के मुताबिक ध्रुव के अशोका गार्डन स्थित ऑफिस से 3 से 4 पुरानी एनालॉग सिम मशीनें बरामद की गई थी।
मोहित के जरिए ध्रुव के संपर्क में आया भोपाल से ही दूसरी गिरफ्तारी मनीष गांधी की हुई थी। मनीष सिम बॉक्स सप्लायर होने के साथ मोहित अग्रवाल का दोस्त था। मोहित के जरिए ही उसकी ध्रुव सक्सेना से मुलाकात हुई थी। मोहित के पैरेलल टेलीफोन एक्सचेंज को सिम बॉक्स सप्लाई करने का काम मनीष ही करता था। इस वजह से वह लगातार मोहित और ध्रुव के संपर्क में रहता था।
एटीएस ने सबसे पहले गिरफ्तार किया एटीएस ने सबसे पहले 7 फरवरी 2017 को साकेत नगर से मोहित अग्रवाल को पकड़ा। मोहित भोपाल में इंटरनेट कॉल प्रोवाइड, टेलिफोन एक्सचेंज और मोबाइल ऑपरेटर का काम करता था। ये इंटरनेशनल वाइस कॉल का रूट बदलकर लोकल नंबर पर ट्रांसफर करते थे। इसके पास से कॉल सेंटर में काम आने वाले टेलिफोन सिम बॉक्स मिले थे।
हवाला के लिए टेलीफोन लाइन का इस्तेमाल ठाकुर ने इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन से इंजीनियरिंग के बाद एमबीए किया। ये इंटरनेशनल कॉल्स पर टैरिफ कटिंग का काम करता था। यह ऐसे ग्राहकों से संपर्क कर लाइन उपलब्ध कराता थे जो हवाला, सट्टा व ठगी के फर्जीवाड़े के लिए टेलीफोन लाइनों का इस्तेमाल करते थे। जितेंद्र अपने फैमिली फ्रेंड रितेश के साथ ये काम कर रहा था। दोनों एक ही अपार्टमेंट में रहते थे।
एटीएस कोर्ट में सबूत ही पेश नहीं कर सकी भास्कर ने इस मामले के आरोपी ध्रुव सक्सेना से बात की। सक्सेना ने बताया- ‘आठ फरवरी 2017 को मुझे एटीएस ने गिरफ्तार किया था और 10 फरवरी को कोर्ट के सामने पेश किया। कोर्ट ने मुझे और बाकी लोगों को जेल भेज दिया। तब तक हमें ये पता नहीं था कि किन धाराओं में एटीएस ने मामला दर्ज किया था। जब जेल पहुंचे तो पता चला कि देशद्रोह की धाराओं में केस दर्ज किया गया है।
8 मई 2017 को एटीएस ने 2600 पन्नों की चार्जशीट पेश की। 16 जून को हुई पहली बहस में ही हमारे वकील ने कहा कि जिन धाराओं में केस दर्ज हुआ है उससे जुड़े सबूत तो एटीएस पेश ही नहीं कर सकी है। हमारे वकील ने जमानत देने की मांग की। तत्कालीन जज ने कहा कि मैं आपकी दलील से सहमत हूं, लेकिन इस स्टेज पर ऑर्डर नहीं दे सकता। आपको हाईकोर्ट जाना पड़ेगा।
इसके बाद हमने हाईकोर्ट में जमानत याचिका दायर की। हाईकोर्ट में 5 पेशी के बाद भी एटीएस ने कोई सबूत पेश नहीं किए।
एडवोकेट बोले- एटीएस के पास कोई एविडेंस ही नहीं ध्रुव सक्सेना की जमानत याचिका की पैरवी करने वाले एडवोकेट प्रमोद सक्सेना कहते हैं कि जब कोर्ट के सामने हमने सारे तथ्य रखे तो कोर्ट ने एटीएस के वकील से कहा कि ये चार्जशीट पूरी ही नहीं है क्योंकि जिन धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है उससे जुड़े सबूत एटीएस ने पेश ही नहीं किए। ऐसा लगता है कि एटीएस ने बड़ी जल्दबाजी में इस मामले का इन्वेस्टिगेशन किया था।
सक्सेना बताते हैं कि तत्कालीन जज अतुल श्रीधरन में एटीएस से सिम बॉक्स मंगवाए थे। उन्होंने एटीएस के वकील से कहा कि वे 11 लोगों का बलराम, राजीव और जब्बार से कनेक्शन साबित करें। उस समय कोर्ट ने ये टिप्पणी भी की थी कि कहीं ये गैरकानूनी ढंग से फोन कॉल्स मुहैया कराने का सिस्टम तो नहीं है?
इसका जवाब देने के लिए भी एटीएस ने एक महीने का समय मांग लिया था, मगर इसके बाद भी कोई जवाब नहीं दिया। आरोपियों को जमानत मिलने के बाद एटीएस की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी, मगर शीर्ष अदालत ने सुनवाई से ही इनकार कर दिया था।