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अदालत ने बीमा कंपनी को क्लेम देने का आदेश दिया: कंपनी ने मरीज से कहा था- आप मोटे हैं, इसलिए दिल की बीमारी का बिल नहीं चुकाएंगे – Gujarat News


वीडियो कॉल पर युवक को देखकर दिया था बीमा, लेकिन क्लेम के समय मना किया।

बीमा पॉलिसी बेचते समय कंपनियां बड़े-बड़े वादे करती हैं, लेकिन क्लेम के समय बहाने बनाकर पीछे हट जाती हैं। ऐसा ही एक मामला हाल ही में वराछा इलाके में सामने आया। यहां एक युवक को दिल का दौरा पड़ने के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन बीमा कंपनी न

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कंपनी का दावा था कि युवक ने यह जानकारी छिपाई थी। युवक ने एडवोकेट श्रेयस देसाई के माध्यम से उपभोक्ता अदालत में शिकायत दर्ज करवाई। सुनवाई के बाद अदालत ने बीमा कंपनी को क्लेम की पूरी राशि का भुगतान करने का आदेश दिया।

12.66 लाख का क्लेम 8% ब्याज सहित देने का आदेश युवक ने वर्ष 2021 में 50 लाख रुपये की बीमा पॉलिसी ली थी। 2022 में उसे दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद उसे निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। एंजियोप्लास्टी के बाद युवक को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई, लेकिन इलाज का खर्च 12 लाख रुपए आया था।

बीमा कंपनी ने खर्च चुकाने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि युवक का बीएमआई अधिक था, और उसने यह जानकारी छिपाई थी। युवक ने मामला उपभोक्ता अदालत में पहुंचाया, जहां वकील ईशान और प्राची देसाई की दलीलों के बाद अदालत ने 12.66 लाख रुपये का क्लेम 8% ब्याज के साथ चुकाने का आदेश दिया।

युवक ने वर्ष 2021 में 50 लाख रुपए की बीमा पॉलिसी ली थी। इलाज का खर्च 12 लाख रुपए आया था।

स्थूलता और हृदय रोग का कोई सीधा संबंध नहीं: अदालत अदालत में युवक की ओर से पेश की गई दलीलों को सुनने के बाद सूरत जिला उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष ने फैसला सुनाते हुए कहा कि मोटापे (स्थूलता) और हृदय रोग का कोई सीधा संबंध नहीं है। आयोग ने युवक को मानसिक उत्पीड़न के लिए 30 हजार रुपये और कानूनी खर्च के लिए 20 हजार रुपये अलग से देने का भी आदेश दिया।

बीमा कंपनियां बहाने बनाकर क्लेम देने से बचती हैं वकील श्रेयस देसाई ने कहा कि अक्सर बीमा कंपनियां क्लेम का भुगतान करने से बचने के लिए बहाने बनाती हैं। ऐसे में लोगों को अपने कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूक रहना चाहिए और जरूरत पड़ने पर अदालत का रुख करना चाहिए। -श्रेयस देसाई, एडवोकेट



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