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आज का एक्सप्लेनर: कैद में क्यों रखे जाते हैं बजट बनाने वाले अफसर, कितने घाटे में है मोदी सरकार; बजट से जुड़े 8 सवालों के जवाब


आज घड़ी में 11 बजते ही लोकसभा में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण का भाषण शुरू हो जाएगा। अपनी स्पीच में वो करीब 45 लाख करोड़ रुपए का बजट पेश करेंगी। जिसे बनाने में 6 महीने से ज्यादा वक्त लगा है।

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वित्तमंत्री कैसे तय करती हैं कहां कितना खर्च करना है, इस बार बजट से क्या उम्मीदें और तहखाने में क्यों कैद कर दिए जाते हैं बजट बनाने वाले अफसर; आज के एक्सप्लेनर में ऐसे 8 सवालों के जवाब…

सवाल- 1: एक फरवरी को सुबह 11 बजे ही क्यों पेश होता है बजट? जवाब: ब्रिटिश काल में फरवरी के आखिरी दिन यानी 28 फरवरी या लीप ईयर होने पर 29 फरवरी को शाम को 5 बजे बजट पेश किया जाता था। उस समय ब्रिटेन में दोपहर के 12:30 बज रहे होते थे। इससे अंग्रेज अधिकारियों को सुविधा होती थी।

1999 में अटल सरकार के वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने सुबह 11 बजे आम बजट पेश किया। तब सिन्हा बोले थे- ‘भारत अब ब्रिटिश कॉलोनी नहीं रहा, वह अपनी टाइम-टेबल खुद तय कर सकता है। इससे संसद में बजट पर चर्चा के लिए एक पूरा दिन मिल जाएगा।’ तब से अब तक आम बजट सुबह 11 बजे पेश किया जाता है।

21 जनवरी 2017 को मोदी सरकार ने आम बजट पेश करने की तारीख 28 फरवरी की जगह 1 फरवरी कर दी। तब के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसके पीछे दो वजहें बताई थीं-

1. बजट लागू करने में समय की कमी: बजट पेश करने से लेकर संसद से उसे पारित कराने और लागू करने में मई तक का समय लगता है। जेटली का कहना था कि 28 फरवरी की जगह 1 फरवरी को इसे पेश करने से बजट के नए बदलाव और नियम लागू करने के लिए ज्यादा समय मिलेगा।

2. रेलवे बजट का आम बजट में विलय: 2017 में रेल बजट का आम बजट में विलय कर दिया गया था। जेटली के मुताबिक, इसके चलते आम बजट लागू करने के लिए और ज्यादा समय चाहिए था।

2017 में बजट पेश करने से पहले तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली।

सवाल- 2: इस बार बजट में कौन-सी 5 बड़ी घोषणाओं की उम्मीद है? जवाब: बजट में पेट्रोल-डीजल, इनकम टैक्स और सस्ता इलाज से जुड़ी 5 बड़ी घोषणाओं की उम्मीद है…

1. पेट्रोल-डीजल सस्ता, लेकिन सोना महंगा

  • एक्साइज ड्यूटी में कटौती से पेट्रोल और डीजल की कीमतें घट सकती है। अभी पेट्रोल पर 19.90 रुपए और डीजल पर 15.80 रुपए ड्यूटी लगती है। हाल ही में कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (CII) ने सरकार से पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में कटौती की सिफारिश की है।
  • कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स से जुड़े पार्ट्स की इम्पोर्ट ड्यूटी घट सकती है। अभी इस पर 20% ड्यूटी लगती है। इम्पोर्ट ड्यूटी घटने से इलेक्ट्रॉनिक्स से जुड़े पार्ट्स पर घरेलू मैन्युफैक्चरिंग की लागत कम हो जाएगी।
  • गोल्ड-सिल्वर पर इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ाई जा सकती है। इससे सोना-चांदी के दाम बढ़ सकते हैं। दरअसल, पिछले बजट में सरकार ने सोने पर इम्पोर्ट ड्यूटी 15% से घटाकर 6% कर दी थी। अब सरकार इम्पोर्ट को घटाना चाहती है, ताकि व्यापार घाटा कम हो सके।

2. 10 लाख रुपए तक की सालाना इनकम टैक्स फ्री होने की उम्मीद

  • नए रिजीम के तहत 10 लाख रुपए तक की सालाना इनकम टैक्स-फ्री की जा सकती है।
  • 15 लाख रुपए से 20 लाख रुपए के बीच की इनकम के लिए 25% का नया टैक्स ब्रैकेट लाया जा सकता है। अभी इसमें 6 टैक्स ब्रैकेट हैं। 15 लाख रुपए से ज्यादा की इनकम पर 30% टैक्स लगता है।
  • नए रिजीम के तहत बेसिक एग्जम्प्शन लिमिट को 3 लाख रुपए से बढ़ाकर 5 लाख रुपए किया जा सकता है। एनालिस्ट्स के मुताबिक सरकार चाहती है कि ज्यादातर लोग नए टैक्स रिजीम को अपनाएं क्योंकि नई रिजीम पुरानी की तुलना में ज्यादा आसान है।

3. केंद्र सरकार की 3 योजनाओं में बदलाव संभव

  • PM किसान सम्मान निधि: सालाना 6 हजार रुपए से बढ़ाकर 12 हजार रुपए की जा सकती है। संसद की स्थायी समिति ने इसकी सिफारिश की। इस योजना में अभी 9.4 करोड़ से ज्यादा किसानों को 3 किश्तों में 2-2 हजार रुपए ट्रांसफर किए जाते हैं।
  • आयुष्मान भारत योजना: इसका दायरा बढ़ाया जा सकता है क्योंकि सरकार ज्यादा से ज्यादा लोगों को बेहतर हेल्थ फैसिलिटी देना चाहती है। अभी आर्थिक रूप से कमजोर और 70 साल से ज्यादा के बुजर्गों को इस योजना का फायदा मिलता है। इस योजना में 36 करोड़ से ज्यादा कार्ड बनाए जा चुके हैं।
  • अटल पेंशन योजना (APY): पेंशन राशि दोगुनी यानी, 10 हजार रुपए की जा सकती है। APY को 2015 में लॉन्च किया गया था, तबसे इसमें कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ। फिलहाल, मैक्सिमम मंथली पेंशन 5 हजार रुपए है। अभी तक इस योजना में 7 करोड़ से ज्यादा लोग रजिस्टर हो चुके हैं।

4. ग्रामीण इलाके के ग्रेजुएट युवाओं के लिए इंटर्नशिप की उम्मीद

  • CII ने ‘एकीकृत राष्ट्रीय रोजगार नीति’ लाने की मांग की है इसलिए बजट में इसकी घोषणा हो सकती है। इसमें रोजगार देने वाली अलग-अलग मंत्रालयों की योजनाओं को एक छतरी के नीचे लाया जाएगा।
  • ग्रामीण इलाकों के सरकारी ऑफिसों में काम करने के लिए इंटर्नशिप प्रोग्राम की घोषणा हो सकती है। ये इंटर्नशिप केवल ग्रेजुएट युवाओं के लिए होगी।
  • विदेशों में नौकरी दिलाने में मदद के लिए इंटरनेशनल मोबिलिटी अथॉरिटी बनाई जा सकती है।
  • स्किल बढ़ाने और रोजगार पैदा करने के लिए स्टार्टअप्स को सपोर्ट दिया जा सकता है।

5. मेडिकल कॉलेजों में 75 हजार सीटें जोड़ने का रोडमैप

  • हेल्थ सेक्टर का बजट करीब 10% तक बढ़ाया जा सकता है क्योंकि हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेहतर करने के लिए बजट बढ़ाना जरूरी है। पिछले साल हेल्थ के लिए 90 हजार 958 करोड़ रुपए दिए गए थे।
  • MRI जैसे चिकित्सा उपकरणों पर कस्टम ड्यूटी कम हो सकता है। इससे चिकित्सा उपकरणों की कीमतें घटेंगी और जांचें सस्ती होंगी। अभी इस पर बेसिक कस्टम ड्यूटी 7.5% से 10% के बीच है।
  • अगले 5 साल में मेडिकल कॉलेजों में 75 हजार सीटें जोड़ने का लक्ष्य सरकार ने रखा है। इसका रोडमैप बजट में पेश किया जा सकता है।

सवाल- 3: बजट तैयार करने में कितना वक्त लगता है, क्या प्रॉसेस है? जवाब: देश का आम बजट बनाने में लगभग 6 महीने का समय लगता है और यह 6 फेज में तैयार होता है…

सवाल-4: क्या बजट बनाने वाली टीम को तहखाने में बंद रखा जाता है? जवाब: लोकसभा में बजट पेश होने से पहले उसे बनाने में शामिल करीब 100 अफसर और कर्मचारियों को वित्त मंत्रालय के बेसमेंट में 7 दिन के लिए ताले में बंद रखा जाता है। सभी के मोबाइल फोन ले लिए जाते हैं। इस दौरान न तो वे किसी से मिल सकते हैं और न घर जा पाते हैं। दरअसल, बजट वाले दिन यानी 1 फरवरी को वित्तमंत्री का भाषण पूरा होने तक बजट को गोपनीय रखने के लिए ऐसा किया जाता है। ताकि कालाबाजारी और मुनाफाखोरी रोकी जा सके।

अफसरों के इस लॉक-इन के दौरान वित्त मंत्रालय के बेसमेंट में लगी प्रिंटिंग प्रेस में बजट की कॉपियां छापी जाती हैं। 1950 से पहले तक बजट की कॉपियां राष्ट्रपति भवन में लगी एक सरकारी प्रेस में छपती थीं। 1950 में वित्तमंत्री जॉन मथाई के दौर में इस प्रेस से कुछ डाक्यूमेंट्स लीक हो गए। मथाई पर कुछ बड़े उद्योगपतियों की मदद का आरोप लगा। इसके बाद बजट की छपाई दिल्ली के मिंटो रोड स्थित दूसरी सरकारी प्रेस में होने लगी।

30 साल बाद 1980 में इसी प्रेस को नॉर्थ ब्लॉक यानी वित्त मंत्रालय के बेसमेंट में शिफ्ट कर दिया गया। उसी साल बजट को फाइनल करने और उसकी छपाई में शामिल स्टाफ को दो हफ्ते के लिए बेसमेंट में बंद कर दिया गया। तब से यह प्रक्रिया जारी है।

2021-22 से ‘यूनियन बजट मोबाइल ऐप’ पर डिजिटल बजट जारी होने लगा। इसके चलते बजट की छपी हुई कॉपियों की जरूरत बेहद कम हो गई। नतीजतन स्टाफ का लॉक-इन पीरियड भी 2 की जगह 1 सप्ताह का हो गया।

सवाल-5: बजट बनाते वक्त वित्तमंत्री को क्या ध्यान रखना पड़ता है? जवाब: बजट बनाना कोई रॉकेट साइंस नहीं। बस ध्यान यह रखना है कि सरकार के पास दो जेबें होती हैं। पहली-रेवेन्यू और दूसरी-कैपिटल। इन दोनों जेबों में कैसे और कितना पैसा आएगा और कहां जाएगा, बजट में यही लेखा-जोखा होता है।

अब रेवन्यू और कैपिटल को दो कीवर्ड्स से समझते हैं। रेवन्यू माने बार-बार यानी रिपीट और कैपिटल माने कभी-कभार या नॉन रिपिटेटिव।

सोचिए, बार-बार होने वाले खर्च अच्छे होते हैं, या कभी-कभार होने वाले ठोस खर्च? जैसे- कार या ऑटोमैटिक वॉशिंग मशीन खरीदना। प्लॉट या फ्लैट खरीदना।

साफ है, कभी-कभार होने वाला ठोस खर्च अच्छा होता है। ऑटोमैटिक वाशिंग मशीन से मेहनत बचेगी और समय भी। इस मेहनत और समय को हम अपनी कमाई बढ़ाने में इस्तेमाल कर सकते हैं। फ्लैट या प्लॉट की कीमत बढ़ेगी और इससे आपकी संपत्ति।

दूसरी तरफ बिजली का बिल, मोबाइल का बिल, सोसाइटी का मेंटेनेंस जैसे बार-बार यानी रिपीट होने वाले खर्च हैं, हम यही चाहते हैं कि ऐसे रिपीट होने वाले खर्च जितने कम हो उतना अच्छा।

अब बात कमाई की…

खर्च से ठीक उलट कमाई जितनी ज्यादा बार हो, उतना अच्छा। सोचिए आपकी सैलरी हर महीने के बजाय हर हफ्ते मिलने लगे। या सैलरी के अलावा कभी नोएडा में खरीदे गए एक फ्लैट का किराया भी मिलने लगे।

मतलब साफ है कमाई बार-बार यानी रिपीट होना चाहिए। कभी-कभार होने वाली यानी नॉन-रिपीटेटिव कमाई ठीक नहीं। पता नहीं कभी हो कभी नहीं।

बस, इसी तरह सरकार भी चाहती है कि उसकी रेवन्यू पॉकेट में आने वाला रिपीट पैसा जितना ज्यादा हो उतना बढ़िया, जैसे टैक्स से मिलने वाला पैसा। लेकिन सरकार रेवन्यू पॉकेट से होने वाले रिपीट खर्च को कम से कम करना चाहती है। जैसे कर्मचारियों की सैलरी-पेंशन या सब्सिडी पर होने वाला खर्च।

वहीं सरकार कैपिटल पॉकेट से ज्यादा से ज्यादा खर्च करती है। यानी ठीक हमारी तरह रिपीट न होने वाला ठोस खर्च। जो आगे चलकर कमाई बढ़ाए। जैसे हाईवे, एयरपोर्ट और बिजली घर।

लेकिन कमाई के मामले में सरकार कैपिटल पॉकेट पर कम से कम निर्भर रहना चाहती है। जैसे कर्ज या विदेशी अनुदान से होने वाली नॉन रिपटेटिव कमाई।

बजट में सरकार अपने रेवन्यू खर्च और कैपिटल खर्च के बीच बैलेंस बनाती है, क्योंकि सिर्फ पुल, हाईवे और हवाई अड्डे बनाने से काम नहीं चलता, लोगों को अच्छी सैलरी और पेंशन देना जरूरी है।

सवाल-6: सरकार के पास पैसा आता कहां से है? जवाब: सबसे पहले जानते हैं कि 2024-25 में सरकार के रेवन्यू और कैपिटल पॉकेट में पैसा कहां से आएगा-

सवाल-7: अब जानते हैं कि सरकार का पैसा जाएगा कहां?

जवाबः

सवाल-8: मोदी सरकार का राजकोषीय घाटा कितना है?

जवाबः राजकोषीय घाटा 2024-25 के बजट अनुमान में 16.13 लाख करोड़ रुपए या जीडीपी का 4.9 प्रतिशत आंका गया था।

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