अमेरिका ने अपने सबसे घातक बम बरसाने वाले विमान B-2 स्पिरिट बॉम्बर की 30% फ्लीट हिंद महासागर में एक छोटे से द्वीप डिएगो गार्सिया में तैनात कर दी है। ये जगह ईरान से महज 5 हजार किमी दूर है।
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अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि अगर वे (ईरान के नेता) समझौता नहीं करते हैं, तो ऐसी बमबारी होगी जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखी होगी। जवाब में ईरान ने भी अपनी अंडरग्राउंड मिसाइल्स का जखीरा लॉन्चर्स में लोड कर लिया है।
क्या अमेरिका और ईरान में जंग छिड़ने वाली है, ट्रम्प आखिर किस न्यूक्लियर डील का दबाव बना रहे हैं, ये स्थिति भारत के लिए सिरदर्द क्यों बन सकती है; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में…
सवाल-1: डोनाल्ड ट्रम्प ईरान पर बमबारी की धमकी क्यों दे रहे हैं?
जवाब: ट्रम्प ने फरवरी 2025 में ही मीडिया से कहा था- ‘ईरान के पास दो तरीके हैं- मिलिट्री या फिर डील। मैं समझौता करना पसंद करूंगा, क्योंकि मैं ईरान को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता।’
इसके बाद 12 मार्च को ट्रम्प ने UAE के एक दूत के जरिए ईरान को चिट्ठी भेजी। ईरानी न्यूज एजेंसी इरना के मुताबिक, चिट्ठी में कहा गया कि अगर ईरान बातचीत के लिए तैयार नहीं होता तो अमेरिका, ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकने के लिए कुछ भी करेगा।
ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अरागची ने जेद्दा में ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन (OIC) की बैठक के बाद कहा, ‘हम अमेरिका के साथ कोई बातचीत नहीं करेंगे।’
पिछले हफ्ते खबर आई कि ईरान ने ओमान के जरिए ट्रम्प की चिट्ठी का जवाब देते हुए कहा है कि अमेरिका जब तक अपनी प्रेशर पॉलिसी नहीं बदलता तब तक बातचीत असंभव है।
अब रविवार 30 मार्च को इस पर ट्रम्प का धमकी भरा बयान आया। उन्होंने अमेरिकी न्यूज चैनल NBC न्यूज से कहा, ‘हमारे ऑफिसर्स ईरानी ऑफिसर्स से बात कर रहे हैं। अगर ईरान अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील नहीं करता है तो उस पर बमबारी की जाएगी और एक्स्ट्रा टैरिफ लगाए जाएंगे।’
सवाल-2: ट्रम्प कोरी धमकी दे रहे या अमेरिका ने ईरान पर बमबारी का कोई प्लान बनाया है?
जवाब: ट्रम्प का बमबारी वाला बयान आने के एक दिन पहले यानी 29 मार्च को अमेरिका के ‘प्लैनेट लैब्स’ ने कुछ सैटेलाइट इमेज जारी कीं।
इनमें दिखाया गया कि हिंद महासागर में ब्रिटेन के अधिकार वाले इलाके डिएगो गार्सिया में कम से कम चार B-52 बॉम्बर प्लेन तैनात किए गए हैं। डिएगो गार्सिया ईरान की राजधानी तेहरान से 5,267 किलोमीटर की दूरी पर बना अमेरिकी बेस है।
सवाल-3: ट्रम्प की धमकी के बाद ईरान ने क्या-क्या किया?
जवाब: 30 मार्च को ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान ने कहा कि ईरान अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम पर अमेरिका के साथ कोई सीधी बातचीत नहीं करेगा। हालांकि पेजेश्कियान ने ये भी कहा कि ओमान के जरिए ईरान ने अमेरिका के साथ बातचीत का रास्ता खुला छोड़ा है।
उन्होंने कहा,
हम बातचीत से पीछे नहीं हट रहे हैं, लेकिन उन्हें (अमेरिका को) ये साबित करना होगा कि वे भरोसा कायम करेंगे। सुप्रीम लीडर खामेनेई ने भी कहा है कि अप्रत्यक्ष बातचीत अभी भी जारी रह सकती है।
अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने पेजेश्कियान के इस बयान का जवाब देते हुए कहा, ‘अगर ईरानी सरकार समझौता नहीं चाहती तो प्रेसिडेंट ट्रम्प दूसरे विकल्प देखेंगे, जो ईरान के लिए बहुत बुरा होगा।’
इसके बाद ईरानी न्यूज एजेंसी तेहरान टाइम्स की रिपोर्ट आई, जिसमें दावा किया गया, ‘ईरान ने अपनी अंडरग्राउंड मिसाइल सिटीज में मिसाइल्स लॉन्चर लोड कर ली हैं। ईरान हमला करने के लिए तैयार है।’
ईरानी न्यूज एजेंसी ईरान ऑब्जर्वर ने सोशल मीडिया साइट X पर एक वीडियो जारी किया। इसमें एक अंडरग्राउंड टनल में मिसाइल्स का जखीरा दिखाते हुए लिखा, ‘अंडरग्राउंड मिसाइल सिटीज में सटीक हमला करने वाली खैबर शेकन, हज कासिम सेजिल और इमाद जैसी हजारों ईरानी मिसाइल्स लोड की जा चुकी हैं। पैंडोरा बॉक्स खुला तो अमेरिकी सरकार और उसके सहयोगियों को भारी कीमत चुकानी होगी।’
सवाल-4: ये न्यूक्लियर डील क्या है, जिसके लिए अमेरिका और ईरान में सीधी जंग की नौबत आ गई?
जवाब: ईरान लंबे समय से परमाणु हथियार बनाने की कोशिश कर रहा है। ईरान कहता है कि उसका न्यूक्लियर प्रोग्राम पूरी तरह शांतिपूर्ण है, लेकिन अमेरिका जैसे देशों को इस पर भरोसा नहीं, इसलिए ईरान को रोकने की कोशिश करते हैं।
परमाणु बम बनाने के लिए यूरेनियम जैसे रेडियोएक्टिव तत्वों को सेंट्रीफ्यूज नाम की तेजी से घूमने वाली मशीनों में डालकर शुद्ध किया जाता है। सेंट्रीफ्यूज के जरिए यूरेनियम में अगर यूरेनियम के आइसोटोप U-235 की मात्रा 90% तक पहुंचा दी जाए तो इससे परमाणु बम बनाए जा सकते हैं। इससे कम परसेंटेज वाले यूरेनियम का इस्तेमाल बिजली बनाने वाले न्यूक्लियर रिएक्टर में ही हो सकता है।
ईरानी न्यूक्लियर प्लांट में रखी सेंट्रीफ्यूज मशीनों की एक तस्वीर
ईरान के पास यूरेनियम की प्योरिटी बढ़ाने वाले दो न्यूक्लियर प्लांट थे- नतांज और फोर्डो। जुलाई 2015 तक इनमें लगभग 20,000 सेंट्रीफ्यूज मशीनें काम कर रही थीं। इससे करीब 8 परमाणु बम बनाए जा सकते थे, लेकिन अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए।
इसके चलते ईरान को 2012 से 2015 तक तेल की बिक्री में 160 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ था। इसका हल निकालने के लिए साल 2015 में ईरान ने P5+1 ग्रुप यानी अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, रूस और जर्मनी के साथ अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम को लेकर एक समझौता किया। इसे जॉइंट कॉम्प्रेहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन यानी JCPOA कहा गया।
इस समझौते से ईरान पर तेल बेचने और व्यापार के प्रतिबंध हटा लिए गए। उसे विदेशों में जब्त 100 बिलियन डॉलर की रकम भी वापस मिल गई। बदले में ईरान को 4 समझौते करने पड़े…
- ईरान 2026 तक नतांज में 5,060 से ज्यादा सेंट्रीफ्यूज इस्तेमाल नहीं करेगा।
- ईरान का प्योर यूरेनियम का भंडार 98% घटा दिया गया। इसे 2031 तक बढ़ाया नहीं जाएगा।
- रिसर्च के लिए सिर्फ नतांज न्यूक्लियर प्लांट में ही काम होगा। फोर्डो में यूरेनियम का संवर्धन नहीं होगा। वहां बचे 1,044 सेंट्रीफ्यूज से सिर्फ मेडिकल, इंडस्ट्री और साइंस के इस्तेमाल के लिए ही यूरेनियम का संवर्धन होगा।
- ईरान के अराक शहर में लग रहे प्लूटोनियम के रिएक्टर पर भी 2031 तक के लिए रोक लगा दी गई, जिसका इस्तेमाल परमाणु हथियार बनाने में हो सकता था।
हालांकि ईरान ने समझौते के बावजूद गुपचुप तरीके से यूरेनियम का भंडार इकट्ठा करना जारी रखा। इस पर अमेरिका ने JCPOA समझौते को रद्द कर दिया और ईरान पर और सख्त प्रतिबंध लगा दिए।
सवाल-5: अमेरिका के सख्त प्रतिबंधों का क्या नतीजा निकला और अब ट्रम्प क्या चाहते हैं?
जवाब: मई 2018 में ट्रम्प ने JCPOA समझौते को रद्द करके 2019 में और सख्त नियम लागू कर दिए। रिपोर्ट्स के मुताबिक नवंबर 2021 तक ईरान ने प्रतिबंधों के तहत मिली मंजूरी से कहीं ज्यादा करीब 17.7 किलो संवर्धित यूरेनियम का भंडार जमा कर लिया था। ये यूरेनियम 60% तक प्योर था, जो कि बम बनाने के लिए जरूरी प्योरिटी से थोड़ा ही कम था।
फोर्डो में भी न्यूक्लियर एक्टिविटी शुरू कर दी गई। मंजूरी से कहीं ज्यादा और आधुनिक सेंट्रीफ्यूज लगाकर बम के लिए जरूरी प्योर यूरेनियम बनाना शुरू कर दिया। प्रतिबंध के तहत इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) के निरीक्षकों को ईरान के न्यूक्लियर प्लांट की निगरानी करनी थी, ईरान ने एजेंसी को घुसने से रोक दिया।
JCPOA के समझौते को दोबारा से लागू करने के लिए मई 2021 में दोबारा ईरान और अमेरिका में बातचीत शुरू हुई थी। तब बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति थे। हालांकि इसका कोई खास नतीजा नहीं निकला।
दिसंबर 2024 में IAEA के महानिदेशक राफेल ग्रॉसी ने कहा कि ये कोई सीक्रेट नहीं है कि ईरान के नेता परमाणु हथियार विकसित करना चाहते हैं। ग्रॉसी की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘ईरान फोर्डो न्यूक्लियर प्लांट में दो सेंट्रीफ्यूज में यूरेनियम डाल रहा है। इससे हर महीने 60% प्योरिटी वाला 34 किलोग्राम यूरेनियम बनेगा। ये बहुत चिंताजनक है।’
इसीलिए अब ट्रम्प चाहते हैं कि ईरान प्रतिबंधों को तोड़ना बंद करे और एक बार फिर से अमेरिका के साथ नए सिरे से न्यूक्लियर डील के लिए तैयार हो जाए। हालांकि बीते दिनों में इजराइल और हमास के बीच युद्ध के चलते अमेरिका और ईरान के संबंध और बिगड़ गए, जिसका असर इस न्यूक्लियर डील पर पड़ा है।
सवाल-6: क्या ईरान और अमेरिका के बीच न्यूक्लियर डील खटाई में पड़ गई?
जवाब: 7 अक्टूबर 2023 को हमास के लड़ाकों ने इजराइल में घुसकर कत्लेआम मचाया। इसके बाद इजराइल ने गाजा इलाके पर हमला बोल दिया। इस जंग के दौरान ईरान ने हमास और हिजबुल्लाह का साथ दिया।
इजराइल के हमले में हिजबुल्लाह लीडर हसन नसरल्लाह की मौत के बाद अक्टूबर 2024 में ईरान ने इजराइल पर करीब 200 बैलिस्टिक मिसाइल्स दागीं। बदले में इजराइल ने भी हवाई हमले किए। कथित रूप से इजराइल ने ईरान के न्यूक्लियर प्लांट्स पर भी मिसाइल्स दागीं।
इधर अमेरिका ने इजराइल का खुले तौर पर साथ दिया। ईरान पर हमले की धमकी भी दी। जनवरी 2025 में ट्रम्प जब दूसरी बार अमेरिका के प्रेसिडेंट बने तो न्यूयॉर्क पोस्ट से कहा था, ‘परमाणु अप्रसार को लेकर ईरान से समझौता करना पसंद करूंगा। कोई मरना नहीं चाहता। अगर हम समझौता कर लें तो इजराइल उन पर (ईरान पर) बमबारी नहीं करेगा।’
ट्रम्प की धमकी के जवाब में 8 मार्च को ईरान के विदेश मंत्री अब्बास ने खुले तौर पर कहा, ‘ईरान का न्यूक्लियर प्रोग्राम किसी हमले से खत्म नहीं किया जा सकता। ये टेक्नोलॉजी हमने हासिल कर ली है और जो टेक्नोलॉजी दिमाग में मौजूद हो, उसे किसी बम से नष्ट नहीं किया जा सकता।’
विदेशी मामलों के जानकार प्रोफेसर राजन कुमार कहते हैं, ‘फिलहाल अमेरिका और ईरान के बीच डील होती नहीं दिख रही। हालांकि एक थ्योरी ये भी है कि अगर अमेरिका और ईरान के बीच न्यूक्लियर डील हो गई होती, तो हो सकता है कि इजराइल और हमास के बीच युद्ध ही न होता, क्योंकि तब समझौते के तहत अपना व्यापारिक फायदा देखते हुए ईरान, अमेरिका या इजराइल के खिलाफ नहीं जाता। इससे हमास भी कमजोर पड़ता।’
सवाल-7: तो क्या अब अमेरिका और ईरान के बीच जंग होगी?
जवाब: प्रोफेसर राजन कुमार कहते हैं कि आने वाले कुछ दिनों में अमेरिका और ईरान में जंग छिड़ने की पूरी संभावना है। वह इसके पीछे तर्क देते हुए कहते हैं, ‘अमेरिका और ईरान की जंग से इजराइल को फायदा है। ट्रम्प की सरकार में इस्लामिक कट्टरवाद के खिलाफ और यहूदियों को सपोर्ट करने वाली लॉबी है, वह ईरान पर हमला करने के पक्ष में है। अमेरिका भी खाड़ी के इलाकों के सुन्नी देशों जैसे कि कतर, ओमान और सऊदी अरब को ताकत देना चाहता है और इस इलाके में ईरान को कमजोर करना चाहता है।
अमेरिका ने साल 2020 में एक हवाई हमले में ईरान के शीर्ष सैन्य जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या कर दी थी। राजन कुमार के मुताबिक, तब से ईरान भी अमेरिका से इसका बदला लेने के लिए तैयार बैठा है।
सवाल-8: ईरान और अमेरिका की जंग भारत का सिरदर्द कैसे बढ़ा सकती है?
जवाब: राजन कुमार कहते हैं कि अमेरिका और ईरान के बीच जंग होने से भारत के लिए 4 तरह की दिक्कतें होंगी-
- व्यापार में रुकावट: ईरान के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में ओमान की खाड़ी के किनारे भारत ने 4,000 करोड़ रुपए से ज्यादा की लागत से चाबहार पोर्ट डेवलप किया था। इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर यानी INSTC, भारत, ईरान, रूस और यूरोप के बीच व्यापारिक रास्ता है। भारत चाहता है कि चाबहार प्रोजेक्ट INSTC में शामिल कर लिया जाए। जंग के चलते अमेरिका ईरान पर व्यापारिक प्रतिबंध लगाएगा। इससे भारत का ये पूरा प्रोजेक्ट प्रभावित होगा।
- भारतीय प्रवासियों पर असर: सऊदी अरब और UAE जैसे खाड़ी के देशों में करीब 85 लाख भारतीय काम करते हैं, जो कि करीब 6 लाख करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा भारत भेजते हैं। इस इलाके में जंग शुरू होने से बड़े पैमाने पर भारतीयों की वापसी हो सकती है।
- तेल की आपूर्ति घटेगी: भारत अपनी जरूरत का करीब 70% तेल मिडिल ईस्ट से मंगवाता है। ईरान से करीब 10% तेल लेता है। जंग हुई तो भारत को करीब 20% महंगा तेल मिलेगा।
- राजनीतिक दिक्कतें: भारत ने अमेरिका से करीब 1.6 लाख करोड़ रुपए के रक्षा समझौते किए हैं। ईरान से भी उसके अच्छे संबंध हैं। जंग की स्थिति में अमेरिका भारत से ईरान पर लागू व्यापारिक प्रतिबंध मानने का दबाव डाल सकता है। ऐसे में भारत के लिए यह कूटनीतिक संतुलन बनाना मुश्किल होगा।
राजन कुमार के मुताबिक, भारत के अमेरिका, ईरान और इजराइल से अच्छे संबंध हैं। वह जंग की स्थिति में संतुलित बयान जारी करेगा। इस युद्ध में उसकी कोई बड़ी भूमिका नहीं रहेगी, क्योंकि वह किसी एक के समर्थन में खड़े होने की स्थिति में नहीं है।
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