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कुरुक्षेत्र में महाभारत काल से प्रज्ज्वलित अखंड ज्योति: सरस्वती तीर्थ पर पिंडी रूप में विराजमान कार्तिकेय; विश्व का अकेला मंदिर; महिलाओं का प्रवेश वर्जित – Haryana News


सरस्वती तीर्थ पर पिंडी स्वरूप में विराजमान स्वामी कार्तिकेय।

हरियाणा के कुरुक्षेत्र का भगवान कार्तिकेय का मंदिर पूरे भारत में अपनी अनूठी मान्यता के लिए प्रसिद्ध है। यहां महाभारत काल से अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित है। मान्यता है कि यह ज्योति स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के आदेश से युधिष्ठिर ने प्रज्ज्वलित की थी। तभी से मं

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मंदिर में महाभारत काल से जल रही अनवरत ज्योति।

कार्तिकेय मंदिर की अनोखी मान्यता

पिहोवा के सरस्वती तीर्थ पर कार्तिकेय मंदिर आस्था और धार्मिक मान्यताओं का अद्भुत केंद्र है। यहां भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय पिंडी स्वरूप में विराजमान हैं। यह मंदिर पूजा का स्थल ही नहीं बल्कि पितरों के मोक्ष की कामना के लिए भी विशेष स्थान रखता है। इसलिए श्रद्धालु पिंडदान व गति कर्म के बाद कार्तिकेयजी को तेल और सिंदूर जरूर अर्पित करते हैं। मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगी रहती है। इसे तेल वाला मंदिर भी कहा जाता है।

कार्तिकेय मंदिर में तेल अर्पित करने के लिए लाइन में लगे श्रद्धालु।

पौराणिक शाप का असर

मंदिर के महंत राजतिलक गिरी के मुताबिक, इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। पद्म पुराण में कथा आती है कि भगवान शिव ने कार्तिकेय का राजतिलक करने की इच्छा की। तब माता पार्वती ने कार्तिकेयजी और गणेशजी के राजतिलक के लिए शर्त रख दी। इस शर्त में पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले लौटने वाले का राजतिलक करने का निर्णय हुआ।

मंदिर में महिलाएं कार्तिकेयजी के दर्शन नहीं करती।

शर्त के बाद कार्तिकेयजी मोर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करने चले गए, जबकि गणेश जी ने माता-पिता को ही संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक मानकर उनकी परिक्रमा करके शर्त जीत ली। कुछ समय बाद कार्तिकेयजी लौटे तो उनको गणेशजी का राजतिलक होने की बात पता चली। उन्होंने अपने साथ माता का छल समझकर अपना मांस और खाल का त्याग कर माता के चरणों में अर्पित कर दिया।

आज भी चल रही परंपरा

क्रोध स्वरूप कार्तिकेय जी ने शाप दिया कि उनके इस स्वरूप के दर्शन करने वाली महिला 7 जन्म तक विधवा रहेगी। इस वजह से महिलाएं मंदिर में कार्तिकेय के दर्शन नहीं करती हैं। इस परंपरा को आज भी निभाया जा रहा है। मंदिर के बाहर स्पष्ट निर्देश हिंदी और पंजाबी भाषा में लिखा हुआ है। चैत्र चौदस मेले पर लाखों श्रद्धालु मंदिर में कार्तिकेय जी के पिंडी स्वरूप का दर्शन करते हैं, जिसके लिए लंबी लाइन लगती है।

पिंडी रूप में कार्तिकेयजी का अकेला मंदिर।

पिंडी रूप में अकेला मंदिर

महंत राजतिलक गिरी ने बताया कि देशभर में कार्तिकेयजी के काफी मंदिर है। दक्षिण भारत में उनको मुरुगन, सुब्रह्मण्य, कुमार, स्कंद, सरवण, अरुमुख, देव सेनापति, गुहा, स्वामीनाथ समेत कई अन्य नाम से जाना जाता है, मगर उत्तर भारत में उनके 2 मंदिर है, जिसमें 1 मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग और दूसरा पिहोवा में स्थित है। मगर पिहोवा में कार्तिकेय जी पिंडी रूप में विराजमान है। दावा है कि यह विश्व का अकेला मंदिर है।



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