सरकारी जमीनों के खुर्द-बुर्द होने पर हाई कोर्ट ने चिंता जताई है। मुरार स्थित करीब 4 बीघा शासकीय जमीन के मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस आनंद पाठक और जस्टिस हिरदेश की डिवीजन बेंच ने कहा कि सरकार की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में
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इस मामले में प्रमुख सचिव (राजस्व) को शपथ पत्र पर सरकारी जमीनों को बचाने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देने का निर्देश दिया गया है। मामले की अगली सुनवाई 7 जुलाई वाले सप्ताह में होगी। मामला जनहित याचिका के माध्यम से हाई कोर्ट में पहुंचा।
दीपक कुमार, नवाब सिंह परिहार और अन्य ने याचिका दायर कर रामचरण, गीता और पूरन बाथम पर खसरा क्रमांक 703, 705, 706, 707, 708 की लगभग 4 बीघा 1 बिस्वा शासकीय जमीन हड़पने का आरोप लगाया था।
याचिका में सिविल कोर्ट में दायर केस का हवाला भी दिया गया, जिसमें उक्त जमीन के स्वामित्व को लेकर दावा पेश किया गया था।सिविल कोर्ट ने 23 अप्रैल 2024 को एक पक्षीय फैसला देते हुए सरकारी जमीन को निजी मानते हुए रामचरण और अन्य को भूमिस्वामी घोषित किया।
दूसरी ओर, मप्र शासन ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ताओं ने तथ्यों को छुपाकर याचिका दायर की है। सवाल यह उठता है कि याचिकाकर्ता सिविल कोर्ट में क्यों चुप रहे और उस आदेश के खिलाफ अपील क्यों नहीं की? हाई कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रमुख सचिव से जवाब तलब किया है।