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गांधी मेडिकल कॉलेज में TMS ​​​​​​​से ब्रेन डिसऑर्डर का इलाज: OCD से लेकर सिजोफ्रेनिया तक में कारगर,15 मिनट के सेशन से मिलेगा आराम – Bhopal News


ऐसे मानसिक रोगी जिन पर दवाओं असर नहीं होता उनको भी बीमारियों से छुटकारा मिलेगा। इसके लिए गांधी मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग में ट्रांसक्रोनियल मैग्नेटिक स्टीमुलेशन (TMS) मशीन मौजूद है। इस मशीन से गैर-आक्रामक उपचार पद्धति से ओसीडी (OCD), सिजोफ्रेनिया,

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मेगनेटिक फील्ड के उपयोग से होता है इलाज

टीएमएस (TMS) मशीन मस्तिष्क के खास भागों को एक्टिव करने के लिए चुंबकीय क्षेत्रों (मेग्नेटिक फील्ड) का इस्तेमाल करती है। इसमें एक क्वाइल होती है। जिसे सिर पर रखा जाता है। यह क्वाइल एक छोटा, केंद्रित चुंबकीय क्षेत्र बनाती है। जब यह मेग्नेटिक फील्ड दिमाग में प्रवेश करता है, तो यह न्यूरॉन्स (मस्तिष्क की कोशिकाओं) में छोटे विद्युत प्रवाह उत्पन्न करता है। जिससे ये न्यूरॉन्स सक्रिय हो जाते हैं। कई मामलों में इसकी मदद से न्यूरॉन्स को निष्क्रिय भी किया जाता है।

टीएमएस मशीन मस्तिष्क के संबंधित भाग को सक्रिय करने के लए मेग्नेटिक फील्ड का इस्तेमाल करती है।

मनोचिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष, डॉ. जेपी अग्रवाल ने बताया कि मानसिक बीमारियों में अक्सर मस्तिष्क में न्यूरो ट्रांसमीटर जैसे सेरोटॉनिन, डोपामाइन और नॉरपेनेफ्रिन का संतुलन बिगड़ जाता है। मेग्नेटिक सिस्टम में क्वाइल से चुंबकीय किरणें निकलती हैं, जो इस असंतुलित हिस्से को संतुलित कर देती हैं। इस तकनीक की सफलता दर 80 से 90 प्रतिशत है। खासकर उन 50 प्रतिशत मरीजों के लिए जिन पर दवाएं असर नहीं करती हैं।

इन बीमारियों में कारगर

  • मेजर डिप्रेशन डिसऑर्डर में मस्तिष्क के कुछ हिस्सों की गतिविधि कम हो जाती है। TMS इस हिस्से को उत्तेजित करके मूड को नियंत्रित करने वाले केमिकल्स का संतुलन सुधारता है। यह उन मरीजों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है जिन्हें दवा या अन्य उपचारों से राहत नहीं मिली है।
  • OCD में मस्तिष्क के कुछ हिस्से अत्यधिक सक्रिय हो जाते हैं। TMS इन हिस्सों की बढ़ी हुई गतिविधि को कम करने में मदद करता है। यह उन लोगों के लिए एक विकल्प है जिन्हें पारंपरिक उपचारों से पर्याप्त फायदा नहीं हुआ है।
  • कुछ प्रकार के माइग्रेन के इलाज और रोकथाम के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। यह सिरदर्द शुरू होने से पहले या उसके दौरान मस्तिष्क के कुछ क्षेत्रों को नियंत्रित करके काम करता है।
  • सिजोफ्रेनिया के कुछ लक्षणों, जैसे मतिभ्रम या भ्रम, को कम करने में भी यह सहायक हो सकती है।
  • एंग्जाइटी और पैनिक अटैक के मामलों में भी मस्तिष्क के असंतुलित हिस्सों को संतुलित कर यह तकनीक राहत प्रदान कर सकती है।

टीएमएस से उपचार हुआ आसान एक सेशन में मरीज को लगभग 20 मिनट का समय लगता है। हालांकि डॉ. अग्रवाल के अनुसार, यह सिर्फ 15 मिनट में भी संभव है। ऐसे अधिकतम 10 से 20 सेशन देने होते हैं। खास बात यह है कि आधे घंटे में मरीज की छुट्टी हो जाती है। मरीज को अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं होती है। इससे होने वाले दुष्प्रभाव हल्के और अस्थायी होते हैं। जैसे इलाज की जगह पर हल्का सिरदर्द या बेचैनी, चेहरे की मांसपेशियों में हल्की ऐंठन या चक्कर आना।



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