भव सागर चह पार जो पावा। राम कथा ता कहं दृढ़ नावा॥… जो व्यक्ति भवसागर से पार होना चाहता है, उसके लिए राम कथा नाव के समान है। विचार करके देखें- संसार की उपमा सागर से ही क्यों दी गई है, क्योंकि सागर और संसार में कुछ समानताएं हैं। जैसे सागर चंचल रहता ह
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शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने चंद्रेश्वर महादेव मंदिर बिसनावदा में नौ दिवसीय श्रीराम कथा के पहले दिन मंगलवार को यह बात कही। व्यासपीठ का पूजन दारासिंह पटेल ने किया।
व्यासपीठ पर डॉ. गिरीशानंदजी महाराज
जो भाव में आ जाता है, वह भव से पार हो जाता है
महाराजश्री ने कहा कि मन चंचल होता है, जो कभी संसार को स्थिर नहीं रहने देता है। सागर की तरंगें एक पल में आसमान चूम लेती हैं और उसी पल पता नहीं चलता कहां चली गई हैं। यही हाल संसार का रहता है। सागर के तट पर खड़े हो जाओ तो दूसरा तट दिखाई नहीं देता, वैसे ही संसार में जन्म तो दिखाई देता है पर मृत्यु दिखाई नहीं देती। उथल-पुथल मची रहती है। इस संसार सागर को पार करने के लिए राम कथा ही जहाज का काम करती है। जो भाव में आ जाता है, वह भव से पार हो जाता है। किसी किसी व्यक्ति को चित्र में भगवान दिखते हैं और किसी किसी को भगवान में चित्र दिखता है। जिसमें भाव का अभाव होता है, उसे भगवान में मूर्ति दिखती है, जिसके पास भाव होता है, उसे मूर्ति में भगवान दिखते हैं। जो कुछ भी है वह भाव का खेल ही है।
कथा के बाद आरती करते श्रद्धालु
आरती करते श्रद्धालु