राजस्थान में 36 साल पहले सीकर जिले के दिवराला गांव में हुए रूप कंवर सती महिमामंडन कांड में बुधवार को फैसला सुनाया गया। सती प्रथा के महिमामंडन के इस मामले में 8 आरोपियों को बरी कर दिया है।
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दरअसल, 4 सितंबर 1987 को दिवराला गांव में 18 साल की रूप कंवर अपने पति की चिता पर जलकर सती हो गई थीं। भारत में सती होने का यह आखिरी मामला था।
रूप कंवर के सती होने के बाद दिवराला गांव में ही उसकी तेरहवीं पर चुनरी महोत्सव का आयोजन किया गया था। इसमें लाखों लाेग शामिल हुए थे। एक साल बाद रूप कंवर की पहली बरसी पर उन्हें सती माता का दर्जा देते हुए जुलूस निकाला गया था। तब सती का महिमामंडन करने पर 45 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।
इस घटना ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा था, क्योंकि 158 साल पहले दिसंबर 1829 में ब्रिटिश राज के दौरान ही सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
बुधवार को जयपुर महानगर द्वितीय की सती निवारण स्पेशल कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई। कोर्ट ने श्रवण सिंह, महेंद्र सिंह, निहाल सिंह, जितेंद्र सिंह, उदय सिंह, नारायण सिंह, भंवर सिंह और दशरथ सिंह को बरी कर दिया है।
सती महिमामंडन मामले में फैसला आने के बाद कोर्ट परिसर के बाहर मौजूद बरी हुए 8 लोग और उनके वकील।
18 साल की उम्र में हुई थीं सती रूप कंवर (18) जयपुर के ट्रांसपोर्ट कारोबारी बाल सिंह राठौड़ की सबसे छोटी बेटी थी। रूप कंवर की शादी सीकर के दिवराला गांव के माल सिंह से 17 जनवरी 1987 को हुई थी।
3 सितंबर 1987 को माल सिंह (24) के पेट में अचानक दर्द उठा। इलाज के लिए सीकर लेकर गए, वहां चार सितंबर को उनकी मौत हो गई। माल सिंह की मौत के बाद उसकी चिता पर रूप कंवर भी जलकर सती हो गई थीं।
बताया जाता है कि उस वक्त रूप कंवर पर सती होने के लिए दबाव बनाया गया था। हालांकि ग्रामीणों ने कहा कि रूप कंवर अपनी मर्जी से सती हुई थीं।
सीकर के दिवराला में जिस स्थान पर रूप कंवर सती हुई थीं, वहां उनका मंदिर बनाया गया था।
सती माता का दर्जा देकर चुनरी महोत्सव मनाया समाज के लोगों ने उन्हें सती माता का दर्जा दे दिया और याद में छोटे से मंदिर का निर्माण भी कर दिया। इसके बाद राजपूत समाज ने 16 सितंबर को दिवराला गांव में चिता स्थल पर चुनरी महोत्सव की घोषणा कर दी। कुछ ही दिनों में पूरे राजस्थान में यह चर्चा का विषय बन गया।
कई संगठन सती प्रथा का महिमामंडन बताते हुए इसके विरोध में उतरे। सामाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों ने राजस्थान हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा के नाम इस समारोह को रोकने के लिए चिट्ठी लिखी।
15 सितंबर को जस्टिस वर्मा ने चिट्ठी को ही जनहित याचिका मानकर समारोह पर रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट ने चुनरी महोत्सव को सती प्रथा का महिमामंडन माना। साथ ही सरकार को आदेश दिया कि ये समारोह किसी भी स्थिति में न हो।
लेकिन, रोक के बावजूद दिवराला गांव में 15 सितंबर की रात से ही लोग जमा होने लगे। बताते हैं 10 हजार की आबादी वाले गांव में एक लाख से ज्यादा लोग चुनरी महोत्सव के लिए इकट्ठा हो गए थे। हाईकोर्ट के आदेशों के बावजूद पुलिस गांव से दूर ही रही। लोगों ने तय समय सुबह 11 बजे से पहले ही सुबह 8 बजे चुनरी महोत्सव मना लिया। इस महोत्सव में कई पार्टियों के विधायक भी शामिल हुए थे।
यह रूप कंवर के सती होने की तस्वीर है।
राजस्थान सरकार को लाना पड़ा था अध्यादेश रूप कंवर सती कांड से राजस्थान की देशभर में आलोचना होने लगी थी। इस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी ने गृह मंत्री गुलाब सिंह शक्तावत की अध्यक्षता में कमेटी गठित की। इसके बाद राज्य सरकार एक अक्टूबर 1987 को सती निवारण और उसके महिमामंडन को लेकर एक अध्यादेश लाई, जिसे तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी।
अध्यादेश के तहत किसी विधवा को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सती होने के लिए उकसाने वालों को फांसी या उम्र कैद की सजा देने और ऐसे मामलों को महिमामंडित करने वालों को सात साल कैद और अधिकतम 30 हजार रुपए जुर्माना लगाने का प्रावधान रखा गया था।
मंत्रिमंडल द्वारा अध्यादेश पारित करने के बाद तत्कालीन राज्यपाल बसंत दादा पाटिल ने राजस्थान सती निरोधक अध्यादेश 1987 पर दस्तखत कर दिए। बाद में सती (निवारण) अधिनियम को राजस्थान सरकार ने 1987 में कानून बनाया।
पति माल सिंह के साथ रूप कंवर।
सरकार ने दर्ज करवाया था केस रूप कंवर की पहली बरसी के मौके पर 22 सितंबर 1988 को राजपूत समाज के लोगों ने दिवराला से अजीतगढ़ तक एक जुलूस निकाला था। तब घटना का महिमामंडन करने पर तत्कालीन सरकार ने 45 लोगों के खिलाफ केस दर्ज करवाया था।
आजादी के बाद राजस्थान में सती के 29 केस हुए, रूप कंवर आखिरी थीं। रूप कंवर के सती होने की घटना विश्व में चर्चित थी। प्रदेश और देश की बदनामी हुई। इस घटना ने काफी तूल पकड़ा था।
सती मामले की जल्द सुनवाई के लिए जयपुर में सती निवारण केसाें की विशेष कोर्ट बनी। इसी मामले को लेकर यह कोर्ट बनी थी और आज यह फैसला सुनाया है।
पहले 11 आरोपी हो चुके बरी सती निवारण केसों की विशेष कोर्ट ने 31 जनवरी 2004 को 11 आरोपियों को बरी कर दिया था। अभियोजन यह साबित नहीं कर पाया था कि आरोपियों ने महिमामंडन किया। कोर्ट ने इस मामले में जिन आरोपियों को बरी किया था, उनमें राजेंद्र राठौड़, प्रताप सिंह खाचरियावास, नरेंद्र सिंह राजावत, गोपाल सिंह राठौड़, रामसिंह मनोहर, आनंद शर्मा, ओंकार सिंह, जगमल सिंह, बजरंग सिंह, प्रहलाद सिंह और सुमेर सिंह शामिल थे।