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पॉजिटिव स्टोरी- बच्चों को साइंस सिखाने का खिलौना बनाया: बिजनेस डेढ़ करोड़, 10वीं में था तो पिता की मौत; जॉब छोड़ शुरू की कंपनी


‘2008 की बात है। केंद्रीय विद्यालय में एडमिशन के लिए हाथ में 11वीं का फॉर्म था। लाइन में खड़ा होकर फॉर्म सब्मिट करने का इंतजार कर रहा था, तभी दोस्त के मोबाइल पर घर से फोन आया।

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उस वक्त मेरे पास मोबाइल भी नहीं था। फोन पर बात करने के बाद दोस्त ने कहा कि घर चलना है। मैंने कहा- अब तो फॉर्म जमा करके ही घर जाऊंगा न ! बिना कुछ बताए, उसने जैसे-तैसे मुझे घर के लिए लेकर चल पड़ा।

घर पहुंचा, तो देखा कि भीड़ लगी है। थोड़ा आगे बढ़ा, तो सामने पापा की डेड बॉडी पड़ी थी। मैं तो अवाक रह गया। 14 साल की उम्र, कुछ भी नहीं समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो गया। अब आगे क्या होगा। बाद में घर चलाने के लिए मां को वायर की फैक्ट्री में काम करनी पड़ी।’

गुजरात का अहमदाबाद शहर। खेल-खेल में बच्चों को मैथ्स, साइंस से रिलेटेड चीजें सिखाने वाले प्रोडक्ट्स की मैन्युफैक्चरिंग कंपनी ‘MakenBreak’। सामने इस कंपनी के को-फाउंडर नीरज गुप्ता शुरुआती दिनों की बातें बता रहे हैं। साथ में उनकी पत्नी और इस कंपनी की को-फाउंडर मानसी शर्मा भी हैं।

जीफ- मानसी-नीरज

कंपनी के एक एरिया में प्रोडक्ट को डिस्प्ले किया गया है, जबकि दूसरे एरिया में मशीन से बोर्ड शीट को काटा जा रहा है।

नीरज कहते हैं, ‘ये डिजाइन कंप्यूटर से सेट किया जाता है। धरती सूर्य के चक्कर कैसे लगाता है। चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण क्यों होता है, ये सारी चीजें हम फिजिकली इस बोर्ड शीट की मदद से बनाते हैं।

ये सारी चीजें बच्चे खेल-खेल में सीख जाते हैं और उन्हें पता भी नहीं चलता है कि वे पढ़ भी रहे हैं। इसे हम लर्निंग किट कह सकते हैं। इस तरह के हमने 30 से ज्यादा प्रोडक्ट्स तैयार किए हैं।

एक कछुआ और मेढ़क के आकार का प्रोडक्ट दिखाता हूं। इसमें बैट्री और मोटर लगा हुआ है। ऑन करते ही यह चलने लगता है। हम इसे किट फॉर्मेट में सेल करते हैं। बच्चे दिए गए इंस्ट्रक्शन के मुताबिक खुद से इसे बनाते हैं।’

प्रोडक्ट-जीफ

आपके घर-परिवार में पहले से कोई ऐसा काम करता था क्या?

नीरज कहने लगे, ‘40 साल पहले आगरा से दिल्ली शिफ्ट होने के बाद पापा ने दूध का बिजनेस शुरू किया था। फिर ट्रांसपोर्ट का काम करने लगे। अपने घर मैं हम दोनों (नीरज और उनकी पत्नी मानसी) इकलौते हैं, जिन्होंने बिजनेस की शुरुआत की।

पापा की मौत के बाद तो घर संभालना मुश्किल था। मां ने फैक्ट्री में काम करना शुरू किया। मेरा केंद्रीय विद्यालय में एडमिशन का सपना अधूरा रह गया।

12वीं करने के बाद सवाल था कि क्या करूं? जहां रहता था, वहीं एक सीनियर थे। उनसे बातचीत की, तो उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने की सलाह दी। 2015 में कोर्स कंप्लीट करने के साथ ही एक कंपनी में प्लेसमेंट हो गई।

अब घरवालों को लग रहा था कि लड़का सेटल हो ही गया है, शादी कर दो, लेकिन मैं कुछ और चाह रहा था। जॉब के दौरान कुछ ऐसे क्लाइंट से मिला, जो लर्निंग एजुकेशनल किट बनाते थे। ये देखकर मुझे लगा- जिस चीज को हमने किताबों में, कॉलेज में पढ़ा है, उसे फिजिकली बनाना कितना मजेदार है।’

नीरज कहते हैं, ‘जिस जगह से मैं आता हूं। कभी सोचा नहीं था कि एक कंपनी होगी। जब बचपन में ही पिता की मौत हो गई, तो लगा कि अब तो पढ़ाई का सपना अधूरा रह जाएगा। कैसे भी पढ़-लिखकर कोई नौकरी करनी होगी।’

नीरज-कॉलेज-फैमिली फोटो

नीरज बताते हैं, ‘इसी बीच गुजरात के आईआईटी गांधीगनर में एक लर्निंग प्रोग्राम शुरू हुआ, जिसमें मुझे काम करने का ऑफर मिला। मैं दिल्ली से गुजरात शिफ्ट हो गया। 2017 की बात है। दो साल तक मैंने यहां जॉब की।

साइंस-मैथ्स से रिलेटेड प्रोडक्ट बनाकर बच्चों, टीचर को वर्कशॉप कराता था। यहीं पर मेरी मानसी से मिलना हुआ। कुछ साल तक बाद हमने शादी कर ली।’

मानसी अपनी मां के साथ डिजाइन कर रही हैं। कहती हैं, ‘IIT गांधीनगर में मैं प्रोजेक्ट मैनेजर थी। जब हम दोनों के शादी की बात घरवालों को पता चली, तो वे नहीं मान रहे थे। मैंने जॉब छोड़ दिया। उसके बाद मैंने एमबीए में एडमिशन ले लिया। इस दौरान TIE अहमदाबाद ने बिजनेस को लेकर गाइड किया।

फिर नीरज और मैंने मिलकर इस बिजनेस पर काम करना शुरू किया। DIY यानी टू ईट योरसेल्फ बेस्ड अलग-अलग तरह के लर्निंग प्रोडक्ट बनाने लगे। हमने तकरीबन ढाई लाख रुपए का इन्वेस्टमेंट किया था। हमारे पास सेविंग्स के इतने ही पैसे थे।’

प्रोडक्ट-रिलेटेड जीफ

मानसी कुछ प्रोडक्ट्स दिखा रही हैं। कहती हैं, ‘यह खिलौने की तरह ही है, जिसे दो साल के बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक खेल सकते हैं। सभी प्रोडक्ट्स अल्फाबेट्स, साइंस और मैथ्स पर बेस्ड है।

2022 में पहली दफा हमने 50 किट बनाए थे। इसे ओडिशा के एग्जीबिशन में लेकर गई थी। हमें लगा था कि कुछ प्रोडक्ट्स बच जाएंगे, लेकिन पहले दिन ही सारे प्रोडक्ट बिक गए।

पैरेंट्स को ये प्रोडक्ट बहुत अच्छे लगे। उसके बाद हमने वेबसाइट और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के जरिए प्रोडक्ट को बेचना शुरू किया। अभी तक 30 हजार से ज्यादा प्रोडक्ट्स हम सेल कर चुके हैं।

अब हमारे प्रोडक्ट देश के अलग-अलग आर्मी कैंट में एवलेवल हैं। प्रोडक्ट की रेंज 150 रुपए से 1500 रुपए की है। अभी तक हमने करीब डेढ़ करोड़ का बिजनेस किया है।’

मानसी का कहना है कि उनकी कंपनी STEM यानी साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स इंडस्ट्री में आती है। इस इंडस्ट्री का ग्लोबल बिजनेस 86 हजार करोड़ का है, जबकि इंडिया में 1600 करोड़ का मार्केट है। सालाना यह 10 परसेंट से बढ़ रहा है।



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