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- 2023 की बात है। फ्रांस से कुछ डेलिगेट्स मेरे सेमीकंडक्टर प्लांट को विजिट करने के लिए आए थे। मैं उन्हें बिहार की राजधानी पटना से मुजफ्फरपुर लेकर आया। मन में उम्मीद थी बड़ी डील होगी। कंपनी की बिल्डिंग के साथ गुजरने वाली सड़क पूरी तरह से टूटी हुई थी। सामने गाय चर रही थीं।
डेलिगेट्स ने विजिट करने के बाद कहा-
आप काम अच्छा कर रहे हैं, लेकिन हम डील नहीं कर सकते। इस तरह के माहौल में कैसे काम होगा। कोई इन्फ्रास्टक्चर ही नहीं है। सड़कें टूटी हैं। नाली का पानी सड़क पर ही बह रहा है। खुले में गायें चर रही हैं।
- अगले साल 2024 के सितंबर का महीना था। सिंगापुर से कुछ डेलिगेट्स प्लांट विजिट करने के लिए आए थे। उस वक्त बरसात का मौसम था। सड़क उसी तरह से टूटी हुई थी। कीचड़ इतना ज्यादा कि आने-जाने में भी दिक्कत हो रही थी। घुटनों तक पानी था। जिसका डर था, फिर से वही हुआ।
डेलिगेट्स ने कंपनी विजिट करने के बाद कहा-
हम डील नहीं कर सकते हैं। कीचड़ वाली सड़क की वजह से आपके एम्प्लॉई चप्पल में काम करने के लिए आ रहे हैं। यहां कोई इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है। करोड़ों का प्रोजेक्ट हम आपको नहीं दे सकते हैं। सॉरी।
ये बातें बिहार की पहली सेमीकंडक्टर कंपनी ‘सुरेश चिप्स एंड सेमीकंडक्टर’ के फाउंडर चंदन राज बता रहे हैं। कहते हैं, ‘जब मैंने अपना दर्द बयां किया था, तब ये सड़क बनी है। उम्मीद है कि अगले 5 साल में हम 100 करोड़ की कंपनी खड़ी कर लेंगे।’
ये सुरेश चिप्स एंड सेमीकंडक्टर कंपनी के फाउंडर चंदन राज हैं। चंदन ने यह कंपनी अपने पिता के नाम से खोली है।
मैं बिहार के मुजफ्फरपुर में हूं। राजधानी पटना से तकरीबन 80 किलोमीटर दूर गंगा के उत्तरी छोर में यह शहर है। मेन सिटी से शेरपुर की तरफ बढ़ने पर चंदन की कंपनी की बिल्डिंग दूर से ही नजर आ रही है। घनी ग्रामीण आबादी, भीड़-भाड़ से गुजरते हुए रेलवे फाटक क्रॉस करने के बाद मैं चंदन से मिलता हूं।
चंदन कहते हैं, ‘इस जगह से बिजनेस कर पाना बहुत मुश्किल है। यहां न कोई बिजनेस कल्चर है, न इको सिस्टम। इंजीनियर हायर करने में दिक्कत होती है। कोई रिलोकेट ही नहीं होना चाहता है। हालांकि आसपास के लोग जब सुनते हैं कि पश्चिम बंगाल से, ओडिशा से, झारखंड के लोग मुजफ्फरपुर में आकर काम कर रहे हैं, तब उन्हें अच्छा लगता है।
नहीं तो, हमारी किस्मत ही रही है बिहार से माइग्रेट करके काम करने की। कंपनी को स्टार्ट किए हुए 4 साल हो चुके हैं। सड़क अभी कुछ महीने पहले बनी है। अगर मेरी यही कंपनी बेंगलुरु या गुड़गांव में होती, तो आज के टर्नओवर से 5 गुना बिजनेस कर रहा होता।
खैर… जहां पैदा हुआ। वहां से इतना कर पा रहा हूं, तो यह भी मेरे लिए बड़ी बात है। सुकून मिलता है।’
चंदन की कंपनी की बिल्डिंग दूर से ही नजर आने लगती है। 2022 से इनकी कंपनी इस बिल्डिंग में है। पहले वे अपने घर से ही कंपनी चला रहे थे।
चंदन कंपनी शुरू करने के पीछे की कहानी बता रहे हैं। कहने लगे, ‘2020 कोविड की बात है। कोरोना की वजह से आसपास के कई लोग गुजर गए। जो विदेश में रहते थे, उनके लिए अपने परिवार से मिलना भी मुश्किल था।
मैं उस वक्त चीन में था। सोचने लगा कि बुरे वक्त में जब परिवार के साथ ही नही हूं, फिर ये दौलत किस काम की। जहां पला-बढ़ा, वहीं पर कुछ करूं। आप यकीन नहीं करेंगे, चीन के शंघाई से पानी के जहाज और फिर एरोप्लेन से मैं कलकत्ता आया। वहां से फूल से लदे ट्रक में बैठकर मुजफ्फरपुर पहुंचा था।
उसी के बाद मैंने बिजनेस प्लान करना शुरू कर दिया। बिहार में आज तक किसी ने सेमीकंडक्टर कंपनी के बारे में नहीं सोचा था। मैंने 10 साल अलग-अलग देशों की सेमीकंडक्टर कंपनियों में काम किया है। इसलिए खुद की सेमीकंडक्टर कंपनी शुरू करने का सोचा।
चंदन बार-बार सेमीकंडक्टर शब्द कह रहे हैं। पूछने पर वह इसे समझाते हैं, ‘पहले के जमाने में टीवी, कंप्यूटर… सब कुछ काफी बड़े होते थे। धीरे-धीरे इसका साइज भी छोटा होता गया और टेक्नोलॉजी और फीचर भी बढ़ते गए। ये सब कुछ सेमीकंडक्टर की मदद से ही होता है।
कार से लेकर मोबाइल फोन, सिम कार्ड से लेकर लैपटॉप… हर जगह सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल होता है।’
जहां चंदन की कंपनी है, उसके ठीक सामने सड़क की दूसरी तरफ उनका घर भी है। चंदन कहते हैं, ‘पापा जब 12 साल के थे, उनके पिता की डेथ हो गई। उसके बाद उन्होंने कमाना शुरू कर दिया। कई सालों तक गिट्टी की ठेकेदारी की।
जब मैं पढ़ रहा था, तो यही सोचता था कि पढ़ाई-लिखाई के बाद पापा के साथ काम करना पड़ेगा। 2005 की बात है। 12वीं करने के बाद मेरा सिलेक्शन ओडिशा के एक इंस्टीट्यूट में हो गया। उस वक्त बीटेक करने का चलन ज्यादा था। मुझे ECE यानी इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में एडमिशन मिल गया।’
चंदन की यह फैमिली फोटो है। चंदन के पिता जब 12 साल के थे, तभी उनके दादाजी की मौत हो गई थी।
चंदन कहते हैं, ‘पढ़ाई कम्प्लीट करने के बाद भी जॉब नहीं लगी, तो ओडिशा से बेंगलुरु जाना पड़ा। वहां 6 महीने तक अलग-अलग कंपनियों में जाकर इंटरव्यू देता रहा, तब जाकर एक सेमीकंडक्टर कंपनी में जॉब मिली। महीने की 6-7 हजार सैलरी थी।
उसके बाद से सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में ही रह गया। मलेशिया, ताइवान, यूरोप और फिर चीन, बेंगलुरु की कंपनी के साथ काम करने के बाद इन देशों में कई सालों तक रहा। ताइवान सेमीकंडक्टर का हब है।
चीन में 3 साल काम करने के बाद 2020 में कोरोना के दौरान घर आ गया। आने के बाद मैंने चीनी कंपनी से कहा- अब मैं अपना काम शुरू करने जा रहा हूं। उसी कंपनी ने मुझे एडवांस प्रोजेक्ट के पेमेंट देकर सेमीकंडक्टर कंपनी शुरू करने में मदद की।
तकरीबन 80 लाख रुपए मिले थे। इसी पैसे से इस कंपनी की नींव पड़ी थी।’
चंदन राज तकरीबन 10 साल तक अलग-अलग देशों की सेमीकंडक्टर कंपनियों के साथ काम कर चुके हैं।
चंदन से मिलने पर पहले मुझे लग रहा था कि वह सेमीकंडक्टर बनाते हैं। पूछने पर कहते हैं, ‘नहीं, हम लोग दूसरे देशों से सेमीकंडक्टर बनवाकर अलग-अलग कंपनियों को बेचते हैं। सेमीकंडक्टर में सिलिकॉन पट्टी की लेयर होती है।
मेरी कंपनी सेमीकंडक्टर में सिलिकॉन लेयर से पहले का काम करती है। दरअसल सेमीकंडक्टर बनाना आसान नहीं है। इसके लिए एक अलग इन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होती है।
जिस कंपनी को जिस तरह के सेमीकंडक्टर की जरूरत उनके फीचर के मुताबिक होती है, उस तरह का प्रोडक्ट हम बनवाते हैं। जैसे कोई कार कंपनी है, जिसने अपने प्रोडक्ट के फीचर में कुछ चिप्स रिलेटेड बदलाव किए हैं, तो हम उस तरह का कस्टमाइज सेमीकंडक्टर बनाएंगे।
अभी एक AI बेस्ड सेमीकंडक्टर के रिसर्च पर भी काम चल रहा है। मैन्युअली जिस काम को करने के लिए 5 स्टाफ की जरूरत होती है, इससे वो काम एक में ही हो जाएगा।
अभी इस प्रोजेक्ट में कुछ और महीने लगेंगे।’
चंदन की ये टीम फोटो है। साथ में उनके भाई कुंदन हैं। इस कंपनी में दूसरे राज्यों के इंजीनियर भी काम करते हैं।
चीन छोड़कर सीधे अपने शहर आ जाना?
‘जब मैंने मुजफ्फरपुर में ही सेटल होने का प्लान किया, तो आसपास से अलग-अलग तरह की बातें सुनने को मिलने लगीं। कोई भी सोचेगा कि हर कोई बिहार छोड़कर दूसरे राज्यों में, दूसरे देशों में जाता है।
एक सेटल्ड करियर होने के बाद फिर से अपने शहर वापस कौन आता है। लोग कहते थे- यहां कुछ नहीं होने वाला है। सामान्य बिजनेस तो हो ही नहीं सकता है। तुम जो कर रहे हो, वह तो और नया है। बिहार में अब तक किसी ने नहीं किया।
मैंने भी सोच लिया था कि बिजनेस करूंगा, तो यहीं से।’
चंदन मुझे बातचीत के साथ-साथ अपनी कंपनी के अलग-अलग फ्लोर को विजिट करा रहे हैं। कहते हैं, ‘अभी 100 स्टाफ की सिटिंग कैपेसिटी है। टीम में अभी 40 लोग है। रिमोट लोकेशन होने की वजह से कई बार लोग जॉइन भी नहीं करना चाहते हैं।
कुछ टीम हमारी बेंगलुरु और हैदराबाद में बैठती है। अभी कुछ ऐसे भी स्टाफ हैं, जो ताइवान जाने वाले हैं। प्रोजेक्ट के मुताबिक अपने स्टाफ को भेजना होता है। 10 साल सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में काम करने के बाद हर देश में अपने कॉन्टैक्ट्स हैं।
इंडिया भी अब सेमीकंडक्टर बनाने में आगे बढ़ रहा है। जिस तरह से टेक्नोलॉजी फास्ट होती जा रही है, आने वाले वक्त में इसकी डिमांड और बढ़ेगी।’