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बच्चे बोले- कुरान पढ़ने से जन्नत मिलेगी, स्कूल से नहीं: कब्रिस्तान की जमीन पर मदरसा, मान्यता भी खत्म; अब 9 बिंदुओं पर जांच – Ratlam News


रतलाम में जावरा के पास उमठ पालिया गांव में संचालित आता-ऐ-रसूल नाम का मदरसा अवैध रूप से चल रहा है। मप्र बाल संरक्षण आयोग की जांच में यह बात सामने आई है।

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जांच में पता चला है कि यह मदरसा कब्रिस्तान की जमीन पर बना है। इसकी मान्यता भी दो साल पहले खत्म हो चुकी है। यहां एमपी, यूपी और राजस्थान के करीब 77 बच्चों को स्कूल से दूरी रखकर मजहबी तालीम दी जाती थी। टीम ने बच्चों से बात, तो उनका कहना था कि कुरान पढ़ने से जन्नत नसीब होगी, स्कूल जाने से नहीं।

बाल संरक्षण आयोग ने कलेक्टर राजेश बाथम को नौ बिंदुओं पर जांच प्रतिवेदन सौंपा है। इसके बाद कलेक्टर ने टीम भी बना दी। खास है कि आठ दिन बाद भी टीम जांच के लिए नहीं पहुंची है।

बाल संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा, सदस्य ओंकार सिंह मरकाम ने 25 जनवरी को सीडब्ल्यूसी मेंबर वैदेही कोठारी, शिक्षा, पुलिस व महिला एवं बाल विकास विभाग के अमले के साथ निरीक्षण किया था। बाल आयोग सदस्यों ने जांच की तो पता चला कि मदरसा अवैध रूप से संचालित हो रहा है। तब टीम ने मदरसा बंद कर बच्चों को उनके परिजनों को सौंपने के निर्देश दिए।

टीम ने मदरसे के जिम्मेदारों से सख्ती से पूछताछ की तो बताया था कि अवैध मदरसे का संचालन पहले दावते इस्लामी हिंद ट्रस्ट इंदौर के माध्यम से किया जा रहा था। आयोग सदस्यों के अनुसार 2017 से 2022 तक मदरसा बोर्ड से इसकी मान्यता थी। उसके बाद मान्यता का नवीनीकरण नहीं हुआ। यह अवैध रूप से संचालित होना बताया था।

25 जनवरी को बाल सरंक्षण आयोग टीम सदस्यों ने मदरसे में रहने वाले बच्चों से पूछताछ की थी।

आयोग को निरीक्षण में यह कमियां मिला

  1. मदरसा संचालकों के अनुसार दावत ए इस्लामी हिन्द ट्रस्ट इंदौर द्वारा मदरसा-अताए रसूल एहले सुन्नत वल जमात, उमठ पालिया के नाम से किया जा रहा है।
  2. मदरसे में लगभग 77 बच्चों को दीनी तालीम दी जा रही है, लेकिन मप्र मदरसा बोर्ड से इस मदरसे को कोई मान्यता प्राप्त नही है। यह मदरसा मप्र मदरसा बोर्ड की मान्यता बगैर संचालित किया जा रहा है।
  3. मदरसा संचालन के लिए मप्र मदरसा बोर्ड से मिली मान्यता वर्ष 2017 से 2021 तक की थी। मदरसा संचालकों द्वारा वर्ष 2022 में नवीनीकरण के लिए आवेदन दिया। आवेदन से यह स्पष्ट है कि मदरसा आवासीय नहीं है। लेकिन निरीक्षण के दौरान मदरसा संचालकों द्वारा बताया कि मदरसा वर्ष 2017 से आवासीय रुप से संचालित है।
  4. मदरसे में रहने वाले सभी बालक 5वीं तक अध्ययन कर चुके हैं। मदरसे में आने के बाद से बालक स्कूल नहीं जाते हैं। बालकों को सिर्फ मजहबी शिक्षा दी जा रही है। यह बच्चों के शिक्षा के अधिकारों का उल्लघंन है।
  5. मदरसे में अध्यनरत छात्रों से पूछा गया कि वह यहां क्यों आए है, तो बच्चों ने बताया कि वे यहां कुरान का अध्ययन करने आए हैं, जिससे जन्नत मिलेगी। स्कूल जाने से इब्ज नहीं होगा, जन्नत भी नहीं मिलती। ऐसी शिक्षा बालकों के हित में नहीं है।
  6. मदरसे में उत्तरप्रदेश एवं राजस्थान के बालकों के अलावा मप्र के अशोकनगर, मंदसौर, नीमच, उज्जैन एवं इंदौर के भी बालक यहां निवासरत मिले।
  7. बालकों के पहचान से संबंधित दस्तावेज भी पूर्ण नहीं हैं। मदरसे में प्रवेश किसने कराया।
  8. मदरसे के नवीनीकरण के आवेदन से पचा चलता है कि मदरसा का समय सुबह 9 बजे से 5 बजे तक का था। लेकिन मदरसा प्रारंभ से ही आवासीय रुप से संचालित है। वर्ष 2017 से वर्ष 2021 तक मान्यता प्राप्त होने के बाद भी शिक्षा विभाग के सक्षम अधिकारी द्वारा मदरसे का निरीक्षण क्यों नही किया गया। वर्ष 2021 में मान्यता समाप्त होने के बाद भी इसे बंद क्यों नहीं कराया गया ?
  9. मदरसे में निवासरत एक बालक के माता-पिता दोनों ही जीवित नहीं है। लेकिन इस बालक को किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 के प्रावधानानुसार स्पॉसर शिप का लाभ नहीं दिया गया।

प्रशासन ने मदरसा भवन अतिक्रमण कर बनाने का नोटिस भवन पर चस्पा किया।

मजहबी तालीम दी जा रही थी

टीम ने जांच में पाया था कि मदरसे में स्कूली शिक्षा से दूर करके मप्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से लाए गए 77 बच्चों को सिर्फ मजहबी तालीम दी जा रही थी। इनमें से 72 नाबालिग और 5 बालिग थे। इनमें मप्र के अशोक नगर, मंदसौर, नीमच, उज्जैन, रतलाम व इंदौर, राजस्थान के चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़ और उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के बच्चे थे।

स्कूल में नहीं था एडमिशन

जांच में एक भी बच्चे का स्कूल या शैक्षणिक संस्थान में एडमिशन नहीं पाया नहीं गया। बाल संरक्षण आयोग की टीम ने मदरसा बंद करवाकर बच्चों को परिजनों के पास पहुंचाने के निर्देश दिए थे। मदरसे के प्रिंसिपल मोहम्मद शोएब यूपी व मोहम्मद शहजाद झारखंड के रहने वाले हैं। टीम के निरीक्षण के बाद भोपाल जाने के तीन दिन बाद यह मामला सामने आया। इस दौरान टीम के साथ रहे स्थानीय अधिकारियों ने भी जाकर जांच पड़ताल नहीं की।

आवासीय छात्रावास नहीं होने के बाद भी 77 बच्चे यहां पर रह रहे थे।

अधिकारियों को देखना चाहिए

बाल आयोग सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा ने बताया कि निरीक्षण के दौरान प्रशासन के अधिकारी मौजूद थे। आखिर उन्होंने अगले दिन जाकर कार्रवाई क्यों नहीं की। मेरे जांच प्रतिवेदन का इंतजार क्यों किया। अब बच्चे क्या सच में उनको पैरेंट्स के पास पहुंचे या नहीं। यह जिला प्रशासन को देखना चाहिए।

बाल संरक्षण आयोग की माने तो मदरसे का मई 2022 से मान्यता का नवीनीकरण नहीं हुआ तो मदरसा बंद होना था। यहां के बच्चे किसी स्कूल में भी नहीं जाते जो उन्हें स्कूली शिक्षा से दूर रखा गया। प्रशासन के साथ शिक्षा विभाग व महिला एवं बाल विकास की मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी थी।

2022 से पहले यह मप्र मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त होकर इसे डाइस कोड भी आवंटित था। ऐसे में शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी थी कि समय-समय पर वह जांच करे। जब मान्यता खत्म हो गई तो इसे बंद करवाकर जानकारी शासन को भेजना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बाल संरक्षण आयोग की टीम मदरसे से लिटरेचर और धार्मिक पुस्तकें तथा कुछ दस्तावेज भी जब्त करके भोपाल ले गईं।

इन बिंदुओं पर जांच के लिए कहा

  1. मप्र मदरसा बोर्ड की अनुमति/मान्यता के बिना मदरसा संचालित किया जाना नियम विरुद्ध है।
  2. मदरसे में निवासरत बालकों को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के प्रावधान अनुसार शिक्षा से वंचित नही किया जा सकता।
  3. मदरसे में निवासरत बालकों की काउंसलिंग की जाना आवश्यक है।
  4. वर्तमान में निवासरत बालकों से संबंधित सभी दस्तावेजों की जांच कर बालकों के मूल निवासी, माता-पिता, मदरसा में प्रवेश वर्ष, अध्ययनरत अंतिम कक्षा एवं उसका वर्ष, बालकों की वतर्मान में अध्ययन की स्थिति, प्रवेश कराने की सहमति पत्र की जानकारी आयोग को उपलब्ध कराई जाए।
  5. वर्ष 2017 से वर्ष 2021 तक की शिक्षा विभाग के सक्षम अधिकारी के निरीक्षण रिपोर्ट की प्रति उपलब्ध कराई जाई।
  6. मदरसे में पदस्थ/कार्यरत समस्त कर्मचारियों की जांच की जाए। पुलिस वेरीफिकेशन किया जाए।
  7. प्रारंभ से यह मदरसा आवासीय रुप से संचालित था। इसकी जांच क्यों नहीं की गई? इसके लिए जो भी सक्षम अधिकारी है उनके विरुद्ध जांच कर कार्रवाई की जाए।
  8. मदरसे को प्राप्त होने वाले अनुदान/आय-व्यय की जांच कर रिपोर्ट उपलब्ध कराई जाए।
  9. मदरसे में लगे कैमरों का डीवीआर जब्त कर जांच की जाए। जिससे पुष्टि की जा सके कि मदरसे में किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा-75 का कहीं उल्लघंन तो नही हुआ।

अवैध तरीके से संचालित मदरसा को खाली करवा लिया गया है।

बंद करने को कहा तो कर दिया – प्रिंसिपल

मदरसा संचालक मोहम्मद शोएब ने बताया 2022 तक की मान्यता दी। बाद में पोर्टल पर आवेदन किया। मान्यता नहीं मिल पाई। ट्यूशन के तौर पर बच्चों को पढ़ाते थे। मप्र बाल आयोग की टीम ने कहा मदरसा बंद कर दो। हमने बंद कर दिया। बच्चों को उनके पैरेंट्स को सौंप दिया है। पैरेंट्स से लिखवा कर लिया है। प्रशासन को जानकारी दे देंगे। मदरसे की जमीन को लेकर अभी कोई नोटिस नहीं मिला है।

मदरसे का मामला सामने आने के बाद अगले दिन मदरसा संचालन कमेटी अगले दिन ही मदरसा बंद कर दिया। बताया जा रहा है कि बच्चों को उनके पैरेंट्स या फिर उनके जो गार्जियन थे उनके पास भेज दिया।

जांच प्रतिवेदन में कहा गया है अतिक्रमण की जमीन पर मदरसा बनाया गया है।

कब्रिस्तान की भूमि पर बना मदरसा

प्रारंभिक जांच के बाद बाल आयोग ने कलेक्टर को अपना प्रतिवेदन भेज दिया है। लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। इधर प्रशासन ने उक्त मदरसा भवन को अतिक्रमण बताते हुए जवाब पेश करने के लिए मदरसा कमेटी को नोटिस जारी किया है। मदरसा भवन पर नोटिस चस्पा किया है।

कलेक्टर ने बनाई टीम

बाल आयोग के प्रतिवेदन मिलने के बाद कलेक्टर राजेश बाथम ने जांच के लिए टीम बना दी है। जांच के जो बिंदु दिए उसके लिए टीम में एसडीएम, शिक्षा विभाग, एसडीओपी को शामिल किया है। टीम को जल्दी से जल्दी जांच कर रिपोर्ट देना को कहा है।

कलेक्टर राजेश बाथम ने बताया कि बाल सरंक्षण आयोग का प्रतिवेदन मिल गया है। शीघ्र जांच करवाकर रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी।



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