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बस्तर की संस्कृति को संजोने का अनूठा प्रयास: बस्तर पंडुम में दिखी झलकियां, आदिवासी कलाकारों ने पेश की लोकनृत्य, गीत और परंपरागत कला – Kanker News


छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की पहल पर बस्तर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए ‘बस्तर पंडुम’ का आयोजन किया गया। कांकेर के ग्राम सिंगारभाट स्थित गोंडवाना भवन में जिला स्तरीय प्रतियोगिता हुई।

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7 विकासखंडों से आए 464 कलाकारों ने लोकनृत्य, लोकगीत और लोकनाट्य की प्रस्तुतियां दीं। कार्यक्रम में कांकेर विधायक आशाराम नेताम, भानुप्रतापपुर विधायक सावित्री मनोज मंडावी और जिला पंचायत अध्यक्ष किरण नरेटी मौजूद रहे।

कांकेर विधायक ने कहा कि बस्तर पंडुम के माध्यम से पारंपरिक धरोहरों को संरक्षित किया जा रहा है। भानुप्रतापपुर विधायक ने पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में आदिवासी परंपराओं के लुप्त होने की चिंता जताई।

अपनी प्रतिभा दिखाने का उत्कृष्ट अवसर

जिला पंचायत अध्यक्ष ने बस्तर पंडुम को लोक संस्कृति को पुनर्जीवित करने का बेहतर मंच बताया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को इस पहल के लिए बधाई दी।

कलेक्टर ने कहा कि यह आयोजन आदिवासी कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने का उत्कृष्ट अवसर है। कार्यक्रम में आदिवासी व्यंजन, वेशभूषा और शिल्पकला का भी प्रदर्शन किया गया।

व्यंजनों और वेशभूषा से रूबरू हुए आगंतुक

‘बस्तर पंडुम’ में जनजातीय शिल्प कला, वाद्ययंत्र, आखेट यंत्र, आभूषण, पारंपरिक वेशभूषा आदि का प्रदर्शन स्टॉल लगाकर किया गया। इस दौरान आगंतुकों ने बस्तर के पारंपरिक आभूषण हंसली, पहुंची, ऐंठी, चुटकुल, चूड़ा, करधन, कौड़ीमाला, कौड़ी गजरा, झलिंग, खोपा खोंचनी, बटकी खिनवा, बनुरिया, पैरकड़ा, मुड़पिन, रूपिया माला, पनिया, फुंदरा, तल्लानेर, झोबा, नेर्क, सिहारी बीजमाला सहित लया-लयोर की पारंपरिक पोशाकों व गोदना (पारंपरिक टैटू) का भी प्रदर्शन का अवलोकन किया।

इसी तरह बस्तरिया व्यंजन के स्टॉल में पुड़गा, आकीरोटी, सल्फी, जिर्रा शरबत, इमली (हित्ता) चटनी, कोड़ेंग घुघरी, गुड़चिंवड़ा, आमट, जिमीकांदा सहित छिंद दाड़को, जिर्रा गुंड़ा, हित्ता चटनी, जुंवार लाई, रेंगा, डोंक, गोड़गा जावा, हिंद दांड़गो, कोदो पेज आदि की प्रदर्शनी लगाई गई। इस दौरान अतिथियों ने स्वादिष्ट व्यंजन का स्वाद भी चखा।

आदिवासियों की पुरानी परंपरा : गोदना

स्टॉल में पहुंचे नरहरपुर ब्लॉक के ग्राम गंवरसिल्ली से आए ओझा जनजाति के आदिवासियों ने बताया कि आदिवासी महिला के विभिन्न अंगों में गोदना की पुरानी परंपरा है।

दुकलूबाई ने बताया कि गोदना को घी और धुंए से विशिष्ट प्रकार के मिश्रण से तैयार किया जाता है, जिसे सुई से चुभोकर अंगों में आकृतियां उकेरी जाती हैं। यह भी बताया कि गोदना गोदने के उपरांत शांति के लिए उन अंगों में गोबर का लेप लगाया जाता है।

इसके अलावा ग्राम की शीतलामाता को तेल, हल्दी, चावल, दाल, नमक, मिर्च आदि अनिवार्य रूप से अर्पित किया जाता है। यह परंपरा सैकड़ों सालों से चली आ रही है। देवार याया द्वारा भी गोदना अंकित किए जाने का चलन है।

कई विधाओं में दी उत्कृष्ट प्रस्तुति

प्रतियोगिता में सभी ब्लॉक से आए 464 प्रतिभागियों ने हिस्सा लेकर विभिन्न विधाओं में उत्कृष्ट प्रस्तुति दी, जिसमें जिले के आदिवासी प्रतिभागियों ने रेला पाटा नृत्य, धनकुल नृत्य, डहकी गीत, मांदर नृत्य, मोहरी वाद्य आदि का प्रदर्शन किया गया।



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