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बालोद के घने जंगलों में त्रेतायुगीन सियादेवी धाम: जहां पड़े थे श्रीराम के चरण,माता सीता ने किया था विश्राम, प्रकृति की गोद में वाल्मीकि झरना – Balod News


नारागांव जंगलों के बीच माता सीता (सियादेही) का मंदिर।

छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के घने जंगलों, पहाड़ियों और झरनों के बीच एक प्राचीन मंदिर स्थित है। जहां माता सीता सफेद वस्त्र धारण किए शांत मुद्रा में विराजमान हैं। मान्यता है कि त्रेता युग में वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण कुछ समय के ल

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कहा जाता है कि, माता सीता के चरणों के निशान आज भी इस स्थान पर विद्यमान हैं। इन्हीं धार्मिक मान्यताओं के आधार पर स्थानीय ग्रामीण माता सीता को अपनी आराध्य देवी मानते हैं और उन्हें श्रद्धा भाव से सियादेवी या सियादेही के नाम से पुकारते हैं।

श्री राम भक्त केंवट की भी होती है पूजा

मंदिर में लक्ष्मण, हनुमान, राधा-कृष्ण, भगवान बुद्ध और बूढ़ादेव की मूर्तियां स्थापित हैं। शिव-पार्वती और गणेश जी की भव्य प्रतिमाएं भी हैं। जिनमें गणेश जी को शिवलिंग पर जल अर्पित करते हुए दर्शाया गया है। यहां श्रीराम भक्त केवट को भी पूजा जाता है।

रामायण प्रसंगों की मूर्तियों से सजी धरती

मंदिर परिसर के पास बने मैदान में रामायण कालीन प्रसंगों को मूर्तियों के माध्यम से दर्शाया गया है। लव-कुश को घोड़े पकड़ते, बजरंगबली को खड़े हुए और अन्य कई प्रसंगों को सजीव रूप में दिखाया गया है।

प्रकृति की गोद में वाल्मीकि झरना

मंदिर के पास बहता झरना वाल्मीकि झरना कहलाता है। जो इस स्थल की सुंदरता को और भी निखार देता है। गर्मी के मौसम में भी यहां ठंडक बनी रहती है। बरसात में जब यह झरना अपने मुख्य रूप में आता है तो हजारों दर्शकों को अपने ओर खींच लेता है।

प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर सियादेवी मंदिर

धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में पहचान बना चुके नारागांव का यह मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। घने जंगलों और पहाड़ियों के बीच बसे इस स्थल का दीदार करने रोजाना सैकड़ों श्रद्धालु और पर्यटक पहुंचते हैं।

सबसे बड़ा पर्यटन स्थल बनता जा रहा

गर्मी के मौसम में भी यहां का वातावरण ठंडक भरा रहता है। क्योंकि यह स्थान चारों ओर से हरियाली से घिरा हुआ है। पेड़ों की छांव और आसपास का झरना इस स्थान को अत्यंत मनोरम बना देता है।

परिवार संग घूमने का आदर्श स्थल

यह स्थान न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि परिवार के साथ पिकनिक मनाने और शांति का अनुभव करने के लिए भी उपयुक्त जगह है। प्रदेश के विभिन्न जिलों से लोग यहां प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक आस्था दोनों का आनंद लेने आते हैं।

झलमला से सियादेही तक आस्था का सफर

श्रद्धालु मां गंगा मैय्या के दर्शन के बाद झलमला से 18 किलोमीटर दूर नर्रा गांव में रानी माई का ऐतिहासिक मंदिर दर्शन करने पहुंचते हैं। फिर यहां से 6 किमी दूर नारागांव के सियादेही मंदिर के लिए आस्था का सफर पूरा होता है।

12 गांव का प्रमुख मंदिर है रानीमाई

घोटिया मुख्य मार्ग पर स्थित मां रानीमाई को इस क्षेत्र की रानी कहा जाता है। यहां आदिवासी परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार पूजा-अर्चना होती है। यह मंदिर क्षेत्र के 12 गांवों की आराध्य देवी का प्रतीक है।



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