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ब्लैकबोर्ड- गैंगरेप का झूठा केस, जंगलों में रहा: दो बार आत्महत्या की कोशिश, बीवी ने मुकदमा लड़ा, आज भी पड़ोसी मजाक उड़ाते हैं


मैंने उस महिला से सिर्फ अपने पैसे मांगे थे। उसने मुझ पर गैंगरेप की एफआईआर करवा दी। मुझे बच्चों से नजरें मिलाने लायक नहीं छोड़ा। सोचता रहता था कि बच्चे क्या सोचेंगे। एक दिन घर छोड़कर चला गया। ऋषिकेश में पुल से कूदने वाला था तभी एक बाबा ने हाथ पकड़कर ख

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मन में फांसी लगाने के भी ख्याल आते थे। एक बार रस्सी भी ले आया। ऐन मौके पर लगा कि मरने के बाद अगर बेकसूर साबित हुआ तो परिवार का क्या हाल होगा। एक बार उनसे मिलकर कहना चाहता था-मैं निर्दोष हूं। ये बताते हुए मंजीत का चेहरा आंसू से भीग गया।

ब्लैकबोर्ड में आज हनी ट्रैप का शिकार हुए उन लोगों की स्याह कहानी, जो झूठे मुकदमे में खुद पीड़ित रहे लेकिन उन्हीं के साथ अपराधियों जैसा व्यवहार हुआ…

पानीपत के रहने वाले मंजीत मलिक प्रॉपर्टी डीलर और सोशल वर्कर हैं। हनी ट्रैप के मामले में मंजीत पर गैंगरेप का केस लगा। आखिर ये सब कैसे हुआ, ये जानने के लिए मैं पहुंची पानीपत के उजरा खेड़ी। जब उनके घर पहुंची तो वो सोफे पर पत्नी के साथ बैठे थे। मंजीत के चेहरे पर उदासी साफ नजर आ रही थी। पत्नी हाथ पकड़कर हौसला दे रही थीं।

मंजीत के साथ उनकी पत्नी पूनम।

खुद को संभालते हुए मंजीत कहते हैं कि इल्जाम लगाने वाली महिला मेरे ऑफिस के पास ही एक जनरल स्टोर में काम करती है। उसके घरवालों को जब भी पैसों की जरूरत हुई, हमने मदद की। धीरे-धीरे उसने मुझसे 1 लाख रुपए उधार ले लिए। जब मैंने पैसे वापस मांगे। तब उसने किसी के साथ मिलकर मुझ पर गलत एलिगेशन लगाए और गैंगरेप का मुकदमा किया।

इस इल्जाम की वजह से हमें बहुत कुछ झेलना पड़ा। खुद को संभालते हुए कंपकंपाती आवाज में वो कहते हैं कि उस वक्त जो हालात थे, उसे बयां भी नहीं कर सकता। ऐसा बुरा वक्त भगवान दुश्मन को भी ना दे। अगर पत्नी ने साथ न दिया होता तो आज मैं जेल में होता या फिर मेरी फोटो पर माला टंगी होती। तभी तो कहते हैं नारी तू नारायणी। मेरी पत्नी ने मुझे इस कालचक्र से बचाया है।

औरतें पैसों के लिए हनी ट्रैपिंग करती हैं, इसका असर पूरे परिवार पर पड़ता है। हमेशा पुरुष ही गलत नहीं होता। ऐसे आरोपों से न जाने कितने परिवार बर्बाद होते हैं और समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहते।

इस मामले में पुलिस भी आरोपी के साथ मिलकर सेटलमेंट के नाम पर हमारे ऊपर ही दबाव बना रही थी। हमसे कहा गया कि पैसे देकर मामला रफा-दफा करो।

जिस दिन आरोप लगे, मैं घर-बार छोड़कर चला गया। लगभग 4 महीने तक घर से बाहर रहा। उत्तराखंड के पहाड़ों में चला गया था। घर से निकला तो मेरे पास न फोन था, न पैसे। बस एक जोड़ी कपड़े थे जो पहन रखे थे।

चार महीने तक कभी जंगल, कभी किसी बाबा की कुटिया में रहा, कई बार सड़क पर भी सोना पड़ा। यहां तक की खाना भी मांगकर खाया। भिखारी की तरह रहने के लिए मजबूर था। मेरा 15 किलो वजन कम हो गया था। दाढ़ी भी इतनी लंबी हो चुकी थी कि मुझे पहचानना भी मुश्किल था। इस दौरान न तो मैं किसी से मिला, न ही बात की। परिवार वाले लगातार ढूंढ रहे थे।

मंजीत रोते हुए कहते हैं कि गैंगरेप के झूठे केस की वजह से मेरे परिवार को बहुत कुछ झेलना पड़ा।

जंगल मे मुझे सिर्फ पहाड़, नदी, जंगली जानवर या बाबा ही दिखते थे। पेड़ों, पहाड़ों और पक्षियों से बात करता और कहता कि मैं निर्दोष हूं। केवल ये जानना चाहता था कि बच्चे मेरे बारे में क्या सोचते होंगे। सोचता था कि जेल हो गई या मैं मर गया तो बच्चों का क्या होगा।

बेटा 18 साल का है और बेटी 22 की है। मेरे जाने के बाद उनकी पढ़ाई कैसे होगी। कौन उनसे शादी करेगा। पता नहीं किस हाल में वो जी रहे होंगे। इस दौरान मेरे परिवार ने बहुत कुछ झेला। मंजीत ये बातें बोल रहे थे और लगातार उनकी आंखों से आंसू गिर रहे थे।

मेरी बीवी ने ये लड़ाई अकेले लड़ी। उसने तमाम सबूत इकट्ठे किए, जिसमें सबसे अहम था डिजिटल वीडियो रिकॉर्डर यानी डीवीआर। पुलिस ने उस डीवीआर को पाने की बहुत कोशिश की। पत्नी पर बहुत दबाव बनाया गया, लेकिन उसने डीवीआर नहीं दिया। उसने साफ कह दिया कि अगर मेरा पति दोषी होगा तो मैं खुद उसे जेल भिजवाऊंगी। मेरे पास उसके निर्दोष होने के सबूत हैं।

थोड़ी देर रुककर मंजीत कहते हैं कि पैसों के लेन-देन में गैंगरेप का झूठा मुकदमा लगा। ये ऐसा एलिगेशन है जिसमें इंसान अपने ही परिवार की नजर में गिर जाता है। जीते जी मर जाता है। सबूतों के आधार पर ये एलिगेशन झूठा साबित हुआ। मंजीत कहते हैं, अब मुझे किसी दूसरी औरत पर भरोसा नहीं रहा।

आरोपी महिला ने कई बार खुद के बयान बदले। उसने पहले ये बयान दिया कि 25 तारीख की रात मंजीत ने 2 लड़कों के साथ मिलकर गैंगरेप किया। बाद में बयान बदलकर उसने कहा 23 तारीख की शाम 7 बजे ऑफिस में बुलाकर गैंगरेप किया। यहीं से मामला हमारे पक्ष में आ गया। उसने जो तारीख बताई उस दिन न तो वो मेरे ऑफिस आई और न मैं खुद ऑफिस में था।

जिस ऑफिस में मेरे खिलाफ गैंगरेप का आरोप लगा, वो मैंने एक पॉलिटिकल पार्टी के कार्यकर्ताओं को दिया था। आरोप लगा तो कोई भी कार्यकर्ता मेरे सपोर्ट में नहीं आया। ऑफिस में पार्टी का 20/20 का बैनर भी लगा था, लेकिन कार्यकर्ताओं ने उसे अपना ऑफिस मानने से भी इनकार कर दिया। अफसोस है कि मैंने इस पार्टी का साथ दिया।

बीच-बीच में मंजीत रुक-रुककर अपनी पत्नी पूनम को बार-बार थैंक्स कह रहे थे। कई बार तो उन्होंने आई लव यू भी बोला।

मंजीत कहते हैं कि मेरी बीवी ने ये लड़ाई अकेले लड़ी है और मुझे झूठे मुकदमे से बचाया है।

मैंने पूनम से पूछा कि मुकदमे की वजह से आप लोगों को क्या-क्या झेलना पड़ा? पूनम कहती हैं कि दुनिया कुछ भी कहे, लेकिन मैं अपने पति को बहुत अच्छे से जानती हूं। वो इतनी गिरी हरकत कभी नहीं कर सकते। जिस दिन इल्जाम लगा वो घर पर सो रहे थे। तभी मैं समझ गई थी कि कुछ गड़बड़ है। दरअसल, ये पूरा मामला पैसा उगाही करने का था। आरोपी से लेकर पुलिस तक सभी पैसे खाना चाहते थे।

शुरुआत में बहुत परेशानी हुई। अकेले ही घर, खेत और कारोबार देखना पड़ रहा था। पुलिस भी बार-बार घर आती थी। सबसे पहले मैं ऑफिस से डिजिटल वीडियो रिकॉर्डर और पति की चेक बुक लेकर आई। धीरे-धीरे सारे सबूत इकट्ठे किए और इसका नतीजा है कि मेरे पति आज मेरे साथ हैं।

पुलिस आपको परेशान कर रही थी? इस घटना के बाद 24 घंटे हमारे घर पर पुलिस का पहरा रहता था। गेट खुला होने के बावजूद वो लोग दीवार फांदकर अंदर आ जाते थे। एक बार तो एसएचओ पूरी टीम के साथ दीवार फांदकर रात में घर पर रेड मारने आ गया। पुलिस लगातार सेटलमेंट का दबाव बना रही थी। सब मिलकर हमसे 50 लाख की रकम वसूलना चाह रहे थे।

मंजीत की पत्नी पूनम कहती हैं-इस घटना के बाद मुझे लोगों की अच्छे से पहचान हो गई।

उन दिनों रिश्तेदार भी घर आते तो यही कहते कि मंजीत को पुलिस के हवाले कर दो। मैं चुपचाप सबकी सुनती रहती।

इस तरह फंसने वाले सिर्फ मंजीत नहीं हैं। ऐसे कई लोग हैं जो हनी ट्रैप में फंसकर बहुत कुछ गंवा चुके हैं। जींद के रहने वाले नरेंद्र भी ऐसे ही केस का शिकार हुए और जिंदगी खराब हो गई।

नरेंद्र से मेरी मुलाकात उनके ऑफिस में हुई। पेशे से वकील नरेंद्र एक केस पर काम कर रहे थे और इसी सिलसिले में कुछ लोग उनसे मिलने आए हुए थे। फ्री होकर नरेंद्र मुझसे बात करने लगे।

मैंने पूछा आप तो वकील हैं, फिर कैसे इस केस में फंस गए? गहरी लंबी सांस लेते हुए नरेंद्र कहते हैं जब अपने ही दगा देने लगें तो कोई नहीं बचता। मुझे रेखा धीमान ने एक झूठे केस में फंसा दिया था।

मैंने नाम सुनते ही कहा- क्या आप उसी रेखा की बात कर रहे हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हरियाणा के सीएम नायब सिंह सैनी ने इंदिरा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया? नरेंद्र सिर हिलाकर कहते हैं-जी मैडम, ये वही हैं।

थोड़ा रुककर नरेंद्र कहते हैं कि मैं और रेखा नवोदय विद्यालय से पढ़े हैं। नवोदय में पढ़ने वाले ज्यादातर लोग एक-दूसरे को भाई-बहन मानते हैं। 13 सितंबर 2020 को हम लोग एक सोशल मीटिंग के लिए रेखा के घर गए थे। मीटिंग में इनके पिताजी, भाई और एक महिला भी मौजूद थी, जिन्होंने हमें चाय-नाश्ता सर्व किया था।

इनके अलावा हम किसी से नहीं मिले। थोड़ी देर वहां बैठकर हम लोग चंडीगढ़ के लिए निकल पड़े। लगभग 2 महीने बाद हमें पता चला कि हमारे खिलाफ रेप का मुकदमा दर्ज करवा दिया गया है। ये एलिगेशन हम लोगों के लिए शॉकिंग था। मेरी एक छोटी बेटी है जो उस वक्त 8 साल की होगी। जैसे ही इस बारे में पता चला, मन में ख्याल आया कि पूरे परिवार के साथ सुसाइड कर लूं, लेकिन दोस्तों ने मुझे बचा लिया।

नरेंद्र कहते हैं कि मैं रेखा से केवल एक बार मिला था, लेकिन उसने मेरे खिलाफ केस किया कि दो साल से मैं उसका रेप कर रहा था।

मेरा एक दोस्त है जो रेखा को भी जानता था। उसके कहने पर हम लोग रेखा से मिलने गए। हमें तो इनका घर भी नहीं पता था। गांव पहुंचे तो उसका भाई हमें रिसीव करने आया।

हम तीन लोगों के खिलाफ उसने मुकदमा दर्ज करवाया। जिसमें ये कहा गया कि पिछले दो साल से नशे की हालत में हम उसका रेप कर रहे थे। पुलिस की इनवेस्टिगेशन में एफआईआर झूठी साबित हुई।

केस तो हमारे पक्ष में आ गया, लेकिन इस दौरान जो मेरी और फैमिली की स्थिति थी, उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकता। हम लोगों ने खाना खाना छोड़ दिया था। लोगों से मिलना-जुलना बंद हो गया। काम पर भी इसका असर पड़ा। मैं खुद के लिए लड़ने लायक नहीं था, कैसे दूसरों के केस लड़ता।

समाज ऐसे केस में मर्द को दोषी मान लेता है। मैं सामाजिक तौर पर हंसी का पात्र बन गया। आज भी पड़ोसी इस केस को लेकर मजाक बनाते हैं कि अखबार में तेरा चेहरा छपा था। चेहरा झुकाकर नरेंद्र कहते हैं कि अभी भी कमेंट सुनने को मिलते हैं जबकि निर्दोष हूं।

मैं तो ये सोच कर डर जाता था कि अगर गलती से भी केस हार गया तो फैमिली का क्या होगा। बेटी का क्या होगा। जब एक वकील का ये हाल है तो एक आम आदमी पर जब ऐसे केस लगते हैं तो उनका क्या हाल होता होगा।

मेरी वाइफ को हमेशा मुझ पर भरोसा था। उस वक्त वो भी इतना परेशान रहती थी। हर वक्त रोती रहती थी, मैं भी रोता था। हम दोनों को देखकर बेटी भी रोती रहती थी। पत्नी ने सबके सामने कहा कि मेरे हसबैंड ऐसी घटिया हरकत नहीं कर सकते। इतना कहते ही नरेंद्र का गला भर आता है और वो नीचे देखते हुए रोने लगते हैं। शीशे के टेबल में उनके आंखों से छलकते आंसू साफ नजर आ रहे हैं।

ऐसे एलिगेशन से किसी भी व्यक्ति का मेंटल और फाइनेंशियल लॉस होता है। फैमिली की हालत देखकर मैंने लड़ने की ठानी। इस दौरान कई बातों की जानकारी मिली जिसमें पता चला कि रेखा ने 2015 में भी इसी तरह रेप का केस किया था। ये सोशल मीडिया पर हर दिन एक्टिव रहती है, लेकिन खुद को मानसिक तौर पर बीमार बताती है।

मैं इस मामले की तह तक गया। ये पुलिस के सामने कुछ, पब्लिक के सामने कुछ और कोर्ट के सामने कुछ होती है। जिसके साथ दो साल से रेप हो रहा है वो अब तक चुप क्यों थी। रेखा जैसी महिला जो खुद एनजीओ चलाती है वो कैसे चुप रह सकती है।

नरेंद्र पेपर दिखाते हुए कहते हैं कि मैनें कम्प्लेंट में रेखा के भाई और पिता का भी नाम दिया था, लेकिन चार्जशीट में केवल रेखा का नाम है।

मुझे भले ही सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़े, लेकिन इसे सजा दिलवाकर ही रहूंगा। इस मुकदमे के बाद हर औरत को देखकर डाउट होता है। किसी भी निर्दोष व्यक्ति का जीवन ऐसी घटना से पूरी तरह बदल जाता है। मेरे साथ भी यही हुआ।

मैंने पूछा कि रेखा पहले भी ऐसे केस कर चुकी हैं, आखिर लोगों को पता कैसे नहीं चला?

नरेंद्र मुस्कुराकर कहते हैं कि वो विक्टिम प्राइवेसी का पूरा फायदा उठा रही है। हमारे लॉ में एक प्रोविजन है कि विक्टिम का नाम, आईडी और पहचान पब्लिक में उजागर नहीं किया जा सकता। वो कितनी भी कम्प्लेंट कर दे, उसका नाम पब्लिक नहीं होगा। जिसके खिलाफ उसने केस किया, सिर्फ उसे ही पता चलता है। कोई भी ये काम अकेले नहीं कर सकता। इसमें पूरा गैंग शामिल होता है, जिसमें वकील, पुलिस और परिवार के लोग होते हैं।

मेरी किस्मत अच्छी थी कि एक आईपीएस रैंक के ऑफिसर ने केस की इन्वेस्टिगेशन की। कोई और होता तो अंजाम कुछ और भी हो सकता था। मैंने उस महिला के खिलाफ कम्प्लेंट में उसके पिता और भाई का नाम भी दिया था, लेकिन चार्जशीट सिर्फ उसके खिलाफ फाइल की गई और वो ट्रायल फेस कर रही है। मैंने कहा भी कि पूरा गैंग इसे ऑपरेट कर रहा है, लेकिन किसी के भी खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।

रेखा धीमान को सीएम ने सम्मानित किया? नरेंद्र कागज के पन्ने पलटते हुए कहते हैं कि पंचकूला में जिस तरीके से इसे सम्मानित किया गया, वो शॉकिंग था। ऐसी महिला को सम्मानित करने से समाज में क्या संदेश जाएगा। हम प्रशासन से मिले और पूछा कि जिस महिला ने कई लोगों पर झूठा केस किया है, उसे कैसे सम्मानित किया जा सकता है। इस मामले पर संज्ञान लेते हुए प्रशासन इन्वेस्टिगेशन कर रही है।

मंजीत और नरेंद्र से मिलने के बाद मेरी मुलाकात सविता से हुई जो हरियाणा में ही एक एनजीओ चलाती हैं। वो बताती हैं कि हरियाणा में हनी ट्रैप का मामला फल-फूल रहा है। पैसे कमाने के लिए कुछ महिलाएं गैंग बनाकर या सोशल मीडिया के जरिए पैसे वाले लोगों को फंसाती हैं। कुछ दिन उनके साथ रहती हैं फिर रेप का आरोप लगा देती हैं। जिन्हें बदनामी का डर होता है वो पैसे देकर निकल जाते हैं। कुछ केस लड़कर खुद को निर्दोष साबित करते हैं।

सविता कहती हैं कि हरियाणा में महिलाएं पैसे के चक्कर में लोगों को हनी ट्रैप में फंसाती हैं फिर केस कर देती हैं।

जो ये दोनों काम नहीं कर पाते, उन्हें जेल जाना पड़ता है। वो भी झूठे आरोप में। कई मामलों में पुलिस वाले भी मिले होते हैं। महिलाओं की शिकायत पर फौरन मुकदमा दर्ज करने का प्रावधान है। केस सच्चा है या झूठा, ये कोई नहीं पूछता। जिस पर आरोप लगता है उसे खुद को निर्दोष साबित करना पड़ता है। अगर वो न कर पाए तो सलाखों के पीछे होगा। इसी बात का कुछ महिलाएं फायदा उठाती हैं।

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