Homeराजस्थानब्लैकबोर्ड-पड़ोसियों से शादी करने की मजबूरी: खून की उल्टियां और गले...

ब्लैकबोर्ड-पड़ोसियों से शादी करने की मजबूरी: खून की उल्टियां और गले हुए फेफड़े, गोली खाकर ही आती है नींद


सर्द दोपहरी में मुस्कान अपने घर के बाहर कुर्सी पर बैठी हैं। प्लास्टिक के पुराने डिब्बे और कुछ पॉलीथिन जलाकर मुस्कान आग सेंक रही हैं। दुबली-पतली कमजोर सी मुस्कान काफी बीमार लग रही हैं। उन्हें उम्मीद है कि ये तपिश उनके बीमार शरीर को कुछ राहत देगी। 22 स

.

जलती हुई प्लास्टिक का ये जहरीला धुआं पहले से खराब हो चुके उसके फेफड़ों को और खराब कर देगा। फिर भी, कमजोर हो चुके ठिठुरते शरीर को राहत देने का ये उनके पास सबसे सस्ता और आसान तरीका है।

‘टूटी-फूटी हिंदी में मुस्कान कहती हैं कि मेरे सीने में बहुत दर्द रहता है। कुछ खाती हूं तो जलन होती है। खांसी इतनी तेज उठती है कि खून की उल्टियां होने लगती हैं।

कभी-कभी सांस लेने में इतनी दिक्कत होती है कि आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है। मैं चक्कर खाकर गिर जाती हूं। डॉक्टर ने बताया कि मेरा एक फेफड़ा गल चुका है। दूसरा भी धीरे-धीरे खराब हो रहा है। डॉक्टर ने साफ शब्दों में कह दिया है कि अगर यही हालात रहे तो तुम्हारा बचना मुश्किल है।

स्याह कहानियों की सीरीज ब्लैकबोर्ड में आज कहानी उन लोगों की, जिनकी जिंदगी कूड़े के ढेर ने बर्बाद कर दी….

मुस्कान रोजी रोटी के लिए अपने पति के साथ कूड़ा बीनने का काम करती हैं। मुस्कान कहती हैं कि कुछ महीने पहले मेरे पति दिलबाग को टीबी हो गया। हम दोनों की खराब स्थिति देखकर डॉक्टर ने कहा था कि अगर ठीक होना है तो इस गंदगी से दूर चले जाओ।

मुस्कान कहती हैं हम जानते हैं कि ये जगह हमारे लिए ठीक नहीं है, लेकिन क्या करें रोजी रोटी यहीं पर है।

मुस्कान कहती हैं हमें कुछ और काम भी नहीं आता तो कहां जाएं। इसी गंदगी में काम करना पड़ता है और बीमारी भी झेलनी पड़ती है।

हमारे दो छोटे-छोटे बच्चे हैं, दिन-रात यही टेंशन रहती है कि हमें कुछ हो गया तो इनको कौन देखेगा। हमारे बाद मेरे बच्चों का कोई नहीं है, एक बूढ़ी विधवा मां है, जो दिन-रात दुआओं में मेरी लंबी उम्र मांगती है।

मुस्कान कहती हैं कि यहां हर तरह का कूड़ा फेंका जाता है, सैनिटरी पैड, पेशाब से भरे डायपर और सड़ी गली चीजें। जिनकी बदबू कोई आम आदमी तो बर्दाश्त ही नहीं कर सकता। हवा में फैली सड़ी-गली चीजों की बदबू नाक में घुसते ही अजीब सी बेचैनी पैदा कर देती है।

जब मैंने ये काम शुरू किया था तो रोज उल्टी कर दिया करती थी। खाना खाने का मन भी नहीं करता था। फिर मेरी एक दोस्त बोली कि तू गुटखा खाना शुरू कर तभी ये काम कर पाएगी। तब से मुझे गुटखे की लत लग गई।

अब मेरा फेफड़ा और खराब होता जा रहा है। बच्चे मेरी हालत देखकर रोते हैं। टेंशन इतनी ज्यादा है कि रात को नींद की गोली खाकर सोना पड़ता है।

मुस्कान कहती हैं कि मैं दसवीं तक पढ़ी हूं। कभी नहीं सोचा था कि मेरी पूरी लाइफ कूड़े में बीतेगी। जब छोटी थी तब सोचती थी कि शादी के बाद मेरी एक अच्छी साफ सुथरी जिंदगी होगी। मेरा घर अच्छी सोसाइटी में होगा, लेकिन हमारे इलाके में न तो कोई बाहर की लड़की देता है, ना यहां की लड़की लेता है। ऐसे में मजबूरी में पड़ोसी से ही शादी करनी पड़ती है।

मुस्कान कहती हैं हमारे मां बाप की जिंदगी इसी गंदगी में बीती, अब हमारी बीत रही है। आगे हमारे बच्चों की भी ऐसे ही बीतेगी

बाहर से कोई आता है तो हमें देखकर घिन्न करता है, पास नहीं बैठता, मास्क लगा लेता है। इसलिए हम लोगों की शादियां आसपास में ही हो जाती हैं। जिंदगी कूड़े से शुरू होकर कूड़े पर दम तोड़ देती है।

मुस्कान बताती हैं कि परेशानी कोई एक तरह की नहीं है। कई बार कचरा बीनते वक्त कांच या नुकीली नुकीली चीजें लग जाती हैं। आवारा जानवर हमारे पीछे पड़ जाते हैं। दो बार मुझे कुत्ते भी काट चुके हैं। डॉक्टर भी हमें देखकर मुंह बनाने लगते हैं। इसलिए घरेलू उपचार से ही काम चलाना पड़ता है। मुस्कान उत्तरी-पश्चिमी दिल्ली के भलस्वा डंपिग यार्ड के पास ही रहती हैं।

भारत में सबसे बड़ा दिल्ली का भलस्वा लैंडफिल साइट कूड़े का एक ऐसा डंपिंग यार्ड है, जिसे दूर से पहली बार देखने वाला व्यक्ति आम पहाड़ समझने की भूल कर बैठता है।

इसके कुछ पास पहुंचने पर हवा में फैली बदबू और पहाड़ के ऊपर मंडराते चील-कौए सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि आखिर ये है क्या। इसके पास रहने वाले कई परिवारों का चूल्हा इस पहाड़ की वजह से चलता है।

रोटी देने के बदले ये राक्षस रूपी पहाड़ मानो चुन-चुन के हर घर से बलि मांगता हो, क्योंकि घनी आबादी वाले इस इलाके में शायद ही ऐसा घर मिले जहां कोई बीमार न हो। इस इलाके के लोगों को कैंसर, टीबी, अस्थमा, मलेरिया, टाइफाइड और सांस संबंधित कई बीमारियों का सामना करना पड़ता है।

यहां बसी ज्यादातर आबादी कचरा बीनने का काम करती है। यहां रहने वाले लोग हर पल इस गंदगी के पहाड़ को कोसते हैं, लेकिन ये कहना भी नहीं भूलते की यही कचरा और गंदगी उनकी रोजी-रोटी का साधन है।

कचरा बीनते-बीनते कब कैंसर हुआ, पता नहीं चला भलस्वा लैंडफिल साइट के पास बसे जे जे कॉलोनी में रहने वाली 32 साल की रानी कब कैंसर का शिकार हुईं, उन्हें पता भी नहीं चला। रानी कहती हैं कि हम पति-पत्नी दोनों कूड़ा बीनकर अपना गुजारा करते हैं और दोनों ही बीमार हैं। मेरे हाथों की उंगलियों से दर्द शुरू होता है और पूरे शरीर में फैल जाता है।

कभी-कभी भयंकर सिरदर्द होने लगता है, अंधेरा छा जाता है। पूरा शरीर कांपने लगता है फिर मैं कुछ काम ही नहीं कर पाती हूं। मेरे पति को किडनी की समस्या है। जब कूड़े का काम किया था तब मेरे पति ने नशा करना शुरू कर दिया था। अब अक्सर इस बात को लेकर बहस हो जाती है कि कौन पहले मरेगा। इसका असर हमारी दोनों बेटियों पर पड़ता है।

रानी की बड़ी बेटी अलिना 13 साल की है और छोटी बेटी आलिया 8 साल की।

रानी की 13 साल की बेटी को जबसे पता चला है कि मां को कैंसर है तबसे वो दिनभर मां के पास ही बैठी रहती हैं।

मां कैंसर से पीड़ित हैं और कई-कई दिन खाना नहीं खाती, तो अलिना भी खाना नहीं खाती। वो बहुत अच्छे से समझ चुकी हैं कि उसकी मां किसी भी वक्त ये दुनिया छोड़ कर जा सकती हैं। पूरी-पूरी रात अलिना अपनी मां की सांसें देखती रहती हैं कि कहीं उखड़ तो नहीं रही।

रानी कहती हैं कि बड़ी बेटी मेरी बहुत फिक्र करती है। कभी-कभी उसे इतनी घबराहट होती है कि उसके पेट में दर्द उठने लगता है। मुझे 3 साल पहले ही डॉक्टर्स ने कह दिया था कि नहीं बचूंगी। करीब 1 साल अस्पताल में भर्ती रही, सर्जरी हुई और यूटरस भी निकाल दिया। कीमोथैरेपी भी चली, लेकिन कैंसर ठीक नहीं हुआ।

अब ऊपर वाला कब बुला ले कुछ नहीं पता। मैं लेटे-लेटे बस यही सोचती हूं कि काश अपनी लड़कियों की शादी देख पाती।

रानी की आंखें तो पथरा गई हैं, लेकिन जब भी वो बोलती हैं तो उनकी आवाज में दर्द साफ नजर आता है। आंखों में आंसू लिए वो कहती हैं कि बच्चों की जिंदगी में मां का सबसे बड़ा हाथ होता है। मेरे मरने के बाद कोई भी उन्हें मां जैसा प्यार नहीं दे पाएगा। हर टाइम मुझे डर लगा रहता है कि मेरे बाद बड़ी लड़की का क्या होगा।

रानी बताती हैं कि हमारे इलाके में इतनी गंदगी है कि घरों के बाहर कूड़ा भरा पड़ा है। इस इलाके में रहकर कोई बीमारी से बच नहीं सकता। मैं चाहती हूं कि मेरी बच्चियां पढ़-लिखकर इस गंदगी से निकल जाएं।

भलस्वा लैंडफिल साइट के आस-पास बसे लोगों की दुनिया इतनी गंदी और जहरीली हो चुकी है कि मानो बीमारियों से उनकी दोस्ती हो गई है।

‘लड़कियां मेरा मजाक उड़ाती हैं, मुझे देखकर मुंह बनाती हैं’ 18 साल की जैस्मिन सांवले रंग की हैं। जैस्मिन कहती हैं कि बचपन से ही मेरी स्किन बहुत फटती है और चकत्ते हो जाते हैं। बहुत पहले डॉक्टर ने कहा था ठीक होना है तो साफ-सफाई में रहो। हम बहुत गरीब लोग हैं, इस कूड़े से निकलकर कहां जाएंगे।

जैस्मिन कहती हैं बस्ती की लड़कियां मेरा मजाक उड़ाती हैं, मुझे देखकर मुंह बनाती हैं।

मेरे मां बाप दोनों बीमार रहते हैं। कई-कई दिन कूड़ा बीनने नहीं जा पाते, तब हमें एक टाइम का खाना भी मुश्किल से नसीब होता है। कोई मेरे पास बैठना पसंद नहीं करता। सबको लगता है जो मेरे पास आएगा उसे भी ये बीमारी हो जाएगी। कभी-कभी मैं बहुत रोती हूं और ऊपर वाले से कहती हूं कि मुझे ही ऐसा जीवन क्यों दिया।

दो बार लड़के वाले मिलने आए, लेकिन मुझे देखते ही रिश्ते से इनकार कर दिया। मैं भी सोचती हूं कि शादी हो भी गई तो सब ताना मारेंगे कि तू ऐसी है, तेरे बच्चे भी ऐसे ही होंगे। इस डर की वजह से शादी से इनकार कर देती हूं।

अब तो मैं सपने में भी यही देखती हूं कि मेरी स्किन थोड़ी ठीक हो जाए। मेरा सबके साथ उठना-बैठना हो। ऐसी स्किन की वजह से मैं अकेली रह गई। जैस्मिन की मां साहिबा कहती हैं कि जब ये पेट में थी मैं पूरा-पूरा दिन कूड़ा बीनती थी। जलते कूड़े का जहरीला धुआं मेरे अंदर जाता रहा, शायद इसी वजह से जैस्मिन आज ऐसी है। उसके पूरे शरीर पर खुश्की दिखती है। फिर मैं घर पर रखा तेल उसको लगा देती हूं।

पेट भरने के पैसे तो हमारे पास हैं नहीं, इलाज के लिए पैसे मैं कहां से लाऊं। मेरा पति कई साल पहले गिर गया था, उसका एक पैर खराब हो गया। अब वो कोई काम नहीं कर पाता। मेरी छाती में दर्द रहता है जिसकी वजह से मैं भी कमाने लायक नहीं बची।

जैस्मिन की मां साहिबा कहती हैं 6 बच्चे हैं जिनको कई बार भूखे सोना पड़ता है।

चूल्हे पर रोटी बनाने से सीने में दर्द की दिक्कत और बढ़ जाती है। एक मां के लिए शायद ही इससे बड़ा कोई दुख होगा कि वो रोज अपने बच्चों को भूख से तड़पता हुआ देखती है। कूड़े का काम जब तक करूंगी, तब तक ही चूल्हा जलता है।

भलस्वा डेयरी में रहने वाली रुखसाना भी कूड़ा बीनती हैं और एक एनजीओ के साथ लोगों को जागरूक करने का काम करती हैं। रुखसाना कहती हैं कि कूड़े और गंदगी का समाधान करने के लिए न ही कोई नेता और ना ही कोई सरकार आगे आती है। ये कूड़ा लोगों के लिए जानलेवा बन चुका है। हम लोगों की मदद करने के लिए घर-घर घूमते हैं तो लोग अपनी बीमारी बताने से भी डरते हैं कि समाज कहीं उनसे दूरी ना बना ले।

रुखसाना कहती हैं कि खत्ते के पास रहने वाले लोगों की जिंदगी कीड़े-मकोड़े से भी बदतर है। यहां की सड़कों का भराव भी इसी कूड़े से होता है।

रुखसाना कहती हैं यहां के लोग करें भी तो क्या। इसी से कमाना है, खाना है और एक दिन चले जाना है।

——————————————————–

ब्लैकबोर्ड सीरीज की ये खबरें भी पढ़िए…

1. ब्लैकबोर्ड- मेरा आधा चेहरा देखकर भागते हैं लोग:एक दिन सोचा लिपस्टिक लगाकर ही रहूंगी, करीब से खुद को देखा तो रोने लगी

मैं जानती हूं लोग मुझे देखना पसंद नहीं करते। इसलिए हर वक्त मास्क लगा कर रहती हूं। मैं जब छोटी थी तो हर वक्त मास्क लगाकर रहना पसंद नहीं था। हमारे मोहल्ले में कोई मास्क नहीं लगाता, लेकिन मुझे लगाना पड़ता था। पूरी खबर पढ़ें…

2. ब्लैकबोर्ड- डायन बताकर सलाखों से दागा, दांत तोड़ डाले:मर्दों ने पीटा, आंख फोड़ दी, भीलवाड़ा में डायन ‘कुप्रथा’ का खेल

मैं छत पर नहा रही थी, उसी वक्त मेरी देवरानी ने अपने परिवार वालों को फोन करके बुलाया। उसका भाई मेरा हाथ पकड़कर मुझे बाथरूम से घसीटता हुआ बाहर ले आया। मेरे शरीर पर कपड़े नहीं थे, फिर भी देवरानी के घर के मर्दों को शर्म नहीं आई। वो लोग मुझे बुरी तरह पीट रहे थे। पूरी खबर पढ़े…

3. ब्लैकबोर्ड- प्रॉपर्टी की तरह लीज पर बिक रहीं बेटियां: कर्ज चुकाने के लिए पैसे लेकर मां-बाप कर रहे सौदा

मैंने सन्नी को एक लाख रुपए के बदले एक साल के लिए बड़ी बेटी बिंदिया दे दी। उसने मेरी 10 साल की बेटी पता नहीं किसे बेच दी। मुझसे कहा था बीच-बीच में बिंदिया से मिलवाता रहेगा। उसे पढ़ाएगा-लिखाएगा। मिलवाना तो दूर उसने कभी फोन पर भी हमारी बात नहीं करवाई। पूरी खबर पढ़िए…



Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version