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CM पद छोड़ा और DTC बस से घर चले गए: दिल्ली में फिर कभी नहीं जीती BJP; साहिब सिंह वर्मा के किस्से


12 अक्टूबर 1998 को दिल्ली के सीएम साहिब सिंह वर्मा ने इस्तीफा दिया। वो अपने पैतृक घर मुंडका जाने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन 5 हजार जाटों ने सीएम हाउस घेर रखा था। सीएम हाउस के बाहर एक सरकारी बस खड़ी थी।

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रास्ता रोककर खड़े बुजुर्ग से साहिब सिंह ने कहा, ‘ताऊ जाने दे।’ बुजुर्ग बोले,

ऐसे कैसे इस्तीफा ले लेंगे। तू जाट है… तू कैसे चला जावेगा। हम तुझे जाने ही नहीं देंगे।

वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार मिश्र अपनी किताब ‘दिल्ली दरबार’ में लिखते हैं कि मदन लाल खुराना से लड़ाई में साहिब सिंह को इस्तीफा देना पड़ा था। बीजेपी ने उन्हें बहुत बुरी तरह पद से हटाया था। वे दिल्ली के मुख्यमंत्री आवास से निकले और डीटीसी की सरकारी बस में बैठकर अपने घर मुंडका चले गए। इसके बाद 27 साल हो गए, दिल्ली में चुनाव जीतकर बीजेपी सरकार नहीं बना सकी है।

‘मैं दिल्ली का सीएम सीरीज’ के दूसरे एपिसोड में साहिब सिंह वर्मा के सीएम बनने की कहानी और उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से…

दूध-जलेबी की वजह से अटल बिहारी से मुलाकात हुई

दिल्ली हरियाणा बार्डर से लगे जाट बाहुल्य गांव में 15 मार्च 1943 को साहिब सिंह वर्मा का जन्म हुआ था। पिता मीर सिंह वर्मा जमींदार परिवार से थे। साहिब को किताबों से प्यार था। उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से एमए और फिर लाइब्रेरी साइंस में पीएचडी की। दिल्ली आए तो नगर निगम की लाइब्रेरी में काम मिल गया।

साहिब सिंह वर्मा के बड़े बेटे प्रवेश वर्मा बताते हैं, ‘शुरुआती दिनों में नौकरी के लिए जहां मेरे पिताजी रहते थे, उसके पास एक मशहूर हलवाई की दुकान थी। वहां दूध-जलेबी खाने के लिए जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी आया करते थे। एक दिन दोनों की मुलाकात हो गई और मेरे पिता पहले संघ और फिर बीजेपी के होकर रह गए।’

1977 में वे दिल्ली नगर निगम के पार्षद बने। 1991 में बाहरी दिल्ली से लोकसभा लड़े, लेकिन सज्जन कुमार से हार गए। 1993 में दिल्ली विधानसभा का पहला चुनाव हुआ। शालीमार बाग से 21 हजार वोटों से जीते और मदन लाल खुराना की सरकार में शिक्षा मंत्री बने।

दिल्ली में साहिब सिंह वर्मा ने अटल बिहारी वाजपेयी से राजनीति के गुर सीखे। फिर वे लालकृष्ण आडवाणी के नजदीक आ गए। एक समारोह में अटल बिहारी बाजपेयी का सम्मान करते साहिब सिंह।

साहिब सिंह को सीएम न बनाने पर अड़ गए थे खुराना

साहिब सिंह वर्मा के समय मंत्रालय की रिपोर्टिंग करने वाले वरिष्ठ पत्रकार दिलबर गोठी बताते हैं कि जैन हवाला कांड में नाम आने के कारण लाल कृष्ण आडवाणी इस्तीफा दे चुके थे। दिल्ली के सीएम मदन लाल खुराना का नाम भी उस डायरी में था। आडवाणी की सलाह पर खुराना ने भी इस्तीफा दे दिया।

पार्टी को लगा कि मदन लाल खुराना के बाद कोई ऐसा नेता होना चाहिए, जिसका बड़े इलाके में दबदबा हो। साहिब सिंह वर्मा ऐसे ही नेता थे। लेकिन मदन लाल खुराना, उन्हें सीएम बनाने के पक्ष में नहीं थे। वे आलाकमान के सामने गिड़गिड़ा गए। अब मंथन चला कि किसे सीएम बनाया जाए।

अरुण जेटली ने राज्य की राजनीति में शामिल होने से इनकार कर दिया। सुषमा स्वराज से भी कहा गया, लेकिन पार्टी के भीतर के नेताओं का कहना था कि वो बाहरी हैं। अंबाला से लड़ती हैं। वे दिल्ली के मिजाज काे नहीं समझ पाएंगी।

इसके बाद खुराना के मंत्रिमंडल में शामिल रहने वाले और उनकी पसंद के नेता डॉ. हर्षवर्धन के नाम पर विचार हुआ, लेकिन कहा गया कि वे अभी बहुत जूनियर हैं। जब समस्या का निदान नहीं हो पाया तो विधायकों से पूछा गया कि वही बताएं कि किसे सीएम देखना चाहते हैं।

जब मदन लाल खुराना सीएम बने तो नंबर दो पोजिशन पर साहिब सिंह वर्मा थे। जब कुर्सी साहिब सिंह के पास आई तो उन्होंने खुराना के लिए कुर्सी खाली करने से मना कर दिया था। चुनाव प्रचार के दौरान वर्मा और खुराना।

23 फरवरी 1996 को दिल्ली में बीजेपी विधायक दल की बैठक हुई। इसमें साहिब सिंह का नाम चला। रायशुमारी हुई तो साहिब के पक्ष में 48 में से 31 ने सहमति दी। 3 दिन बाद 26 फरवरी को साहिब सिंह वर्मा ने सीएम पद की शपथ ली।

वरिष्ठ पत्रकार गुलशन राय खत्री बताते हैं कि साहिब सिंह वर्मा के लिए ये चुनौती थी। कई मंत्री कैबिनेट की मीटिंग में नहीं जाते थे। बहुत सारे मंत्री ऐसे थे जो मदन लाल खुराना के पक्ष में खड़े थे। साहिब सिंह वर्मा के कई फैसलों पर वो कैबिनेट मीटिंग्स में सवाल भी खड़ा करते थे, लेकिन वर्मा ने धीरे-धीरे काउंटर करने की कोशिश की, अपने मंत्री बनाए।

खत्री के मुताबिक, ‘साहिब सिंह को सीएम चुनने से पंजाबी-बनिया की बीजेपी, गांव-देहात की पार्टी भी बन गई। साहिब सिंह के चलते एक बड़ा हिस्सा जिसे ‘दिल्ली देहात’ कहते हैं, बीजेपी से जुड़ा। जब साहिब सिंह मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने देहात के लिए मिनी मास्टर प्लान बनाया। गांवों में कम्युनिटी सेंटर, डेवलेपमेंट सेंटर और तरह-तरह के प्रयोग शुरू किए।’

साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश बताते हैं, ‘मेरे पिताजी बेहद साधारण इंसान थे। वे देसी खाना खाते थे। रोज सुबह तैरने जाते थे।’ प्रवेश पूर्व सांसद हैं और इस बार नई दिल्ली विधानसभा सीट से आप संयोजक अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी की ओर से मैदान में हैं।

साइकिल से मंत्रालय जाते, DDA फ्लैट में रहते थे

वरिष्ठ पत्रकार रामेश्वर दयाल बताते हैं कि दिल्ली में बिजली-पानी की दिक्कत थी। केंद्र से फंड भी नहीं मिल रहा था। जब साहिब सिंह वर्मा सीएम बने तो उन्होंने विरोध का नया तरीका निकाला।

उन्होंने सरकारी गाड़ी लेने से इनकार कर दिया। वर्मा ने कहा, ‘मैं गाड़ी पर नहीं, साइकिल पर चलूंगा।’ कई दिनों तक वो साइकिल पर चलते रहे। उस समय लोग देखकर हंसते थे और गर्व भी करते थे कि दिल्ली का मुख्यमंत्री साइकिल पर चल रहा है। उनकी सिक्योरिटी में लगे जवान जीप में साइकिल के आगे-पीछे चलते थे।

ऐसा ही एक किस्सा वरिष्ठ पत्रकार अपर्णा द्विवेदी बताती हैं-

साहिब सिंह ने एक बार फोन किया और कहा कि दिल्ली में पानी की कमी है, हरियाणा ने पानी रोका है। मैं हैदरपुर में अपनी कैबिनेट करने जा रहा हूं। जब हम लोग वहां पहुंचे तो वर्मा जी वहीं खटिया डालकर बैठे हुए थे। 3-4 और खटिया उनकी कैबिनेट के लिए तैयार हो रही थी। फिर हम लोगों ने शूट किया। उन्होंने 2 दिन तक वहां कैबिनेट लगाई। जो प्रॉब्लम सॉल्व होने में हफ्ता गुजर जाता, वो 2-3 दिन में सुलझ गया।

मुख्यमंत्री बनने के बाद शुरुआती दौर में वे अपने शालीमार बाग के डीडीए फ्लैट में ही रहते थे। यहां सुरक्षा का मसला खड़ा हो गया। सवाल था कि सीएम की सुरक्षा में लगे जवान कहां रहेंगे।

जवानों ने उनके फ्लैट के बाहर कॉलोनी के पार्क में ही टेंट लगा दिया था। पार्क पर सरकारी ‘अतिक्रमण’ से लोग परेशान हो रहे थे। लोगों ने सीधे वर्मा से कहा, ‘आपकी सिक्योरिटी के चक्कर में पार्क में अब वॉक करना भी मुश्किल हो गया है।’

वर्मा ने कॉलोनी वालों से कहा, ‘मैंने इनसे कई बार कहा है कि मुझे कोई सुरक्षा की जरूरत नहीं है। ये कहते हैं, ये हमारा काम है।’

हालांकि कुछ दिन बाद वे श्याम नाथ मार्ग वाले बंगले में शिफ्ट हुए तब जाकर पार्क से टेंट हटे।

जब CM की पत्नी ने कहा- आप लोग बाहर जाएं, मुझे कपड़े बदलने हैं

वरिष्ठ पत्रकार गुलशन राय खत्री एक रोचक किस्सा बताते हैं- ‘साहिब सिंह जिस 9, श्याम नाथ मार्ग के घर में रहते थे, वहां हम लोग बहुत जाया करते थे। उनके घर का कोई ऐसा कमरा ही नहीं था कि जिसे आप कह सकें कि ये आपके लिए प्रतिबंधित है। एक बार हम पत्रकार लोग बैठे हुए थे, थोड़ी देर बाद उनकी पत्नी आईं और उन्होंने कहा कि 5 मिनट के लिए कमरा खाली कर दें, मुझे कपड़े बदलने हैं। बाद में समझ आया कि वो उनका बेडरूम है।’

खत्री कहते हैं, ‘साहिब सिंह एकदम ठेठ देहाती की तरह हाथ में लेकर खाते, किसी की भी रोटी तोड़ लेते थे और ये दिखावा नहीं, स्वाभाविक लगता था। जब वे आपसे बात करते थे तो देसीपन लगता था। साहिब सिंह शाकाहारी थे, नॉनवेज के भारी विरोधी थे। उन्होंने शराब, बीड़ी-सिगरेट प्रतिबंधित करा दिया था। उस समय दिल्ली में बिल भी आया था, हर्षवर्धन जी लेकर आए थे। दिल्ली में उसी समय से सिगरेट-गुटखा प्रतिबंधित है।’

साहिब सिंह वर्मा का घर हो या दफ्तर उनके दरवाजे हमेशा सबके लिए खुले रहते थे। सुबह 6 बजे से ही लोग उनसे मिलने आ जाते थे।

जब CM से एक ताऊ बोले- साइन तो तूने कर दिए, मुहर भी लगा दे!

साहिब सिंह वर्मा केवल 4 घंटे सोते थे। उनका दिन सुबह 4 बजे शुरू हो जाता था। इसके बावजूद भी वे समय के पाबंद नहीं थे। सुबह 6 बजे से ही उनके घरों में मिलने वालों की भीड़ जमा हो जाती थी।

वरिष्ठ पत्रकार सुशील कुमार सिंह बताते हैं, ‘एक बार उन्होंने मुझे कहा कि सुशील तू कल नाश्ता मेरे साथ कर। मैंने कहा ठीक है। उन्होंने कहा, कल सुबह 5 बजे मेरी गाड़ी लेने आएगी। मैंने कहा इतनी जल्दी? मैं दो बजे ताे घर ही पहुंचता हूं। इसके बाद उन्होंने कहा ठीक है तू 6 बजे आ जा। मैं मना नहीं कर सका और सोचा कि कोई 6 बजे नाश्ते के लिए बुलाता है क्या!’

‘सुबह पौने 6 बजे मेरे घर के दरवाजे पर दस्तक हुई। मैं बिस्तर छोड़कर उठा तो दो पुलिस वाले और दो ऑफिसर टाइप लोग थे। उन्होंने कहा सीएम साहब ने आपको बुलाया है। गाड़ी भेजी है, चलिए। मैंने कहा बीस मिनट रुको चलते हैं।’

सुशील आगे बताते हैं, ‘जब मैं उनके बंगले पर पहुंचा तो देखा कि वहां इतनी सुबह ही जबरदस्त भीड़ थी। वे लोगों से मिल रहे थे। हर कमरे में लाेग भरे हुए थे। उनके डाइनिंग एरिया में भी आउटर दिल्ली से आए लोग बैठे हुए थे। उन्होंने मेरी तरफ देखा और बैठने का इशारा किया। वो लोगों की एप्लीकेशन ले रहे थे। थोड़ी देर बाद आए और मुझे अंदर के कमरे में ले गए। वहां देखा कि उनकी वाइफ चूल्हे पर गरम-गरम पराठे बना रही थीं।

मैंने उनसे पूछा भाभीजी को क्यों परेशान कर रहे हैं, साहिब सिंह बोले,

मैं तो अपनी घरवाली के हाथ का ही खाना खाता हूं। आज तू मेहमान है। हम अपने मेहमानों को अपने हाथ से बनाकर खिलाते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ मिश्रा बताते हैं, ‘एक बार मैं जब उनके चेंबर में गया तो देखा कि ढेर सारी चेयर्स लगी थीं। वो एक कोने में एक टेबल लगाकर बैठे लोगों की शिकायतें सुन रहे थे। तभी एक बुजुर्ग के किसी कागज पर उन्होंने साइन करके कहा कि अब काम हो जाएगा।’

बुजुर्ग ने कहा, ‘दस्तखत तो तूने कर दिए, मोहर भी लगा दे ताकि काम पक्का हो जाए।’ तब साहिब सिंह ने कहा, ‘ताऊ सील बाहर से लगवा लेना वहां लड़का बैठा है।’

वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार मिश्रा बताते हैं, ‘एक बार मैंने उनसे कहा कि आप मिलने वालों का टाइम फिक्स क्यों नहीं कर देते। वे बोले, ‘यार ये इतनी दूर से मिलने आते हैं। अगर दो मिनट मिल लूंगा तो मेरा क्या जाएगा।’

आउटर दिल्ली में साहिब सिंह इतने लोकप्रिय थे कि जब उन्होंने इस्तीफा दिया तो पांच हजार लोगों ने उनके घर को घेर लिया और कहा- ‘हम आपको नहीं जाने देंगे।’

जुकाम होता तो अपने सिर की खुद मालिश करते

मनोज कुमार मिश्रा अपनी किताब ‘दिल्ली दरबार’ में लिखते हैं कि साहिब सिंह वर्मा 24 घंटे में 18 घंटे काम करते थे और क्या काम करते थे, ये किसी को पता नहीं चलता था। उनके चेहरे पर कभी थकान नजर नहीं आती थी। वे शायद ही कभी बीमार हुए हों। जब कभी उन्हें जुकाम होता तो वे खुद अपने सिर की तेल से मालिश करते और जुकाम ठीक कर लेते थे।

साहिब सिंह के प्रयासों से दिल्ली विधानसभा परिसर में हर तरह का नशा प्रतिबंधित हुआ था। वे अपने सरकारी बंगले पर गाय रखते थे। उसी देसी गाय का दूध रोज पीते। उसी दूध का बना घी खाते थे। उन्हें नौकरों के हाथ का खाना पसंद नहीं था।

मनोज लिखते हैं, साहिब सिंह सुबह 4 बजे उठकर नहर पर टहलने जाते थे। लोग भी जुड़ जाते थे। उनकी आदत थी कि वो कंधे-पीठ पर हाथ रख कर पूछते थे कि क्या हाल हैं तेरे?’ साहिब वर्मा बताते थे कि वे बचपन में अपने गांव मुंडका से सब्जियां लेकर मंडी में बेचने जाया करते थे। वो कॉलेज में लाइब्रेरियन भी रहे।

साहिब सिंह ने कहा- गरीब नहीं, अमीर प्याज खाते हैं

वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ मिश्रा बताते हैं कि सबसे पहले उनकी सरकार का सामना ‘ड्रॉप्सी’ नाम की बीमारी से हुआ। मदर डेयरी के ऑयल धारा में सप्लायर ने मिलावटी तेल सप्लाई कर दिया था। इससे ड्रॉप्सी हुआ और कई बच्चों की मौत हुई। बाद में पता चला कि सप्लायर साहिब सिंह वर्मा का परिचित था। इससे उनकी बहुत बदनामी हुई।

एक बार पानी में जहर फैल गया। असल में पीने के पानी के टैंकर में मरा हुआ सांप था। इससे पानी जहरीला हो गया था। कई लोग बीमार हो गए थे। इसके बाद प्याज महंगी हो गई।

वरिष्ठ पत्रकार गुलशन राय खत्री बताते हैं कि मीडिया प्याज को लेकर बार-बार सरकार से सवाल पूछ रही थी। सस्ते दामों पर प्याज बेचने की कोशिश हुई, लेकिन ये कारगर साबित नहीं हुई। प्याज के दाम नीचे नहीं आए।

इस्तीफा देने के बाद अपनी कुर्सी सुषमा स्वराज को सौंपते साहिब सिंह वर्मा।

कांग्रेस ने अभियान चलाया, कांग्रेस नेता प्याज की मालाएं पहन कर जाते थे। कांग्रेस के लोगों ने कई जगहों पर महंगे प्याज खरीदकर लोगों को सस्ते दामों पर बेचने शुरू किए। वो कैम्पेन इतना असरदार हो गया कि साहिब सिंह वर्मा से जब पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘गरीब आदमी तो उतना प्याज नहीं खाता है। ये तो मिडिल क्लास और एलीट क्लास वाले खाते हैं।’

वो शायद अंदाजा नहीं लगा पाए कि मेरे बयान का क्या मतलब निकाला जाएगा। ये बयान एक तरह से वायरल हो गया और उनके बहुत खिलाफ चला गया। दूसरी तरफ मदन लाल खुराना के विरोध का भी दबाव था।

वरिष्ठ पत्रकार गुलशन राय खत्री बताते हैं, ‘जब साहिब सिंह को हटाया गया, उससे पहले हम साहिब सिंह को कहने गए थे कि आप पहले चुनाव करा लें। उन्होंने मना कर दिया। कहा कि नहीं, अटल जी की सरकार बनेगी। दिल्ली को स्टेटहुड दिलवाऊंगा और फिर चुनाव होंगे। उसकी नौबत ही नहीं आई, उनको हटा दिया गया। उन्होंने पूरी तरह से ड्रामा किया, बस से अपने घर गए। कई दिनों तक उनके घर पर धरना चला। लेकिन फिर बतौर सीएम वापसी नहीं हो सकी।

1999 के लोकसभा चुनाव में साहिब सिंह बाहरी दिल्ली से दो लाख से ज्यादा वोटों से जीते। 2002 में वे अटल सरकार में श्रम मंत्री बने। 30 जून 2007 को जयपुर-दिल्ली हाईवे पर कार दुर्घटना में उनका निधन हो गया था।

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