Homeराजस्थानब्लैकबोर्ड-हमारी बेटी का रेप हुआ और हमें ही कैद मिली: अस्पताल...

ब्लैकबोर्ड-हमारी बेटी का रेप हुआ और हमें ही कैद मिली: अस्पताल ले जाने के लिए CRPF से इजाजत लेती रही, घर में मेरा गर्भ गिर गया


‘हमारी बेटी के साथ रेप हुआ, उसने दम तोड़ दिया और सजा भी हमें ही मिली। हम पांच साल से घर में कैद हैं। घर पर सीआरपीएफ तैनात है। बाहर जाना हो, तो सरकार से परमिशन चाहिए। ऐसा लगता है कि हम घर में नहीं जेल में रहते हैं। इस कैद की वजह से मैंने अपनी कोख में

.

मुझे हाथरस के अस्पताल ले जाया गया तो डॉक्टरों ने भी हाथ लगाने से मना कर दिया। डॉक्टर ने फटकारते हुए कहा कि इसे यहां से ले जाओ, ये मेरा अस्पताल बंद करवाएगी। फिर मेरे पति मुझे आगरा लेकर भागे, लेकिन तब तक पांच घंटे बीत चुके थे, मेरा बच्चा गिर गया। 25 लाख देकर हमें घर में कैद कर दिया। वो मुआवजा नहीं हमारी सजा थी। ऐसी जिंदगी का क्या फायदा।’

यह स्याह पहलू है सीमा का, जो उत्तर प्रदेश के हाथरस रेप कांड में मारी गई लड़की की भाभी है।

ब्लैकबोर्ड में इस बार कहानी उन रेप विक्टिम के परिवार की जो पीड़ित होकर भी कैद में हैं, बच्चे स्कूल नहीं जा सकते, लोगों ने उनसे रिश्ते तक तोड़ लिए हैं

14 सितंबर 2020 को उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के एक छोटे से गांव में 19 साल की दलित लड़की का गैंगरेप हुआ। गांव के ही चार ऊंची जाति के लड़कों- संदीप, लवकुश, रवि और रामू पर लड़की के साथ गैंगरेप और जान से मारने का आरोप लगा। बाद में इलाज के दौरान लड़की की मौत हो गई।

मौत के बाद पुलिसवालों ने जबरन उसका अंतिम संस्कार कर दिया। घटना के ढाई साल बाद 2023 में सिर्फ एक आरोपी संदीप सिसोदिया को दोषी माना और उम्रकैद की सजा सुनाई। जबकि बाकी तीनों आरोपियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया।

रेप कांड में मारी गई लड़की के घर के बाहर पिछले पांच साल से सीआरपीएफ का पहरा है। आरोपी पड़ोस के रहने वाले हैं इसलिए परिवार को जान का खतरा बना रहता है। घर में आने-जाने वालों को सीआरपीएफ के जवानों से परमिशन लेनी पड़ती है और रजिस्टर में एंट्री भी करनी पड़ती है। घर के गेट से पहले ही मेटल डिटेक्टर गेट लगा है, इसी से आना-जाना होता है। घरवालों को बाहर निकलने के लिए भी इजाजत लेनी पड़ती है।

हाथरस रेप कांड में मारी गई लड़की के घर के बाहर पांच साल से सीआरपीएफ का पहरा है।

घर के बाहर टेंट लगा है जिसमें सीआरपीएफ के जवान रहते हैं। घर में अंदर जाते ही बांयी तरफ मवेशी बंधे हैं। गेट से अंदर घुसते ही मिट्टी का कच्चा मकान है। अंदर रह रहे लोगों के चेहरे पर गहरी उदासी है। इनके जख्म टहक-टहक कर अपना दर्द बयां करते हैं। आंगन में दो छोटी बच्चियां खेल रही हैं।

साड़ी के पल्लू से चेहरा छिपाए पीड़िता की भाभी सीमा टूटी-फूटी हिंदी में कहती हैं- ‘इन पांच सालों में हम 15 साल पीछे चले गए हैं। बाहर की दुनिया ही भूल चुके हैं। हमारी जिंदगी इस चारदीवारी के भीतर ही सिमट कर रह गई है। गांव के लोगों ने हमसे रिश्ते-नाते तोड़ लिए हैं। मेरी बड़ी बेटी 6 साल से घर नहीं आई है, मैं उसे इस कैद में नहीं रखना चाहती।

घटना के एक साल पहले से ही वो मेरी मां के साथ रह रही है। उस वक्त तीन-तीन बच्चे संभालने में दिक्कत हो रही थी इसलिए बड़ी बेटी को मायके छोड़ आई थी। अब वो दस साल की हो गई है, रोज वीडियो कॉल पर रोती है। पूछती हैं कि लेने कब आओगे। उसे बहलाने के लिए कह देते हैं कि जल्दी आएंगे। वो रोते-रोते यही कहती है कि हर बार झूठ बोलते हो।’ इतना कहते ही सीमा सिसक सिसक कर रोने लगती हैं।

पल्लू से आंसू पोंछती हुई कांपती आवाज में सीमा कहती हैं- ‘बेटी का मासूम चेहरा देखकर रोना आता है कि हमने उनका बचपन खो दिया। दूसरी बेटी भी 6 साल की हो गई और तीसरी 5 साल की है, सबकी पढ़ने की उम्र हो गई है, लेकिन इन्होंने स्कूल देखा तक नहीं। हम लोग इतने पढ़े-लिखे नहीं हैं कि घर में पढ़ा सकें, इसलिए स्कूल जाना जरूरी है।

हमें कहा जाता है कि अपने रिस्क पर बच्चों का दाखिला यहां के स्कूल में करवाना। बच्चों को कुछ हुआ तो हमारी जिम्मेदारी नहीं है। स्कूल में आरोपी के बच्चे भी पढ़ते हैं, फिर वहां झगड़ा हुआ तो कसूरवार तुम लोग होगे। हम पहले ही घर की एक बेटी खो चुके हैं और किसी को खो नहीं सकते। कोर्ट ने डीएम साहब को बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था करने का आदेश दिया था, लेकिन कुछ नहीं हुआ।’

सीमा बच्चियों के तरफ इशारा करते हुए कहती हैं, ‘मेरी बेटियां घर में ही खेलती हैं। इनकी कोई सहेली नहीं है। एक दिन मैंने कहा गांव में मेला लगा है, जाकर घूम आओ तो बेटियां कहने लगीं कि उसी रास्ते में वो लोग रहते हैं जिन्होंने बुआ को मारा। कहीं हमें भी न मार दें।’

सीमा दरवाजे पर तैनात जवान की ओर इशारा करते हुए कहती हैं- ‘हम लोग जहां भी जाते हैं, सुरक्षाकर्मी हमारे साथ जाते हैं। सीआरपीएफ को साथ देखते ही लोग बदल जाते हैं, उनकी सोच बदल जाती है। हम कैदियों वाला जीवन जी रहे हैं। अब तो हम यहां रहना ही नहीं चाहते। हमने अपनी बेटी खोई और मान-सम्मान भी हमारा ही चला गया। अपनी बेटी के लिए आवाज उठाई यही हमारी गलती थी, हमें इसी की सजा मिल रही है।

पता नहीं कैसा न्याय है, कैसा कानून है और कैसा कोर्ट है। हमारी सारी खुशियां छिन गईं। जिंदगी जानवरों से भी बदतर हो गई। पिछले तीन साल से बीमार हो गई हूं।’ इतना कहते ही सीमा फिर से फफक कर रोने लगती हैं।

सीमा कहती हैं हमारी जिंदगी जानवरों से भी बदतर हो गई।

पीड़िता के दोनों भाई भी घर पर ही रहते हैं। सुरक्षा में रहने की वजह से नौकरी भी नहीं कर पा रहे हैं। छोटे भाई हरि कहते हैं, ‘पहले हम दोनों भाई प्राइवेट जॉब करते थे, लेकिन 2020 के बाद सब कुछ बदल गया। सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षा में रहने का आदेश दिया तबसे पूरा परिवार घर में कैद है। घर से बाहर जाने के लिए सीआरपीएफ के कमांडर को एक दिन पहले एप्लिकेशन देनी होती है, उसके बाद अगले दिन गाड़ी आती है तभी हम लोग किसी भी काम के लिए बाहर जा पाते हैं। राशन लेना हो, दवाई लेनी हो या सरकारी काम से बाहर जाना हो, बिना इजाजत कदम बाहर नहीं रख सकते।’

हरि कुछ सोचते हुए आगे कहते हैं, ‘इस घटना के बाद से किसी भी रिश्तेदारी में नहीं जा पाते। गांव के लोगों ने तो हमें पहले से ही अलग कर रखा है। कोई हमसे बात तक नहीं करता। हम पीड़ित होकर भी घर में कैद हैं और अपराधी जेल से छूट कर खुलेआम घूम रहे हैं।

लखनऊ कोर्ट ने नौकरी देने का आदेश दिया था, लेकिन अब तक नहीं मिली। हमें नोएडा या गाजियाबाद में मकान देने के लिए कहा गया, लेकिन सरकार गांव से कुछ दूर हाथरस शहर में घर और नौकरी देने पर लगी है। हमारे लिए हाथरस या गांव में रहना बराबर ही है।’

हरि आगे कहते हैं, ‘मुआवजे में 25 लाख रुपए मिले थे वो भी खत्म हो रहे हैं। 2020 से इसी पैसे से घर का खर्च चल रहा है। कोर्ट की हर तारीख पर कम से कम 20 हजार रुपए खर्च हो जाते हैं। सीआरपीएफ के जवान भी हमारे ही खर्चे पर जाते हैं। अब सरकार हमें ये घर और यहां की जमीन हैंडओवर करने को कह रही है। जब हम अपना घर और जमीन सरेंडर करेंगे तभी सरकार हमें नई जगह देने पर विचार करेगी।’

दिल्ली में रहने वाले कुंवर सिंह नेगी की भी कहानी कुछ ऐसी ही है। 9 फरवरी 2012 को उनकी बेटी किरण नेगी को किडनैप कर हरियाणा ले जाया गया और तीन दिन तक गैंगरेप किया गया। उसकी आंखों में तेजाब डाला और नाजुक अंगों में शराब की बोतल डाल दी। जब तड़प-तड़पकर उसकी मौत हो गई तो सरसों के खेत में फेंक दिया गया।

कुंवर सिंह कहते हैं कि ‘9 फरवरी 2012 से लेकर आज तक हमें इंसाफ नहीं मिला। दो पीएसओ हमारे घर की निगरानी में हमेशा लगे रहते हैं। हम घर में कैद होकर रह गए। जिंदगी खौफ में बीत रही है। मेरी बच्ची के कातिल को लोअर कोर्ट और हाईकोर्ट से फांसी की सजा दी गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। जबकि उन्हीं में से एक ने कुछ दिनों के बाद एक ऑटो चालक को भी मार दिया।’

रुंधे गले से कुंवर सिंह कहते हैं, ‘हमारी बेटी भी गई, कोर्ट कचहरी के चक्कर काटते-काटते जिंदगी बीत गई और न जाने कितना पैसा खर्च हो गया। बेटी जब तक जिंदा थी घर का खर्च वही देखती थी। आज मेरी आर्थिक हालत इतनी खराब है कि घर का खर्च भी बमुश्किल चलता है। तीन मुजरिमों के बरी होने के बाद तो जिंदगी और बदल गई। मेरी जान को खतरा है इसलिए नौकरी नहीं कर सकता। यहां सब बिकाऊ हैं। हमें एक लाख का चेक देकर सबने पल्ला झाड़ लिया।’

कुंवर सिंह खीझते हुए कहते हैं, ‘उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने ये कहकर टाल दिया कि वो दिल्ली की लड़की है जबकि दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कहा कि ये दिल्ली नहीं उत्तराखंड की लड़की है। मेरे लड़के को नौकरी देने का वादा किया गया था, लेकिन वो आज भी बेरोजगार है। मैंने अपनी बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए नौ मुख्यमंत्रियों से मुलाकात की, लेकिन साल दर साल बीतते गए, कागजों का बोझ बढ़ता गया, इंसाफ नहीं मिला।’

मां महेश्वरी नेगी कहती हैं, ‘हमारी जिंदगी तो न घर की है, न घाट की। मेरे लड़के की जिंदगी खराब हो गई। बेटी के जाने के बाद हम बच्चों पर ध्यान ही नहीं दे पाए। इनकी पढ़ाई भी ठीक से नहीं हो पाई। हमने बच्चों को यहां से बाहर कर दिया है। बेटी शादी के लायक हो गई है, लेकिन उसकी शादी करने के लिए पैसे भी नहीं हैं। हमारी बेटी भी गई, पैसा भी। जिंदगी बर्बाद हो गई। पता नहीं कैसा न्याय है, जुर्म करने वाले के डर से हमें सुरक्षा दी गई है जबकि गुनहगार को कैद करना चाहिए था। हम लोग कैद होकर रह गए और वो लोग खुलेआम घूम रहे हैं।’

महेश्वरी नेगी बेटी की फोटो दिखाते हुए कहती हैं- हमारी ही बेटी मार दी और सजा भी हमें ही मिल रही है।

कुछ ऐसे ही हालात हैं दक्षिण दिल्ली की रहने वाली उस रेप पीड़िता के घर का जिसका 90 साल की उम्र में रेप हुआ था। वो 7 सितंबर 2020 को दक्षिण दिल्ली में अपने घर के बाहर बैठी थीं। पड़ोसी गांव का सोनू स्कूटी पर आया और झांसा देकर उनको अपने साथ ले गया। जंगल में खेत पर बने कमरे में उसने 90 साल की दादी के साथ दो घंटे तक बलात्कार किया था।

दादी की बहू दिव्या गर्दन झुकाकर कहती हैं, ‘अम्मा जी अब नहीं रहीं। 90 साल की उम्र में उनके साथ रेप हुआ, लेकिन इंसाफ के इंतजार में अम्मा जी चल बसीं। सरकार ने 5 लाख की राशि का वादा किया था और दिए केवल 50 हजार। अम्मा सदमे से बाहर नहीं निकल पाई थीं। दिन-रात रोती थीं, यही कहती थीं कि मेरे साथ क्या हो गया। उनके आंखों की रोशनी भी चली गई थी।’

दिव्या कहती हैं, ‘कोर्ट के चक्कर काटकर हमारा पैसा भी खर्च हो रहा है। घटना अम्मा के साथ हुई, लेकिन परिवार के लोगों को घर से बाहर निकलने में भी शर्म आती थी। घटना के बाद हमारे बच्चे भी सदमे में रहे। सरकार ने तब इतने वादे किए, लेकिन बाद में कोई पूछने तक नहीं आया।’

———————————–

ब्लैकबोर्ड सीरीज की ये खबरें भी पढ़िए…

1. ब्लैकबोर्ड- मोबाइल का लालच देकर चाचा करते थे गलत काम:प्राइवेट पार्ट टच करना कॉमन था, आज भी कोई छुए तो घिन आती है

उस रोज मेरे साथ जो हुआ उसने मर्दों के लिए मेरी सोच को पूरी तरह से बदल कर रख दिया। हर मर्द की शक्ल में मुझे वही दिखता है। मुझे लड़कों से नफरत हो गई है। कोई मर्द मेरी तरफ देख भी ले तो सहम जाती हूं। पूरी खबर पढ़ें…

2.ब्लैकबोर्ड- 359 दिनों से शव के इंतजार में बैठा परिवार:विदेश में नौकरी के नाम पर रूसी सेना में मरने भेजा, खाने में जानवरों का उबला मांस दिया

मेरे भाई रवि ने 12 मार्च 2024 को फोन में आखिरी वीडियो रिकॉर्ड किया था। तब से आज तक हम उसकी डेडबॉडी के इंतजार में बैठे हैं। एजेंट ने नौकरी के नाम पर भाई को रूसी आर्मी में भर्ती करवा दिया। यूक्रेन के खिलाफ जंग लड़ते हुए उसकी मौत हो गई। पूरी खबर पढ़ें…



Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version