हुबली6 मिनट पहलेलेखक: राम राज डी
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मेरी मां और नानी देवदासी थीं। मुझे भी इसमें धकेल दिया। परिवार संभालने के नाम पर सेक्स वर्कर बन गई। इस बीच दो बच्चे हो गए। दोनों स्कूल जाते हैं। वहां लोग उनसे पिता का नाम पूछते हैं। उनको बहुत शर्मिंदगी होती है।
यह कहानी कर्नाटक में 41 साल की शोबा मथाड और उन जैसी 46 हजार से ज्यादा महिलाओं की है, जिन्हें भगवान की कथित सेवा के नाम पर मंदिरों में देवदासी बना दिया गया था। इसके बाद वे यौन शोषण और प्रताड़ना का शिकार हुईं।
कर्नाटक में 1982 में लड़कियों को देवदासी बनाने की प्रथा के खिलाफ कानून लाया गया। तब से सरकारें दावा करती आई हैं कि यह प्रथा बंद हो गई है। हालांकि, चोरी-छिपे लड़कियां आज भी इस दलदल में धकेली जाती हैं। लड़कियों को अब उनका परिवार देवदासी बनाने के बाद देह व्यापार के लिए दूसरे राज्यों में भेज देता है।
दैनिक भास्कर ने इस प्रथा की जमीनी हकीकत समझने के लिए 8 दिन तक बगलकोटे, बेलगावी, धारवाड़, विजयनगर और कोप्पल जिलों का दौरा किया। इस दौरान देवदासियाें, उनके परिवारों से बात कर पूरा मामला समझने की कोशिश की। पढ़िए यह ग्राउंड रिपोर्ट। दैनिक भास्कर ने बेलगावी जिले के हल्लूर गांव में मनोहर से बात की। उन्होंने अपनी बेटी सपना को देवदासी बनाने के बाद महाराष्ट्र में देह व्यापार के लिए भेज दिया है। नेहा नाम की एक दूसरी युवती ने बताया कि उसकी कहानी भी मिलती-जुलती है। ये अपनी पहचान नहीं बताना चाहते हैं, इसलिए हमने इनके नाम बदल दिए हैं।
दो देवदासियों की कहानी, जो महाराष्ट्र में सेक्स वर्कर हैं…
1. सपना की कहानी : 5 बहनों को पिता पाल नहीं सके, एक को महाराष्ट्र भेजा मनोहर ने बताया कि उनकी 5 बेटियां हैं। सपना सबसे बड़ी है। इसलिए उसे देवदासी बना दिया। वह कहते हैं, ‘यह सब भगवान की इच्छा से होता है। उन्होंने ही 5-5 बेटियां दे दीं। एक बेटा नहीं दिया। मैं और मेरी पत्नी खेत में मजदूरी करते हैं। उस कमाई से 7 लोगों का परिवार चलाना बहुत मुश्किल था। बेटियों को पढ़ाना-लिखाना तो दूर की बात है।’
‘मेरी चाची और बहनें देवदासी बनने के बाद दूसरे राज्यों में सेक्स वर्कर हैं। अच्छे पैसे कमाती हैं। इसलिए जब हमारी बड़ी बेटी थोड़ी बड़ी हुई, तो उसे मंदिर ले गए। वहां देवदासी बनाने के बाद उसे महाराष्ट्र भेज दिया। अब वह भी पैसे कमाकर हमें भेजती है। उसी से परिवार चलता है।’
2. नेहा की कहानी : मन होता है यह काम छोड़कर भाग जाऊं, लेकिन परिवार मेरे भरोसे कर्नाटक के बागलकोट जिले के रबकावी-बनहट्टी शहर की नेहा महाराष्ट्र के सांगली में सेक्स वर्कर हैं। वह बताती हैं, ‘हम 3 बहनें और एक भाई हैं। मैं सबसे बड़ी हूं। नाबालिग थी, तभी घरवालों ने देवदासी बना दिया। माता-पिता पढ़े-लिखे नहीं हैं। दिहाड़ी करके हम चारों भाई-बहन को पालते थे।’
‘मम्मी-पापा ने कहा कि मेरे देवदासी बनने से उनकी जिंदगी आसान हो जाएगी। इसलिए मैं भी मान गई, लेकिन सेक्स वर्कर बनने के बाद मेरी जिंदगी बहुत मुश्किल हो गई है। बहुत बार मन होता है कि कहीं भाग जाऊं, लेकिन घरवालों का चेहरा याद आ जाता है। उनकी उम्मीद तोड़ने की हिम्मत नहीं होती। मेरे कमाए पैसों से ही मेरे भाई-बहनों का भविष्य सुधर सकता है।
अब शोबा और उनके जैसी पूर्व देवदासियों की कहानी…
‘डॉक्टरों ने इलाज नहीं किया, सबको लगता था मुझे HIV होगा’ शोबा मथाड कोप्पल जिले के हिरेसिंदोगी गांव में रहती हैं। वह बताती हैं, ‘मेरे परिवार में लड़कियों को देवदासी बनाने की परंपरा थी। मेरी नानी देवदासी थी। मां विकलांग थी, इसलिए नानी ने उन्हें देवदासी बना दिया था।’
‘मैं दोनों का इकलौता सहारा थी। इसलिए मुझे भी कम उम्र में सेक्स वर्कर बना दिया। देवदासी बनने के बाद मुझे एक लड़का पसंद आ गया। वह दूसरी जाति का था। हम दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन उसके घरवालों ने मुझे अपनाने से इनकार कर दिया।’
‘फिर मैं प्रेग्नेंट हो गई। अबॉर्शन करवाने के लिए कई अस्पतालों में गई, लेकिन किसी डॉक्टर ने मेरा इलाज नहीं किया। सबको लगता था मुझे HIV होगा। उस दिन मैंने फैसला किया कि अपनी गलतियों की सजा अपने बच्चे को नहीं दूंगी। मैंने बच्चे को जन्म दिया। बाद में एक बेटी भी हुई।’
शोबा बताती हैं, ‘मैंने सोचा था यह काम छोड़ने के बाद समाज में सिर उठाकर जिएंगे, लेकिन हमारे माथे पर लगा कलंक शायद कभी नहीं हटेगा। मेरा बेटा 12वीं और बेटी 8वीं में पढ़ती है। स्कूल में जब वह सिर्फ मां का नाम बताते हैं, तो उनसे जानबूझकर पिता का नाम पूछा जाता है। इससे उन्हें बहुत शर्मिंदा होना पड़ता है।’
‘जब तक देह व्यापार छोड़ा, 3 बच्चों की मां बन चुकी थी’ बेलगावी जिले के मुदाल्गी शहर की 45 साल की यशोदा गस्ती कहती हैं, ‘मैं मां-बाप की इकलौती बेटी थी। पापा बहुत शराब पीते थे। घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी। मेरे 8वीं क्लास में जाते ही दादी देवदासी बनने का दबाव डालने लगीं। मुझे भी लगा पैसे कमाऊंगी तो घरवालों की देखभाल कर सकूंगी। इसलिए मैं मान गई।’
‘हालांकि मुझे बहुत जल्दी एहसास हो गया था कि देवदासियों की जिंदगी कितनी बदतर होती है। जब तक ये काम छोड़ने का फैसला किया, तब तक मेरे तीन बच्चे हो चुके थे। दो बेटियां और एक बेटा है। बड़ी बेटी की शादी कर दी है। दूसरी बेटी नर्सिंग की पढ़ाई कर रही है। बेटा 10वीं में पढ़ता है।’
‘मोतियों की माला, चूड़ियां पहनकर स्कूल गई, सब घूरने लगे’ बागलकोट जिले की रेणुका गाडी (50 साल) और मधु नादुविनमणि (45 साल) को 7 से 10 साल की उम्र में देवदासी बना दिया गया था। मधु अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। वहीं, रेणुका की दादी ने उन्हें सिर्फ इसलिए देवदासी बना दिया, क्योंकि वह अपने परिवार की पहली बेटी थीं।
रेणुका कहती हैं, ‘मैं पहली क्लास में थी, जब मुझे देवदासी बना दिया। अगले दिन मैं स्कूल चली गई। मेरे दोनों हाथों में हरी चूड़ियां, गले में मोतियों की माला, पैरों में अंगूठियां थीं। सब बच्चे मुझे ही घूर रहे थे। 11 साल की हुई तो घरवालों ने सेक्स वर्कर बनने पर मजबूर कर दिया। दो बच्चों की मां बनने के बाद इस प्रथा से बाहर निकलने का फैसला किया।’
देवदासी की पहचान मोतियों की माला दिखातीं पूर्व देवदासी मधु नादुविनमणि और रेणुका।
‘मां ने पुजारी के कहने पर मुझे देवदासी बनाया’ 50 साल की शोबा गस्ती बेलगावी जिले के घटप्रभा में रहती हैं। वह कहती हैं, ‘हम तीन भाई और तीन बहनें थीं। मैं सबसे छोटी। दो साल की थी, जब पापा का देहांत हो गया। घर में कोई कमाने वाला नहीं था। मां ने बड़ी बहन को देवदासी बना दिया, लेकिन उसने दूसरे समुदाय के लड़के के साथ शादी कर ली और घर छोड़ दिया।’
‘उसके जाने के बाद मेरी मां ने एक दिन सपना देखा कि मेरा भाई जोगप्पा (हिजड़ा) बन गया है। वह डर गई और एक पुजारी के पास चली गई। पुजारी ने कहा कि तुम्हारी बड़ी बेटी ने शादी करके पाप किया है। अब येल्लम्मा देवी के श्राप से बचना है तो अपनी छोटी बेटी को देवदासी बना दो, नहीं तो तुम्हारा बेटा जोगप्पा बन जाएगा।’
शोबा आगे बताती हैं, ‘मां पुजारी की बातें सुनकर और डर गईं। उन्होंने घर आकर सबसे कह दिया कि मुझे देवदासी बनना होगा। मेरे भाइयों ने विरोध किया, लेकिन मां जिद पर अड़ गई थीं। वो मुझे येलम्मा मंदिर ले गईं और देवदासी बना दिया। अगले दिन घर पर बहुत बड़ी दावत बुलाई गई।’
‘तब तक मैंने 7वीं की परीक्षा पास कर ली थी। 8वीं में एडमिशन लेना था, लेकिन 800 रुपए महीना फीस थी। मां नगर पंचायत में काम करके लगभग 1500 रुपए कमाती थी। उन्होंने मेरी फीस देने से मना कर दिया। कहा, अब देवदासियों वाला काम करो और पैसे कमाओ।’
शोबा कहती है, ‘मैंने भी ठान लिया था कि अपनी पढ़ाई पूरी करूंगी। मेरे जीजा ने इसका फायदा उठाया। उन्होंने स्कूल फीस देने के बदले मेरा शोषण शुरू कर दिया। घरवालों को भी इससे आपत्ति नहीं थी, क्योंकि मैं देवदासी थी। मैं 10वीं क्लास में प्रेग्नेंट हो गई। जैसे-तैसे परीक्षा देने के बाद पढ़ाई छोड़ दी।’
शोबा बोलीं- अब भी लड़कियां देवदासी बन रहीं, लेकिन कार्रवाई नहीं होती शोबा अब देवदासी प्रथा से बाहर निकल चुकी हैं और अपने जैसी महिलाओं के साथ इसके खिलाफ जागरूकता फैलाती हैं। इसमें सरकार के साथ-साथ कई NGO और सेल्फ हेल्प ग्रुप्स भी उनकी मदद करते हैं। शोबा दावा करती हैं कि दलित परिवारों में आज भी 20-21 साल की लड़कियों को चोरी-छिपे देवदासी बनाया जाता है।
हाल की कोई घटना आपको याद है। इस पर शोबा बताती हैं, ‘अरबावी गांव में, एक कपल की सात बेटियां हैं। उन्होंने अपनी सबसे बड़ी बेटी को देवदासी बना दिया। हमने बहुत रोका, लेकिन इसके बावजूद लड़की को महाराष्ट्र भेज दिया। हम अभी भी लड़की और उसके परिवार को समझाने की कोशिश कर रहे हैं।’
‘बेलगावी जिले के चिक्कोडी पंचायत में हमने 18 साल की विकलांग लड़की को देवदासी बनने से रोका। उसे सब कहते थे कि तुम्हारी शादी नहीं होगी। हमने समझाया कि विकलांगता के कारण देवदासी बनना गलत है। फिर उसने हिम्मत दिखाई और घरवालों को मना कर दिया। अब उसकी शादी भी हो गई है।’
शोबा बताती हैं, ‘पहले लड़कियां देवदासी बनने के बाद मंदिरों में रहती थीं। अब पुलिस-प्रशासन के डर से परिवार के लोग उसे घर ले आते हैं। उसके शरीर से साज-श्रृंगार की सभी चीजें निकाल देते हैं, ताकि किसी को शक न हो। इसके बाद उसे दूसरे राज्यों में भेज देते हैं।’
‘2000 रुपए पेंशन, दूसरी सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं मिलता’ कोप्पल जिले के हिरेसिंडोगी गांव में 36 साल की शशिकला कहती हैं, ‘सरकार देवदासी महिलाओं को हर महीने 2000 रुपए पेंशन देती है। इतने में आज के समय में क्या होता है। इसे बढ़ाना चाहिए। घर बनाने के लिए भी सिर्फ 1.8 लाख रुपए मिलते हैं। वो भी तब अगर खुद की जमीन है। ‘
‘दलितों और गरीबों के लिए इतनी सरकारी योजनाएं हैं, लेकिन किसी का फायदा नहीं मिलता। हम किसी से जुड़ नहीं सकते क्योंकि एप्लिकेशन फॉर्म पर पति का नाम भरना जरूरी होता है। इससे नई पीढ़ी के बच्चे भी परेशान हैं। उनसे हर जगह पिता का नाम पूछा जाता है। पति या पिता का नाम पूछने का सिस्टम खत्म होना चाहिए।’
पुजारी बोले- हमने देवदासी प्रथा का हमेशा विरोध किया हमने अभी तक लड़कियों को देवदासी बनाने की घटनाओं पर येल्लम्मा मंदिर के एक पुजारी से बात की। उन्होंने पहचान उजागर नहीं करने की शर्त पर कहा, ‘सालों पहले क्या होता था, यह मुझे नहीं पता। हालांकि अब ऐसा नहीं होता है।’
‘मेरे दादा और पिता भी पुजारी थे। दोनों इस प्रथा के सख्त खिलाफ थे। पहले देवदासी बनाने में पुजारियों के रोल को लेकर बहुत सारी अफवाहें थीं। सब कहते थे कि पुजारी लड़कियों को मंगलसूत्र पहनाते थे, लेकिन यह सच नहीं है। ‘
पुलिस अधिकारी बोले- कुछ सालों से कोई शिकायत नहीं मिली कोप्पल जिले के एक पुलिस अधिकारी ने ऑफ कैमरा बताया कि पिछले कुछ सालों से लड़कियों को देवदासी बनाने का कोई मामला सामने नहीं आया है। अगर भविष्य में कोई शिकायत मिलेगी, तो हम FIR दर्ज करने के लिए तैयार हैं।
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