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रोहतक में मुस्लिम व्यक्ति बना रहा जैन साध्वी का बाना: नियम भी फॉलो कर रहा, 32 साल में 200 से अधिक संतों के कपड़े बनाए – Rohtak News


जैन साध्वी के लिए केसरिया बाने पर छपाई करता मुस्लिम कारीगर।

हरियाणा के रोहतक में जैन साध्वी बनने जा रही 18 वर्षीय युवती लब्धि जैन की विधि चल रही है। उनके कार्यक्रम 28 मई को केसर रस्म के साथ शुरू हो चुके हैं। अब बान की रस्में चल रही हैं। इसी दौरान एक तरफ लब्धि जैन का केसरिया बाना तैयार किया जा रहा है, जिसे एक

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यह मुस्लिम व्यक्ति अब तक 200 से अधिक जैन संतों के लिए केसरिया बाना तैयार कर चुका है। वह करीब 32 साल से इस काम को कर रहा है। बड़ी बात यह है कि जब वह जैन संतों के लिए बाना तैयार करता है, तो जैन मुनियों जैसे ही नियम भी फॉलो करता है।

कारीगर को जैन साधु/साध्वी के घर रहकर ही बाना तैयार करना होता है। इसमें करीब 5 से 6 दिन का समय लगता है। इस बीच इस कारीगर को खाना भी वही मिलता है, जो जैन खाते हैं। इसे यह व्यक्ति खुशी-खुशी स्वीकार भी करता है।

लब्धि जैन की इन दिनों बाना की रस्में चल रही हैं। वह लोगों के घर जाती हैं और मंगल गीत गाए जाते हैं।

कारीगर ने बताई बाना तैयार करने की विधि…

  • दिल्ली का रहने वाल, पिता-दादा भी बाना बनाते थे: इस व्यक्ति का नाम चांद अहमद है। वह मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बिजनौर का रहने वाले हैं, लेकिन मौजूदा समय में दिल्ली में रहते हैं। चांद अहमद का कहना है कि उनके पिता और दादा भी जैन साधुओं के लिए बाना बनाने का काम करते थे। इसलिए, उन्हें खानदानी ख्याति प्राप्त है।
  • 32 सालों से बाना बना रहा: केसरिया बाना तैयार करने के बारे में चांद अहमद ने बताया कि वह 32 सालों से दीक्षा समारोहों में जैन साध्वियों या साधुओं के लिए केसरिया बाना तैयार कर रहे हैं। बाना तैयार करने के लिए जैन समाज की तरफ से ही केसर और कपड़ा उपलब्ध करवाया जाता है। उस पर क्या प्रिंट करना है, यह जैन साधु ही बताते हैं।
  • जैन संतों की निगरानी में तैयार होता है बाना: चांद अहमद ने बताया- जैन साधु या साध्वी के लिए जो केसरिया बाना तैयार होता है, उसका अलग महत्व है। इसे जैन संत अपनी निगरानी में तैयार करवाते हैं। उस पर किसी बाहरी व्यक्ति की परछाई भी पड़ने नहीं दी जाती। दूर से ही लोग इसे देख सकते हैं। जहां बाना तैयार करते हैं, उस जगह को जैन संतों पहले पवित्र करते हैं।
  • प्रिंट का काम बारीकी का: चांद का कहना है कि बाना बनाने के लिए केसर को पहले सिलबट्टे पर पीस लिया जाता है। इसके बाद गुलाब जल में 2 दिन के लिए भिगोकर रखा जाता है। फिर उसमें गोंद, खाने वाला कलर मिलाया जाता है। चाहें तो बिना कलर के भी तैयार कर सकते हैं। प्रिंट का काम बारीकी से होता है, इसलिए बड़े ध्यान से इसे किया जाता है।
  • जैन साधुओं के निर्देश पर अष्टमंगल बनते हैं: कारीगर चांद बताते हैं कि जैन साधु या साध्वी के लिए बनने वाले केसरिया बाने पर केसर से अष्टमंगल बनाया जाता है। इसका डिजाइन जैन साधुओं के निर्देशानुसार ही तय होता है, जिसके गोलाकार, चौकोर या कुछ जगह अष्टमंगल लिखवाया भी जाता है। इसे तैयार करने के लिए काफी ध्यान देना पड़ता है।

पीढ़ियों से कर रहे छपाई का काम चांद अहमद ने बताया कि यह काम उनके दादा और पिता करते थे। जब वह छोटे थे तो पिता के साथ काम पर जाते थे। धीरे-धीरे उन्हें मजा आने लगा और काम भी मिलने लगा। चांद के अनुसार, जब 10 साल के थे तो पहली बार छपाई का काम किया था। तब से लेकर आज तक 200 से अधिक जैन संतों के लिए केसरिया बाना तैयार कर चुके हैं।

इन जैन संतों के लिए तैयार किया बाना चांद अहमद ने बताया कि देश के कई राज्यों में उन्होंने दीक्षा समारोहों में जैन साधु या साध्वी के लिए केसरिया बाना तैयार किया है। इन संतों में गुजरात में डॉ. शिव मुनि महाराज, दिल्ली में आचार्य सुभद्र मुनि, राजस्थान में रमेश मुनि जैसे संतों के बड़े नाम हैं। वहीं, जैन साध्वियों में दिल्ली की साध्वी जितेंद्रा महाराज, रोहिणी की सरिता महाराज, राजस्थान की सुनीता महाराज और राजस्थान की अक्षिता महाराज का नाम शामिल है।

कौन हैं लब्धि जैन, जो साध्वी बन रहीं लब्धि जैन मूल रूप से सोनीपत के गांव बिबलान की रहने वाली हैं। उनकी मां का नाम सेंजल और पिता का नाम ‎जय प्रकाश है। लब्धि की मां ने बताया है कि उनकी बड़ी बेटी ज्योतिष मार्तण्ड‎ साध्वी डॉ. महाप्रज्ञ भी साध्वी बन चुकी है। उसे देखते हुए लब्धि को भी बचपन से इस दिन का इंतजार था।

लब्धि जैन इस समय 18 साल की हैं। वह 10वीं तक की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं। मां सेंजल ने बताया कि लब्धि जब 7 साल की थी, तभी से जैन साध्वी की शरण में आ गई। अब केवल दीक्षा पाठ बाकी है, जिससे वह पूरी तरह साध्वी बन जाएंगी।

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