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वैज्ञानिकों पर दुनिया को कितना भरोसा? 72 हजार लोगों के सर्वेक्षण में हुआ बड़ा खुलासा


How much trust does the world have in scientists? | Image:
Unsplash/Representative

वैज्ञानिकों पर जनता का भरोसा बहुत जरूरी है। यह हमें स्वास्थ्य जैसे मामलों पर व्यक्तिगत फैसले लेने में मदद कर सकता है और कोविड महामारी या जलवायु परिवर्तन जैसे संकटों से निपटने में सरकारों की सहायता करने के लिए साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण में सहायक हो सकता है।

दुनिया के 68 देशों के 71,922 लोगों के सर्वेक्षण में, 241 शोधकर्ताओं की हमारी वैश्विक टीम ने पाया कि ज्यादातर लोगों का वैज्ञानिकों पर अपेक्षाकृत ज्यादा भरोसा है। खासतौर पर, लोग चाहते हैं कि वैज्ञानिक समाज और नीति निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाएं। हमारे नतीजे आज ‘नेचर ह्यूमन बिहेवियर’ पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।

तो एक समाज के रूप में हमारे लिए और वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं के लिए इसका क्या मतलब है जो भरोसा बनाए रखना और बनाना चाहते हैं? यहां हमने कुछ सबक सीखे हैं।

‘संकट’ की अफवाहें

रिपोर्टों और सर्वेक्षणों के अनुसार, अधिकतर लोग विज्ञान पर भरोसा करते हैं और वैज्ञानिकों को समाज में सबसे अधिक विश्वास के साथ देखा जाता है। फिर भी विज्ञान और वैज्ञानिकों में ‘भरोसे के संकट’ का दावा अक्सर दोहराया जाता है।

उदाहरण के लिए, कुछ शोध बताते हैं कि सर्वेक्षणों के बारे में मीडिया रिपोर्टिंग एक ‘स्व-पूर्ति भविष्यवाणी’ या ‘फीडबैक लूप’ के रूप में कार्य कर सकती है। यह विश्वास के संकट को चित्रित करके वैज्ञानिक विश्वसनीयता को कम कर सकती है।

अन्य शोध बताते हैं कि मीडिया नीति से जुड़े विमर्श जोड़तोड़ के माध्यम से जनमत को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, वैज्ञानिक विवादों पर रुढ़िवादी मीडिया रिपोर्टिंग से वैज्ञानिकों में अविश्वास बढ़ता है, जिससे जलवायु परिवर्तन को खारिज करने वालों की संख्या बढ़ती है।

हमारा शोध पश्चिमी दुनिया से परे है और वैश्विक दक्षिण में कई ऐसे देशों को कवर करता है जिन पर कम अध्ययन हुआ है।

हमने परीक्षण किया कि क्या वास्तव में वैज्ञानिकों पर कम भरोसा है, और क्या विश्वास का स्तर देशों में काफी भिन्न है।

हमने सभी महाद्वीपों के 68 देशों में एक ही सर्वेक्षण को अनुवाद के साथ शामिल करते हुए एक ‘क्राउड-सोर्स्ड मेनी लैब्स’ परियोजना संचालित की।

नवंबर 2022 और अगस्त 2023 के बीच डेटा एकत्र किया गया था। हमारे नमूनों को आयु, लिंग, शिक्षा और देश के नमूने के आकार के राष्ट्रीय वितरण के अनुसार रखा गया था। आप इस डेटा डैशबोर्ड का उपयोग करके वैश्विक और देश स्तर के डेटा को समझ सकते हैं।

वैज्ञानिकों की विश्वसनीयता को चार स्थापित आयामों का उपयोग करके मापा गया: इनमें कथित क्षमता, परोपकार, अखंडता और खुलापन शामिल हैं। दुनिया भर के लोग वैज्ञानिकों पर कितना भरोसा करते हैं? 

दुनिया भर में, हम पाते हैं कि ज्यादातर लोगों का वैज्ञानिकों पर अपेक्षाकृत उच्च भरोसा है (औसत भरोसा स्तर = 3.62, ‘1 = बहुत कम भरोसा से 5 = बहुत अधिक भरोसा के पैमाने पर’)।

विश्व स्तर पर, लोग वैज्ञानिकों को उच्च क्षमता, मध्यम ईमानदारी और परोपकारी इरादों वाला मानते हैं, जबकि वे प्रतिक्रिया के लिए थोड़े कम खुले होते हैं। अधिकतर उत्तरदाताओं ने वैज्ञानिकों को योग्य (78 प्रतिशत), ईमानदार (57 प्रतिशत) और लोगों की भलाई के बारे में चिंतित (56 प्रतिशत) भी माना।

किसी भी देश ने वैज्ञानिकों पर कम भरोसा नहीं दिखाया। ऑस्ट्रेलिया ने वैज्ञानिकों पर भरोसे के मामले में पांचवां स्थान प्राप्त किया, जो वैश्विक औसत से काफी ऊपर था, और केवल मिस्र, भारत, नाइजीरिया और केन्या से पीछे था।

विश्व स्तर पर, हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि महिलाओं, वृद्ध लोगों, शहरी (बनाम ग्रामीण) क्षेत्रों के निवासियों और उच्च आय, धार्मिकता, औपचारिक शिक्षा और उदार तथा वामपंथी राजनीतिक विचारों वाले लोगों के लिए भरोसा थोड़ा अधिक है।

अधिकतर देशों में, राजनीतिक रुझान और वैज्ञानिकों पर भरोसा एक दूसरे से असंबंधित थे। हालांकि, हमने पाया कि पश्चिमी देशों में रुढ़िवादी (दक्षिणपंथी) राजनीतिक विचारों वाले लोगों का वैज्ञानिकों पर उदारवादी (वामपंथी) विचारों वाले लोगों की तुलना में कम भरोसा है। यह उत्तरी अमेरिका के शोध के अनुरूप है।

ऑस्ट्रेलिया में, उत्तरी अमेरिका और कई अन्य यूरोपीय देशों के विपरीत, विज्ञान में विश्वास की बात आने पर रूढ़िवादी बनाम उदारवादी राजनीतिक झुकाव का कोई महत्व नहीं था। इसका मतलब यह हो सकता है कि विज्ञान के इर्द-गिर्द राजनीतिक ध्रुवीकरण उतना बड़ा मुद्दा नहीं है जितना कि जलवायु परिवर्तन जैसे विशिष्ट वैज्ञानिक मुद्दों के लिए है। वैश्विक स्तर पर, 83 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना ​​है कि वैज्ञानिकों को आम जनता के साथ विज्ञान के बारे में संवाद करना चाहिए।



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