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श्रीमद्भागवत कथा के श्रवण से जीव क्या, प्रेतात्मा का भी हो जाता है उद्ध्ार : पंडित प्रमोद त्रिवेदी – Motihari (East Champaran) News



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श्रीमद् भागवत कथा के श्रवण से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते है। यदि कथा का श्रवण प्रेतात्मा भी करते हैं, तो उनका भी उद्धार हो जाता है। ईजरा-नवादा ढाला पर आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन कथा व्यास आचार्य पंडित प्रमोद त्रिवेदी जी महाराज ने कहीं। उन्होने भगवान कृष्ण के जन्म की कथा का वाचन किया। कहा कि कंस को सत्ता का लालच था। उसने अपने पिता राजा उग्रसेन की राजगद्दी छीनकर उन्हें जेल में बंद कर दिया था और स्वंय को मथुरा का राजा घोषित कर दिया था। राजा कंस अपनी बहन देवकी से बहुत प्रेम करता था। उन्होंने अपनी बहन का विवाह वासुदेव से कराया था, लेकिन जब वह देवकी को विदा कर रहा था, तभी एक आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र कंस की मौत का कारण बनेगा। यह सुनकर कंस डर गया, उसने तुरंत अपनी बहन और उनके पति वासुदेव को जेल में बंद कर दिया। उनके आसपास सैनिकों की कड़ी पहरेदारी लगा दी। भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र दिन बुधवार की अंधेरी रात में भगवान कृष्ण ने देवकी के आठवें संतान के रूप में जन्म लिया। भगवान की प्रेरणा से वसुदेव भगवान कृष्ण को लेकर नंद जी के घर गोकुल चले। इस बीच प्रभु की कृपा से मार्ग में आने वाली सभी बाधाएं स्वत: ही दूर हो गई। वसुदेव जी नंद जी के यहां सकुशल पहुंच गए और वहां से उनकी नवजात कन्या को लेकर वापस आ गए। अगले दिन सुबह जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म की सूचना मिली तो वह तत्काल कारागार में आया और उस कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटकना चाहा, लेकिन वह कन्या उसके हाथ से निकल कर आसमान में चली गई। फिर कन्या ने कहा- ‘हे मूर्ख कंस! तुझे मारने वाला जन्म ले चुका है और वह वृंदावन पहुंच गया है। वह कन्या कोई और नहीं, स्वयं योग माया थीं। कथा से पहले समाजसेवी बीनू तिवारी ने कथा व्यास को सम्मानित किया। कथा के दौरान बीच-बीच में भजनों की प्रस्तुति लोगों को मुग्ध करती रही।



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