परमात्मा का दूसरा नाम आनंद है। परमात्मा के स्मरण मात्र से ही आनंद की अनुभूति होती है। भगवान की लीलाओं में प्राणी मात्र के प्रति कल्याण का ही भाव होता है। भगवान की लीलाओं को समझ पाना स्वयं ब्रह्माजी के लिए भी मुश्किल काम था फिर हम तो साधारण मानव है। स
.
ये दिव्य विचार हैं भागवताचार्य पं. आयुष्य दाधीच के, जो उन्होंने रविवार को उषानगर स्थित उषाराजे परिसर में श्रीनागर चित्तौड़ा महाजन वैश्य समाज द्वारा आयोजित श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ में व्यक्त किए। समन्वयक धर्मेन्द्र गुप्ता ने बताया कि कथा में आज भगवान की बाल लीलाओं का मनोहारी चित्रण किया गया। गोवर्धन पूजा के उत्सव में बाल-ग्वालों ने मिलकर गोसेवा का संदेश दिया। भगवान की बाल लीलाओं में माखन चोरी, गैया चराने और यमुना किनारे की लीलाओं का मंचन भी किया गया। कथा शुभारंभ के पूर्व समाजसेवी से.नि. न्यायाधीश राजेश गुप्ता, दिलीप हेतावल, राधेश्याम गुप्ता, अतुल मेहता, कमल महाजन, किशोर गुप्ता, महेन्द्र अकोतिया, उदित गुप्ता, हेमंत हेतावल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। विद्वान वक्ता की अगवानी रमेशचंद्र महाजन, जवाहर गुप्ता,उमेश गुप्ता, डॉ. चंद्रशेखर गुप्ता, गोपाल महाजन, महेन्द्र गुप्ता एवं अनूप गुप्ता सोनकच्छ ने की। आज भी महिलाओं ने ड्रेस कोड का पालन करते हुए हरे परिधान तथा पुरुषों ने श्वेत परिधान में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई।
कथा प्रसंग के नुसार सोमवार 23 सितम्बर को रूक्णमी विवाह का उत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा। बारात भी निकलेगी और वर-वधू पक्ष एक-दूसरे की अगवानी भी करेंगे। संगीतमय कथा 25 सितम्बर तक प्रतिदिन दोपहर 2 से सांय 6 बजे तक हो रही है।भागवताचार्य पं. दाधिच ने बाल लीलाओं का चित्रण करते हुए कहा कि भागवत में जो कुछ भी है वह सब हमारे जीवन का ही हिस्सा है। भागवत, कथा तो है ही, हम सबके जीवन की व्यथा भी है। जैसे भगवान के जीवन में अविद्या रूपी पूतना आई, वैसे ही हमारे जीवन में भी पूतना और अघासुर, बकासुर जैसी दुष्प्रवृत्तियां आती रहती है। अविद्या के नाश होने पर ही हमारे जीवन से दुखों का खात्मा हो सकता है। भागवत के दशम स्कंध के नौवें अध्याय में भगवान की बाल लीलाओं का वर्णन किया गया है। मन, वचन और कर्म से हम जब तक भगवान के प्रति समर्पित नहीं होंगे, हमारा जीवन भी सार्थक नहीं बनेगा।