मेरा नाम प्रिया है। उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में रहती हूं। हाल ही में 10वीं के एग्जाम दिए थे, रिजल्ट आने वाला है और 11वीं की तैयारी कर रही हूं। जब पांच साल की था तब मेरा रेप हुआ था। उस वक्त इतनी छोटी थी कि ये भी नहीं समझ पाई कि मेरे साथ क्या हुआ है।
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हमेशा की तरह उस रोज भी मां-पापा काम पर चले गए थे। घर पर हम तीन भाई-बहन थे। भाई मुझसे सात साल बड़ा था। पड़ोस में एक लड़का रहता था। वो हमारे घर आ गया। उसे लगा कि घर पर मैं अकेली हूं। उसने मेरे साथ रेप किया। तभी बड़ा भाई कमरे में आ गया। भाई ने सब देखा और शोर मचाने लगा।
चारों तरफ बात फैल गई। मुझे डॉक्टर के पास ले जाया गया। ठीक से कुछ याद तो नहीं, बस इतना याद है कि पुलिस ने मुझसे कुछ सवाल किए थे। ये भी याद है कि मम्मी-पापा दिन रात पुलिस स्टेशन के चक्कर काटा करते थे। पुलिस हमारे घर पर भी आया करती थी।
आए दिन मम्मी-पापा मुझे डॉक्टर के पास ले जाते थे। वो लड़का उस वक्त 18 साल का नहीं था। उसके 18 साल के होने में छह महीने बचे थे, इसलिए मुझे इंसाफ नहीं मिल सका। मां ने ठान लिया कि मुझे पढ़ाएंगी, ताकि मैं एक सामान्य जिंदगी जी सकूं। आज मेरे घरवालों कि हैसियत नहीं है फिर भी मुझे महंगे अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ा रहे हैं।
प्रिया का पांच साल की उम्र में पड़ोसी ने रेप किया था।
जब 14-15 साल की हुई, तब पता लगा कि मेरे साथ रेप हुआ है। तब मुझे यह भी पता लगा कि रेप क्या होता है। दरअसल, जब से मेरा रेप हुआ था तब से इलाज चल रहा था। लगातार डॉक्टर के ऑब्जर्वेशन में थी। ताकि शरीर में कोई दिक्कत न हो।
इस दौरान ही मुझे बताया गया कि मेरे साथ रेप हुआ था। उसके बाद कई दिनों तक मैं रात भर रोती थी। अभी भी रोती हूं। बहुत गुस्सा आता था। उस वक्त मन करता था कि अगर वो इंसान मिल जाए तो उसे जान से मार दूं।
घरवाले बहुत लड़े, बहुत पैसा खर्च किया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। पापा भी जब हालात से थक जाते हैं तो सुना भी देते हैं कि अगर तुम्हारे साथ ऐसा न हुआ होता तो मेरे पास आज बहुत पैसे होते। कितने पैसे पुलिस वालों को, वकीलों को दिए हैं।
उस घटना को कुछ दिन बीते ही थे कि मेरे बड़े भाई को दिमागी बुखार आया। उसकी तबीयत दिन-ब-दिन बिगड़ने लगी। बुखार की वजह से मेरे भाई की दिमाग की नस फट गई थी। इतना खून बह रहा था, वो सीन कभी भूलता नहीं है। डॉक्टरों ने जल्दी ऑपरेशन करने के लिए 30 हजार रुपए लिए थे। भाई मर चुका था, फिर भी उसे दो दिन तक अस्पताल में रखा गया और हमसे पैसे लेते रहे। दवाएं मंगवाते रहे। आखिरकार मेरा भाई इस दुनिया से चला गया।
मुझे याद है कि पापा ने भाई के इलाज के लिए दादाजी से पैसे मांगे थे। पापा ने कहा था कि गेहूं बेचकर कुछ पैसे दे दो। दादाजी ने कहा कि तुम्हारी नीयत उसी पर अटकी है क्या, गेहूं नहीं बेचोगे तो लड़का मर जाएगा। काश उन्होंने पैसे दे दिए होते तो भाई जिंदा होता।
छह महीने पहले पापा के साथ स्कूल जा रही थी। अचानक पापा को वो लड़का दिख गया। पापा ने मुझसे कहा कि यही वो लड़का है जिसने तुम्हारे साथ रेप किया था। मैं वहीं सड़क पर चक्कर खाकर गिर गई। होश आया तो चीख-चीखकर रो रही थी। मैं गुस्से से पागल हो गई। ऐसा लगा कि अभी के अभी इसकी जान ले लूं।
मेरी पूरी जिंदगी बर्बाद हो गई और ये इस तरह घूम रहा है जैसे कुछ हुआ ही न हो। उस लड़के ने मुझे जीते जी मार दिया। उसने मेरा रेप किया, लेकिन सजा भी मैं ही भुगत रही हूं।
मेरे साथ ये सब हुए इतने साल हो गए, लेकिन तब से आज तक घरवाले परेशान हैं। एक भी दिन मेरे घर में कोई भी सुकून से सो नहीं सका। हम लोगों को अपना घर बदलना पड़ा। मेरे भाई की मौत हो गई। हम लोगों ने उस आदमी की वजह से कितना कुछ झेला, लेकिन वो खुलेआम घूम रहा है।
प्रिया कहती हैं कि रेप सर्वाइवर का ट्रॉमा कभी नहीं जाता।
मेरा ट्रॉमा कभी नहीं जाएगा। मन के घाव इतने गहरे हैं कि दुनिया इधर से उधर हो जाए, घाव कभी भरेंगे नहीं। बेशक उस वक्त मैं बहुत छोटी थी, लेकिन जब पता चला तो इसे भुला पाना मुश्किल है। बहुत गुस्सा आता है। गुस्से में मन करता है कि या तो खुद को कुछ कर लूं या उसे जान से मार दूं। बहुत बार आत्महत्या की कोशिश भी की, क्योंकि इस बात का गिल्ट नहीं जाता है कि मेरे साथ रेप हुआ है। हालांकि इसमें मेरी कोई गलती नहीं थी। फिर भी इतना सब झेलना पड़ा और वो लड़का आज आराम से अपनी जिंदगी जी रहा है।
बीते छह महीने से तो मेरा मन अशांत है। जब बहुत ज्यादा परेशान होती हूं तो मम्मी मुझे एक आश्रम में भेज देती हैं। मैं कहीं घूमने नहीं जाती, किसी दोस्त के घर नहीं जाती। यहां कि अपने रिश्तेदारों के घर भी नहीं जाती। बस अपने मम्मी-पापा के लिए जीना चाहती हूं। सोचती हूं पढ़ लिखकर डॉक्टर बन जाऊं, ताकि घरवाले मुझे पर प्राउड फील करें। लोगों से कह सकें कि बेटी ने नाम रोशन कर दिया, क्योंकि उन लोगों ने हमारी वजह से बहुत कुछ झेला है।
मुझे डॉक्टर बनना है क्योंकि मैंने भाई को मरते हुए देखा है, तड़पते हुए देखा है। हालांकि डॉक्टर बनना बहुत मुश्किल है, लेकिन कोशिश करने वालों की हार नहीं होती। मम्मी-पापा भी कहते हैं कि जो बनना है बनो। बहुत मुश्किल से मुझे पढ़ा रहे हैं। पढ़ाई के लिए गहने तक बेच दिए। केवल उनके लिए ही जीना चाहती हूं। मशीन बनकर रह गई हूं, मन नहीं करता है खुद के लिए कुछ करने का। दिल पर बहुत बोझ है।
प्रिया कहती हैं कि मैं पढ़-लिखकर डॉक्टर बनना चाहती हूं।
मैं चाहे डॉक्टर बन जाऊं या अपना कोई भी सपना पूरा कर लूं, लेकिन उसका चेहरा कभी भूल नहीं सकती। मैं चाहती हूं उसको अपने गुनाहों की सजा मिले। उसको जब से देखा है कुछ अच्छा नहीं लगता है। मैं कुछ भी कर लूं या मेरे लिए कोई कुछ भी कर ले फिर भी कोई खुशी नहीं होती। मैं उससे जीने का अधिकार छीन लेना चाहती हूं। मैं उसे मार देना चाहती हूं।
ये जज्बात प्रिया ने भास्कर रिपोर्टर मनीषा भल्ला से साझा किए।
(नोट- प्रिया, पीड़िता का बदला हुआ नाम है।)
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