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सनातन धर्म में क्या है गोबर का महत्व? क्यों पहले के समय में घरों में होती थी लिपाई? क्या कहते हैं धार्मिक ग्रंथ?


Importance Of Cow Dung : आजकल के मॉडर्न घरों में फर्श पर मार्बल, टाइल्स या लकड़ी जैसी चीजें दिखाई देती हैं. दीवारों पर पेंट की परतें चढ़ी होती हैं और एयर फ्रेशनर से वातावरण को महकाया जाता है. लेकिन अगर हम थोड़ा पीछे जाएं, तो एक दौर ऐसा था जब घर को सजाने और सुरक्षित रखने का तरीका बिल्कुल अलग था. खासकर गांवों में तो आज भी ये परंपरा देखने को मिलती है. घर के फर्श और दीवारों को गाय के गोबर से लीपा जाता है. अब सवाल उठता है कि ऐसा क्यों किया जाता था? क्या ये सिर्फ एक परंपरा थी, या इसके पीछे कुछ ठोस कारण थे? असल में, इसका जवाब सनातन सोच और आधुनिक विज्ञान दोनों में छुपा है. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा.

गाय का गोबर और पर्यावरण
गाय का गोबर सिर्फ एक अपशिष्ट नहीं है. यह एक ऐसा प्राकृतिक पदार्थ है जिसमें जीवाणुनाशक गुण पाए जाते हैं. जब इसे घर की ज़मीन और दीवारों पर लगाया जाता है, तो यह आसपास के कीड़े मकोड़ों, मच्छरों और बैक्टीरिया को दूर रखता है. पुराने समय में जब न तो मच्छर मारने की दवाएं होती थीं और न ही आधुनिक सैनिटाइज़र, तब गाय का गोबर एक नेचुरल सुरक्षा कवच बन जाता था.

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इसमें मौजूद जैविक तत्व घर की हवा को भी शुद्ध करते हैं. इसलिए जिन इलाकों में गर्मी ज्यादा होती थी, वहां लोग फर्श पर गोबर का लेप लगाते थे जिससे ठंडक बनी रहती थी और धूल भी नहीं उड़ती थी.

सनातन धर्म की मान्यता और आध्यात्मिक ऊर्जा
सनातन परंपरा में गाय को मां का दर्जा दिया गया है. ऐसा माना जाता है कि गाय में कई देवी देवताओं का वास होता है और उसका गोबर भी उतना ही पवित्र होता है. जब घर की ज़मीन पर गाय का गोबर लगाया जाता था, तो यह सिर्फ सफाई का काम नहीं करता था, बल्कि घर की ऊर्जा को भी संतुलित करता था.

मान्यता है कि इससे मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और घर में सुख शांति आती है. इसलिए खास मौकों पर जैसे दिवाली, नववर्ष या पूजा पाठ के समय लोग आज भी आंगन को गोबर से लीपते हैं.

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विज्ञान और आस्था का मेल
आज अगर हम वैज्ञानिक नजर से देखें, तो गाय का गोबर एक तरह का बायो फ्रेंडली कंपाउंड है जिसमें कई औषधीय गुण हैं. यह मिट्टी को भी उपजाऊ बनाता है और बीमारियों को दूर रखने में मदद करता है. यानी जो चीज हमारे बुजुर्ग सहजता से करते थे, उसके पीछे एक पूरा लॉजिक छुपा हुआ था.



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