साल 2024 से इंदौर ने कुछ सबक भी लिए हैं। सबसे बड़ा सबक तो यह कि बगैर सोचे-समझे किसी भी तरह का प्रयोग नहीं करना चाहिए। अफसरों ने ऐसा ही एक प्रयोग ट्रैफिक सुधार के लिए मधुमिलन चौराहे पर किया, लेकिन यह उलटा गले पड़ गया। चौराहा सुधारने चले थे, लेकिन यहां स
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इससे बेहतर तो ट्रैफिक तब निकलता था, जब चौराहा उसके मूल स्वरूप में था। अब तो हालत ऐसी हो गई है कि कई लोगों ने अपना रास्ता तक बदल लिया है। एक व्यापारी ने कहा, पहले रोजाना तीन से चार बार यहां से निकलना होता था। रोटरी से आसानी से घूमकर दवा बाजार और वहां से रीगल की ओर आते-जाते थे।
अब यहां के हालात देखकर निकलना ही बंद कर दिया। एक अन्य व्यापारी ने कहा कि यहां एक बार कोई आ जाए तो पहले तो उसे समझ ही नहीं पड़ेगा कि किधर से जाना है। कहीं बैरिकेडिंग है तो कहीं सड़कें खुदी हुई हैं। कांग्रेस ने तो अमेरिका के राष्ट्रपति का कटआउट लगाकर तंज तक कसा कि इस चौराहे की समस्या का हल निकालें।
आईआईटी की स्टडी : गर्मी में तापमान बढ़ेगा
इस साल मई में 44 डिग्री तक अधिकतम तापमान चला गया। तीन-चार दिन तक इस स्तर पर पारा रहा। आईआईटी इंदौर ने 44 साल के मौसम की स्टडी की। निष्कर्ष निकला कि समय पर हम सजग नहीं हुए तो आने वाले सालों में भी इस स्तर पर तापमान जाता रहेगा। इस साल 12 महीनों में गर्मी का शेयर वैसे भी 8 महीने का रहा है। मई से लेकर अक्टूबर तक अधिकतम तापमान सामान्य से अधिक रहा है।
गर्मी ज्यादा, ठंड, बारिश कम- पर्यावरणविद सुधींद्र मोहन शर्मा के मुताबिक इस साल गर्मी अधिक रही जबकि बारिश 34.5 इंच और ठंड दिसंबर में ही असरदार रही है। दरअसल, सड़कों पर कारों का बोझ बढ़ता ही जा रहा है। गर्मी में कारों के एयर कंडिश्नर चालू रहने पर 50 डिग्री से भी अधिक हीट बाहर खड़े लोगों को महसूस होती है।
चौराहे के सिग्नल पर गर्मी के दिनों में कार के पास 10 सेकंड भी खड़े रहना कठिन रहता है। रिंग रोड, बायपास, सुपर कॉरिडोर, फीडर सड़कों के लिए 50-100 फीट ऊंचे पेड़ काटे, लेकिन भरपाई ठीक से नहीं हुई। जंगलों पर भी बिजली, रेल, रोड, पानी की लाइन के लिए दबाव बढ़ रहा है।