सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों को इस बार मध्यप्रदेश सरकार खुद यूनिफॉर्म नहीं बांटेगी। इसके बजाय उनके बैंक खातों में सीधे पैसे ट्रांसफर किए जाएंगे। 17 जून को होने वाली कैबिनेट बैठक में इस प्रस्ताव पर मुहर लगेगी।
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योजना के तहत कक्षा 1 से 8वीं तक के लगभग 60 लाख छात्रों को यूनिफॉर्म के लिए 600 रुपए प्रति विद्यार्थी की राशि उनके बैंक खातों में भेजी जाएगी, जिससे वो दो जोड़ी स्कूल यूनिफॉर्म खुद खरीद सकेंगे।
ये लगातार दूसरा साल है जब सरकार स्टूडेंट्स के खाते में सीधे रुपए जमा कराने जा रही है। हालांकि पहले सरकार खुद यूनिफॉर्म खरीदी करती थी और बांटती थी लेकिन इस प्रक्रिया को बदला जा रहा है।
आखिर सरकार को पुराने ढर्रे को क्यों बदलना पड़ा, यूनिफॉर्म की नई प्रक्रिया क्या होगी और इसमें कोई गड़बड़ी होने पर क्या कार्रवाई हो सकती है? पढ़िए इस रिपोर्ट में…
क्वालिटी खराब, इसलिए सरकार ने किया बदलाव सरकार को यह फैसला लेने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि यूनिफॉर्म वितरण के पुराने ढर्रे में कई गड़बड़ियां सामने आई थीं। स्वसहायता समूहों द्वारा तैयार किए गए कपड़ों की क्वालिटी अक्सर बेहद खराब होती थी, जबकि रिकॉर्ड में अच्छी क्वालिटी बताई जाती थी।
ड्रेस का साइज गलत होता था, जिससे विद्यार्थियों को पहनने में दिक्कत होती थी। इसके अलावा कई बड़े कॉन्ट्रैक्टर, समूहों के नाम पर टेंडर लेकर काम करते थे और अधिक लाभ कमाते थे, जबकि असली समूह के सदस्यों को उचित भुगतान तक नहीं मिलता था।
मॉनिटरिंग सिस्टम है, लेकिन कार्रवाई नहीं कर सकते नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित शिक्षक माधव पटेल ने बताया कि राज्य शिक्षा केंद्र द्वारा सभी स्कूलों की मॉनिटरिंग के लिए एक निगरानी तंत्र तैयार किया गया है। जिला स्तर पर जिला परियोजना समन्वयक (DPC) की अध्यक्षता में एक टीम बनाई गई है, जो ब्लॉक लेवल पर ब्लॉक रिसोर्स कॉर्डिनेटर (बीआरसी) के साथ मिल कर पूरी प्रोसेस की निगरानी करती है।
बीआरसी स्कूल प्राचार्यों के साथ मिलकर ये मॉनिटर करते हैं कि सभी बच्चों के अकाउंट में राशि आई है या नहीं। पटेल ने बताया कि ज्यादातर लोग दी हुई राशि से ड्रेस खरीद लेते हैं, पर जो नहीं खरीद पाते उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकते। अधिकांश ऐसी स्थिति में प्राचार्य गांववालों के साथ मिल कर अभिभावकों को यूनिफॉर्म खरीदने के लिए आग्रह करते हैं।
पहले बिना यूनिफॉर्म के आधा सत्र ही बीत जाता था शिक्षक रविकांत गुप्ता ने बताया कि स्व सहायता समूह जब यूनिफॉर्म देता था तब कभी टाइम लिमिट में ड्रेस नहीं मिलते थे, हमेशा आधे से ज्यादा सत्र बीत जाने के बाद बच्चों को ड्रेस दी जाती थी।
स्व सहायता समूह से ड्रेस लेने का बस एक फायदा ये था कि वह दो जोड़ी ड्रेस दे देते थे, भले हल्की क्वालिटी का कपड़ा दें, लेकिन बच्चों के खाते में सीधे पैसे आते हैं तो कई पेरेंट्स उन्हें ड्रेस दिलाते ही नहीं हैं, ऐसे ही स्कूल भेज देते हैं। ये एक बड़ी चुनौती है।
अंग्रेजों ने की थी मध्यप्रदेश के स्कूलों में यूनिफॉर्म की शुरुआत देश में स्कूल यूनिफॉर्म पर रिसर्च कर चुके यूपी के इतिहासकार डॉ. विकास खुराना ने बताया कि मध्यप्रदेश में वर्ष 1816-1817 से से ही स्कूल एजुकेशन सिस्टम लागू हो गया था। तब जेम्स द्वारा बनाए गए स्कूल और स्थानीय स्तर पर कृष्ण राव जी के स्कूल थे, बाद में जिसका दौरा लॉर्ड विलियम बेंटिक ने भी किया था, वहां 600 स्कॉलर पढ़ रहे थे।
वर्ष 1827 में मध्यप्रदेश में कैप्टन जेम्स द्वारा नौ स्कूल खोले गए थे, जहां के बच्चों से फीस नहीं ली जाती थी और स्लेट्स,पेपर मुफ्त उपलब्ध करवाया जा रहा था। भारत के स्कूलों में यूनिफॉर्म सिस्टम 1852 में लागू हुआ।
मध्यप्रदेश में यह व्यवस्था 1862 के बाद आई जब जॉर्ज कैम्पबेल के अधीन प्रांतीय शिक्षा बोर्ड का गठन हुआ। जेम्स के स्कूल के अंदर बच्चों को जो ड्रेस दी जा रही थी, पेपर्स दिए जा रहे थे, पेंसिल दी जा रही थी किसी का चार्ज नहीं लिया जा रहा था।