अंबाला नगर निगम में मेयर चुनाव जीतने के बाद सर्टिफिकेट लेती भाजपा उम्मीदवार सैलजा सचदेवा।
हरियाणा में 8 नगर निगमों में चुनाव और 2 में उपचुनाव के नतीजे आने लगे हैं। इनमें 4 नगर निगम, अंबाला, करनाल, फरीदाबाद और सोनीपत में भाजपा जीत चुकी है। 5 निगमों में पार्टी उम्मीदवार आगे चल रहे हैं। इस बार भाजपा ने सोनीपत और अंबाला में भी मेयर कुर्सी जीत
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विधानसभा चुनाव के 5 महीने बाद हुए इन निगम चुनावों में भाजपा का ट्रिपल इंजन सरकार का नारा चल गया। जिसमें केंद्र और राज्य के बाद अब शहरों में भी भाजपा की लोकल सरकार बन गई।
वहीं मानेसर में निर्दलीय उम्मीदवार डॉ. इंद्रजीत यादव चुनाव जीत गईं। कांग्रेस का निगम चुनाव में सूपड़ा साफ हो गया। कांग्रेस इस बार न केवल सभी जगह से हार गई बल्कि पिछली बार जीती सोनीपत मेयर की सीट भी गंवा बैठी।
मानेसर नगर निगम में निर्दलीय इंद्रजीत यादव ने भाजपा उम्मीदवार सुंदर लाल को हराया है।
भाजपा के चुनाव जीतने और कांग्रेस का सूपड़ा साफ होने की बड़ी वजहें रहीं…
भाजपा के चुनाव जीतने की 4 बड़ी वजहें
1. प्रदेश में सरकार होने का फायदा मिला प्रदेश में पांच महीने पहले भाजपा की सरकार बनी। उससे पहले केंद्र में भी भाजपा की अगुआई वाली NDA सरकार बनी। ऐसे में भाजपा ने चुनाव प्रचार में इसको खूब भुनाया। भाजपा के नेताओं से लेकर मंत्रियों और मुख्यमंत्री नायब सैनी ने ट्रिपल इंजन का नारा दिया। प्रचार में लोगों को समझाया कि केंद्र और प्रदेश में भाजपा है। ऐसे में अगर शहर में भी भाजपा ही जीतेगी तो कोऑर्डिनेशन आसान होगा। इससे विकास भी तेजी से होगा। वोटर भी समझ गए कि अगर राज्य सरकार के उलट विपक्षी दल को जिताया तो फिर तालमेल में गड़बड़ी से शहरों में काम नहीं होंगे। चूंकि भाजपा की प्रदेश सरकार अभी साढ़े 4 साल चलनी है। ऐसे में दोनों के बीच आरोपबाजी ही चलती रहेगी।
2. प्रदेश से बूथ तक 5 लेवल का मैनेजमेंट किया केंद्र और प्रदेश में सरकार है, इसके बावजूद भाजपा इस चुनाव को लेकर ओवरकॉन्फिडेंट नहीं दिखी। भाजपा ने इसे भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तरह लड़ा। निकाय चुनाव के लिए भी बूथ लेवल पर मैनेजमेंट किया। संगठन की टीम हर घर पर 3 से 4 बार पहुंची। वार्ड लेवल पर भी छोटी-छोटी टीमें बनाईं। जो लोगों से मिलकर पार्टी को लेकर बातचीत कर रहीं थी। मेयर और पार्षद चुनाव के लिए अलग टीम बनी थी। जिला स्तर की टॉप लीडरशिप इसमें शामिल थी। प्रदेश स्तर पर उन लोगों को कमान दी गई, जिन्हें चुनाव लड़ने का लंबा अनुभव है।
3. CM नायब सैनी समेत सभी बड़े चेहरे प्रचार में उतारे 5 महीने पहले विधानसभा में बहुमत पाने वाली भाजपा ने इस चुनाव को कतई हलके में नहीं लिया। भाजपा ने सभी बड़े चेहरे फील्ड में उतारे। इनमें पार्टी प्रदेश अध्यक्ष मोहन बड़ौली के अलावा सभी सीनियर नेता हर चुनाव क्षेत्र में पहुंचे। सरकार भी प्रचार में उतरी। सभी विधायकों और मंत्रियों के साथ CM नायब सैनी भी प्रचार में उतरे। लोकल नेताओं ने प्रचार के लिए संगठन और सरकार से जिस चेहरे की मांग की, उसे वहां भेजा गया। CM और मंत्रियों के प्रचार से लोगों को यकीन हुआ कि भाजपा वाकई शहरों के विकास और लोगों के काम करने के लिए सीरियस है। जिसका नतीजा भाजपा को मिले वोटों के तौर पर दिखा।
4. अपने बागियों से किनारा किया भाजपा के प्रदेश संगठन ने यह चुनाव पूरे जोश से लड़ा। इसकी बड़ी वजह ये रही कि भाजपा ने विधानसभा चुनाव में बगावत करने वालों को वापस नहीं लिया। CM नायब सैनी और पार्टी अध्यक्ष मोहन बड़ौली से लेकर मंत्रियों ने भी खुलकर इस पर बयान दिए। हिसार में भाजपा ने पूरी तैयारी के बावजूद पूर्व मेयर गौतम सरदाना और वरिष्ठ नेता तरुण जैन को पार्टी में नहीं लिया। अगर बागी पार्टी में वापस आते तो दूसरे नेता नाराज हो सकते हैं। मगर, पार्टी के इस कड़े रवैये को देखते हुए न पार्टी में किसी ने बगावत की हिम्मत की और न ही बागियों के आने से कोई मनमुटाव हुआ।
कांग्रेस की हार की 4 बड़ी वजहें
1. विधानसभा के बाद इस बार भी संगठन की कमी खली कांग्रेस को विधानसभा चुनाव के बाद निकाय चुनाव में भी संगठन की कमी खली। प्रदेश में 11 साल से पार्टी का संगठन नहीं है। बिना संगठन ग्राउंड पर वर्कर एकजुट नहीं हैं। हालांकि कांग्रेस हाईकमान ने संगठन बनाने की जगह 4 संगठनात्मक सूची जारी कर नेताओं को खुश करने की कोशिश की।
मगर, यह दांव फेल रहा। संगठन न होने से ग्राउंड लेवल पर पार्टी का असरदार प्रचार नहीं हुआ। सिर्फ उम्मीदवारों से जुड़े जो लोग थे, वही पार्टी की जगह उनके लिए वोट मांगते हुए नजर आए। इसका असर यह भी दिखा कि कांग्रेस को चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार तक नहीं मिले। हिसार और करनाल में कांग्रेस ने निर्दलियों को समर्थन देकर साख बचाई। वहीं फरीदाबाद में कांग्रेस की उम्मीदवार आखिरी वक्त में पार्टी छोड़ गई।
2. प्रभारी बदला, प्रधान हटाने की चर्चा, नेता प्रतिपक्ष भी नहीं बना प्रदेश में 5 फरवरी को निकाय चुनाव की घोषणा हुई। ऐसे वक्त में पार्टी को सीनियर नेताओं को एकजुट करने, हाईकमान से तालमेल के लिए प्रभारी की जरूरत थी। मगर, हाईकमान ने 14 फरवरी को प्रभारी दीपक बाबरिया को हटा दिया। ऐसे में पहले ही गुटबाजी में फंसी पार्टी और बिखर गई।
न ग्राउंड पर वर्करों को कोई हाईकमान का मैसेज देने वाला था, न प्रचार की रणनीति बनाने वला और न ही नेताओं को एक साथ लाने के लिए तालमेल वाला बचा। कांग्रेस ने बीके हरिप्रसाद को नया प्रभारी लगाया लेकिन वे निकाय चुनाव की 2 मार्च को वोटिंग के बाद हरियाणा पहुंचे।
वहीं विधानसभा चुनाव में हार के बाद प्रधान चौधरी उदयभान को भी हटाने की तैयारी है। मगर, अभी तक इस पर फैसला नहीं हुआ। ऐसे में लोकल नेताओं और वर्कर कन्फ्यूज रहे कि उनके निर्देशों को हाईकमान का आदेश मानें या न मानें।
वहीं कांग्रेस हाईकमान ने अभी तक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तक नहीं बनाया। सेशन में भी कांग्रेस प्रमुख विपक्षी दल होने के बावजूद बिना नेता के शामिल होती है। इन तमाम कारणों से जनता भी भी मैसेज गया कि कांग्रेस में अनिश्चितता माहौल है, ऐसे में काम की उम्मीद नहीं कर सकते।
3. चुनाव प्रचार को लेकर कांग्रेस लापरवाह दिखी, बड़े नेता नहीं आए चुनाव प्रचार में कांग्रेस पूरी तरह से लापरवाह दिखी। जिन्हें टिकट दी, वही अपने स्तर पर प्रचार करते रहे। कुछ ही नेता अपने रसूख से बड़े नेताओं को प्रचार में ला पाए। हालांकि हरियाणा कांग्रेस के दिग्गज चेहरे पूर्व CM भूपेंद्र हुड्डा, उनके सांसद बेटे दीपेंद्र हुड्डा, सिरसा सांसद कुमारी सैलजा, राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला प्रचार में कहीं नजर नहीं आए।
वह इस चुनाव को लेकर भी गंभीर नहीं दिखे। पूर्व CM भूपेंद्र हुड्डा ने तो यहां तक कह दिया था कि वह हर चुनाव में प्रचार करने के लिए नहीं जाते हैं। वह सिर्फ बड़े चुनाव लोकसभा और विधानसभा पर ही फोकस करते हैं। नेताओं की प्रचार से दूरी से जनता में मैसेज गया कि कांग्रेस की खुद इस चुनाव में दिलचस्पी नहीं है, ऐसे में उन्हें जिताया तो आगे काम भी नहीं होंगे।
4. नेता पार्टी छोड़ते रहे, किसी ने मनाने तक की कोशिश नहीं की निकाय चुनाव में कांग्रेस के कई बड़े नेता पार्टी छोड़ते चले गए। हिसार से विधानसभा में कांग्रेस उम्मीदवार रहे रामनिवास राड़ा मेयर टिकट मांग रहे थे। पार्टी ने सूरजमल किलोई को उम्मीदवार बना दिया। उन्होंने निर्दलीय नामांकन भरा लेकिन कांग्रेस का कोई नेता मनाने नहीं गया। उलटा जब पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा हिसार गए तो उन्होंने चेतावनी दी कि अगर निर्दलीय लड़ा तो राड़ा को पार्टी से निकाल देंगे। राड़ा अगले दिन भाजपा में शामिल हो गए। करनाल में भी 2 बार कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ने वाले तिरलोचन सिंह, पूर्व MLA नरेंद्र सांगवान भी पार्टी छोड़ गए। इसके बावजूद किसी ने उनकी सुध नहीं ली। जिस वजह से वे भाजपा में शामिल हो गए।