हाथरस से 80 किमी दूर है बहादुर नगर गांव। 2 जुलाई को ये गांव तब चर्चा में आया, जब हाथरस के सिकंदाराराऊ में सूरजपाल सिंह उर्फ भोले बाबा के सत्संग में भगदड़ से 123 लोगों की जान चली गई थी। बहादुर नगर गांव में सूरजपाल सिंह का आश्रम है। करीब 30 बीघा जमीन मे
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इस घटना को करीब डेढ़ महीने बीत चुके है। दैनिक भास्कर की टीम एक बार फिर बहादुर नगर गांव पहुंची। अब तक आश्रम में मीडिया को एंट्री नहीं थी, लेकिन इस बार हम सोर्स के जरिए आश्रम के अंदर पहुंचे। यहां हमें कुछ भक्त मिले। सभी UP के अलग-अलग शहरों से आए थे।
पुलिस ने भगदड़ के मामले में सूरजपाल के मुख्य सेवादार समेत 11 लोगों को अरेस्ट किया था। सभी अभी जेल में हैं। साथ ही SDM समेत 6 अधिकारियों को सस्पेंड भी कर दिया गया।
सबसे पहले बात बाबा के आश्रम की…
सूरजपाल बाबा का पहला आश्रम, जहां से बाबा का साम्राज्य शुरू हुआ
सूरजपाल बाबा का गांव बहादुर नगर कासगंज जिले में है। सूरजपाल ने अपना पहला आश्रम यहीं बनाया था। बाहर से कोठी की तरह दिखने वाले आश्रम में अंदर टीनशेड वाले 7 कमरे बने हैं।
सूरजपाल बाबा के पैतृक गांव बहादुर नगर में ही उनका आश्रम है। आश्रम हरि चैरिटेबल ट्रस्ट के नाम पर है और 30 बीघा जमीन पर फैला है। आश्रम में निगरानी के लिए चौकियां बनी हैं। पूरे आश्रम के चारों ओर ऊंची-ऊंची दीवारें हैं।
आश्रम में एंट्री के लिए बड़ा सा दरवाजा है। बाहर से भले ही आश्रम किले की तरह दिखता हो, लेकिन अंदर से सामान्य घर जैसा है। आश्रम के बाहर एक बड़ा बोर्ड लगा है, जिस पर लिखा है कि अंदर फोटो खींचना और वीडियो बनाना मना है।
हाथरस हादसे के बाद भी सूरजपाल बाबा के भक्त आश्रम पहुंच रहे हैं। हमें यहां टीनशेड के नीचे 20 से 25 भक्त भोजन करते मिले।
हम आश्रम के अंदर दाखिल हुए। वहां 20-25 लोग थे। सभी आश्रम में एक टीनशेड के नीचे जमीन पर बैठकर खाना खा रहे थे। सभी ने बारी-बारी से बाबा का नाम लिया और फिर खाना शुरू किया। हमने उनके बारे में जानने की कोशिश की। एक शख्स बोला, ‘हम भी आपकी तरह बाबा के भक्त हैं।’
इससे समझ आ गया कि आश्रम में आने वाला हर शख्स भक्त ही माना जाता है। यहां तैनात एक सेवादार ने हमें पूरा आश्रम घुमाया। उसने बताया कि अभी यहां गांव का एक भी व्यक्ति नहीं है। सभी लोग अलग-अलग इलाकों से आए हैं। आश्रम में हमें 7 कमरे दिखे। इनमें से 2 कमरों में ताला लगा था। यहीं एक किचन भी है।
कासगंज में सूरजपाल बाबा के आश्रम के रसोईघर की फोटो है। यहां आश्रम में रुके भक्तों के लिए खाना बनता रहता है।
आश्रम के जिन कमरों में ताला नहीं लगा, वहां रह रहे हैं भक्त
आश्रम में पांच कमरे भक्तों के लिए खुले हैं। इनमें जमीन पर ही 4-5 गद्दे बिछाए गए हैं। कमरे काफी बड़े हैं। इनमें भक्तों के लिए अलमारी और पंखे जैसे बेसिक इंतजाम भी हैं। कमरे में लाइट न होने से अंधेरा ही रहता है।
एक कमरे में हमें करीब 10 संदूकें और सूरजपाल की कुछ तस्वीरें दिखाई दीं। सभी संदूकों में ताला लगा था। इस कमरे में हमें सेवादार ने अंदर नहीं जाने दिया। दरवाजे पर जाली लगी थी, जिससे अंदर देखा जा सकता था। हालांकि, इसे भी बाहर की ओर से कागज लगाकर बंद किया गया है।
आश्रम का कमरा, जिसमें अंदर संदूकें और सूरजपाल बाबा की फोटो लगी हैं।
आश्रम में हमारी मुलाकात राजपाल सिंह यादव से हुई। वो आश्रम में ट्रस्टी हैं। बाबा ने अपना आश्रम और उससे जुड़ी सभी जमीनें ट्रस्ट के नाम कर रखी हैं। हाथरस की घटना को याद कर राजपाल सिंह यादव कहते हैं, ‘तब जो कुछ भी हुआ, उसे लेकर आज भी सभी लोग परेशान हैं।’
राजपाल आगे कहते हैं, ‘जो कुछ भी हुआ, उसमें SIT की रिपोर्ट भी आ चुकी है। रिपोर्ट में प्रशासन को दोषी ठहराया गया है। अब तीन सदस्यीय आयोग बना है। वो अपनी रिपोर्ट कब सौंपेगा, हमें नहीं पता। हमें उस आयोग पर भी भरोसा है। हमारे खिलाफ कुछ नहीं होगा, क्योंकि हम सत्य के रास्ते पर हैं।’
भगदड़ की घटना के बाद से सूरजपाल बाबा कहां हैं? राजपाल इसके जवाब में कहते हैं, ‘घटना के कुछ दिन बाद भोले बाबा आश्रम आए थे। एक दिन में ही वे वापस चले गए। बाबा यहां आए थे, तब यहां लोगों की भीड़ बढ़ती गई। वे डॉक्टरों की सलाह पर आए थे, लेकिन भीड़ बढ़ने के बाद लौट गए।’
हालांकि, राजपाल ये नहीं बताते कि सूरजपाल आश्रम में नहीं है, तो अभी कहां है।
ये तस्वीर आश्रम के मेन गेट की हैं। यहां के गेट पर आज भी भक्त बाबा का आशीर्वाद लेने के लिए आ रहे हैं।
इसके बाद हमारी मुलाकात गांव में ही रहने वाली ओमवती से हुई। बाबा के गांव में आने का वक्त याद करते हुए वो कहती हैं, ‘बाबा आए थे, तब उन्हें देखने के लिए बहुत भीड़ आ गई थी। फिर उसी शाम को उनकी तबीयत बिगड़ गई।’
‘उनके लिए ऑक्सीजन सिलेंडर भी लाया गया। फिर भी हालत में सुधार नहीं हुआ, तो बाबा को डॉक्टर अस्पताल ले गए। तब से बाबा नहीं लौटे।’
इसके बाद हम सूरजपाल बाबा के वकील एपी सिंह से मिले। उन्होंने हमें बताया, ‘बाबा उत्तर प्रदेश में ही अपने एक आश्रम में हैं। जल्द ही वे भक्तों के सामने आएंगे।’
हमने उनसे पूछा कि बाबा किस आश्रम में हैं, तो वे बोले, ‘अभी उनकी सटीक लोकेशन बताना उनके और लोगों के लिए ठीक नहीं होगा।’
सूरजपाल बाबा अपने गांव वाले आश्रम पहुंचे थे, तब वकील एपी सिंह भी उसके साथ मौजूद थे। हमने उनसे जानना चाहा कि उस दिन ऐसा क्या हुआ कि बाबा वहां से चले गए। इस पर एपी सिंह कहते हैं, ‘उस दिन उनका स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया, इसलिए हमें उस जगह से जाना पड़ा। असल में तो बाबा वहीं रहने के लिए आए थे।’
राज्य सरकार से मुआवजा मिला, सूरजपाल बाबा से नहीं मिली मदद
हाथरस हादसे में जिन लोगों ने जान गंवाई, उनके परिजन को राज्य और केंद्र सरकार की ओर से 2-2 लाख रुपए मुआवजा देने का ऐलान किया गया था। समाजवादी पार्टी ने भी 1-1 लाख रुपए देने की घोषणा की थी।
हाथरस हादसे के बाद सूरजपाल बाबा के वकील एपी सिंह ने भी सभी लोगों की मदद करने का ऐलान किया था। उन्होंने कहा था कि बाबा की भक्ति में मारे गए लोगों के परिवारों और हॉस्पिटल में भर्ती मरीजों को बाबा की तरफ से मदद मिलेगी। हालांकि, बाबा की तरफ से पीड़ितों को अब तक मदद नहीं मिली है।
हादसे में जिन लोगों ने जान गंवाई, हमने उनके परिवारों से कॉन्टैक्ट किया। इनमें से एक परिवार आगरा का रहने वाला है। हम फैमिली के मेंबर देवेंद्र से मिले। हादसे में उनकी मां गुड़िया की मौत हुई थी। देवेंद्र बाबा के अचानक गायब हो जाने से खुश नहीं हैं।
मुआवजे को लेकर वे बताते हैं, हमें अखिलेश यादव की ओर से 1 लाख रुपए और सरकार से 2 लाख रुपए मिल चुके हैं।’ हालांकि, वे ये भी बता पाते कि पैसा राज्य सरकार से मिला है या केंद्र सरकार की तरफ से।
हमने बुलंदशहर के खुर्जा की रहने वाली 15 साल की गौरी की फैमिली से भी बात की। गौरी सत्संग में अपनी बहनों के साथ गई थी, लेकिन भगदड़ में उनकी मौत हो गई थी। उनके भाई राहुल बताते हैं, ‘हमें समाजवादी पार्टी से 1 लाख रुपए और राज्य सरकार की ओर से 2 लाख रुपए मिल चुके हैं। अब तक सूरजपाल बाबा और केंद्र सरकार की तरफ से किसी ने कॉन्टैक्ट नहीं किया है और न ही मुआवजा मिला है।’
हाथरस में हादसे की जगह अब भी लगा है टेंट, राजकुमार कर रहे रखवाली
हम हाथरस के सिकंदराराऊ भी गए, जहां ये भगदड़ में 123 मौतें हुई थीं। सिवाय राज कुमार के वहां सब कुछ सामान्य है। राजकुमार बदायूं के रहने वाले हैं और उन्होंने ही इस सत्संग के लिए टेंट लगाए थे। प्रशासन ने उन्हें टेंट का सामान ले जाने से मना कर दिया है। इस वजह से वो सिकंदराराऊ में सत्संग वाली जगह पर ही रह रहे हैं।
राज कुमार कहते हैं, ‘मेरा 22 लाख का सामान है। कुछ चोरी भी हो गया है। मैं और नुकसान नहीं झेलना चाहता, इसलिए यहां रहकर सामान की निगरानी कर रहा हूं।’
हाथरस में सत्संग के लिए राजकुमार ने ही टेंट लगाया था। प्रशासन ने जांच पूरी होने तक उन्हें सामान हटाने से मना कर दिया है। इसलिए वो घटनास्थल पर ही टेंट लगाकर रह रहे हैं और अपने सामान की रखवाली कर रहे हैं।
जांच में बाबा को क्लीनचिट, 17 आरोपियों को नहीं मिली जमानत
सूरजपाल बाबा का नाम हादसे के बाद दर्ज FIR में नहीं था। जांच में सूरजपाल को SIT की ओर से क्लीन चिट मिल चुकी है। SIT की रिपोर्ट के बाद सरकार ने 9 पॉइंट पर एक बयान जारी किया था, जिसमें आयोजकों और प्रशासनिक अधिकारियों को लापरवाह बताया गया। इसके बाद SDM, CO समेत 6 अफसरों को सस्पेंड कर दिया गया था।
मामले में मुख्य आरोपी सेवादार देव प्रकाश मधुकर के अलावा 16 लोग गिरफ्तार किए गए थे। इन्हें अब तक जमानत नहीं मिली है। इनमें महिलाएं भी शामिल हैं। वकील एपी सिंह का मानना है कि सभी लोगों को गलत तरीके से गिरफ्तार किया गया है। जल्द ही सबकी जमानत भी हो जाएगी।
वे कहते हैं, ‘हम पहले से कह रहे हैं कि ये मौतें जहरीली गैस के कारण हुई हैं। हमने इस मामले की लिखित शिकायत भी हाथरस पुलिस को दी है। गवाहों ने मुझसे कॉन्टैक्ट किया और कहा कि 15-16 लोग जहरीले स्प्रे के डिब्बे लेकर आए थे। उन्होंने ही भीड़ में स्प्रे किया।’ वकील के इन दावों पर UP पुलिस ने फिलहाल कोई कमेंट नहीं किया है।
एक घंटे 20 मिनट का सत्संग, भगदड़ में 123 मौतें
15 दिन पहले से तय था कि सिकंदराराऊ के फुलरई गांव में सूरजपाल बाबा का सत्संग होना है। 2 जुलाई को सुबह 8 बजे से भीड़ जुटनी शुरू हुई। साढ़े 10 बजे तक सत्संग शुरू होना था। तय वक्त पर 50 से 60 बीघा खेत में बना पूरा पंडाल भर गया। 12 बजे 15 गाड़ियों के काफिले के साथ बाबा पहुंचा।
12 बजे सत्संग शुरू हुआ और 1 बजकर 20 मिनट पर खत्म हो गया। सत्संग के बाद बाबा गाड़ी में बैठा और बाहर निकल गया। पीछे से उसे देखने के लिए महिलाएं दौड़ने लगीं।
भीड़ हटाने के लिए बाबा के सेवादारों ने जोर-जबरदस्ती की। बचने के लिए भीड़ भागी और भगदड़ मच गई। लोग एक-दूसरे को रौंदते हुए आगे बढ़ने लगे। इस भगदड़ में 123 लोगों की मौत हो गईं। इनमें 113 महिलाएं और 7 बच्चे थे।