श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति की कालजयी साहित्यकार स्मरण श्रृंखला की 104वीं कड़ी में क्रांतिकारी संत सहजोबाई को याद किया गया। कार्यक्रम में विद्वानों ने उनके साहित्यिक योगदान और जीवन पर चर्चा की।
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1725 में जन्मीं सहजोबाई भक्ति आंदोलन की प्रमुख संत थीं। वे खड़ी बोली, राजस्थानी, बुंदेली और ब्रजभाषा में रचनाएं करती थीं। उन्होंने अपने ग्रंथ ‘सहजप्रकाश’ में गुरु महिमा, सत्संग और निर्गुण मत का प्रतिपादन किया।
अपनी बात रखती हुईं एक वक्ता
कार्यक्रम संचालक हरेराम वाजपेयी ने बताया कि सहजोबाई ने साधु-असाधु की वाणी पर भी लिखा। अर्पण जैन ने कहा कि उन्होंने निर्गुण भक्ति और समाज की पीड़ा को अपनी रचनाओं में व्यक्त किया। डॉ. अखिलेश राव ने बताया कि वे समाज की बुराइयों पर प्रहार करती थीं।
भरतकुमार जी ने सहजोबाई के जीवन चरित्र पर प्रकाश डाला। डॉ. आरती दुबे ने उन्हें आध्यात्मिक प्रेरणा जगाने वाली महिला संत बताया। डॉ. पुष्पेन्द्र दुबे ने नारी सम्मान पर उनके विचारों के उदाहरण प्रस्तुत किए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कार्यवाहक प्रधानमंत्री घनश्याम यादव ने की। इस अवसर पर उमेश पारेख, अनिल भोजे, गोविंद दुबे, स्मिता शाह, श्याम सिंह समेत कई साहित्यकार मौजूद रहे। पुस्तकालय मंत्री अरविंद ओझा ने आभार माना।