ईरानी छात्रा को पीएचडी का एक मौका और देने से हाईकोर्ट इंकार।
चंडीगढ़ स्थित पंजाब यूनिवर्सिटी में इतिहास विभाग से पीएचडी कर रही ईरानी नागरिक मेहरी मालेकी डिजीचेह को 13 वर्षों में रिसर्च पूरा न करने पर अब आगे मौका नहीं मिलेगा। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने छात्रा की ओर से दाखिल दो याचिकाओं को खारिज करते हुए स्पष्ट कर
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वीजा की अवधि एक साल बढ़ाने की मांग
मेहरी मालेकी ने कोर्ट से आग्रह किया था कि उसे थीसिस जमा करने के लिए एक और अंतिम मौका दिया जाए, वीजा की अवधि एक साल के लिए बढ़ाई जाए, ओवरस्टे पर लगाए गए जुर्माने को माफ किया जाए, विश्वविद्यालय द्वारा हॉस्टल की सुविधा दोबारा उपलब्ध कराई जाए और भारत में शरणार्थी के तौर पर रहने की अनुमति दी जाए।
पंजाब यूनिवर्सिटी।
2012 में मिला पीएचडी में दाख़िला
छात्रा को वर्ष 2012 में पंजाब यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग में पीएचडी कोर्स में दाख़िला मिला था। नियमों के मुताबिक उसे 8 साल के भीतर शोध कार्य पूरा करना था। कोविड-19 समेत कई निजी कारणों का हवाला देते हुए वह निर्धारित समय सीमा में थीसिस जमा नहीं कर पाई। इसके बावजूद विश्वविद्यालय ने उसे सहानुभूतिपूर्वक वर्ष 2022 में ‘गोल्डन चांस’ के तहत 30 दिसंबर 2022 तक का अंतिम अवसर भी दिया।
रिसर्च जमा करने में रही असफल
इस बार भी रिसर्च जमा करने में असफल रही। इसके बाद हाईकोर्ट ने 24 फरवरी 2025 को सुनवाई करते हुए फिर एक विशेष अवसर देने का निर्देश दिया। यूनिवर्सिटी ने 6 मार्च को हुई बैठक में 15 दिन की मोहलत देते हुए थीसिस जमा करने की मंज़ूरी दी, डिजिटल लाइब्रेरी और दस्तावेजों तक पहुंच भी दी गई। लेकिन अंतिम तारीख से एक दिन पहले छात्रा ने केवल अपने गाइड को प्रारूप भेजा, जबकि थीसिस की फाइनल जमा प्रक्रिया संबंधित प्राधिकारी के पास होती है।
12-13 साल में नहीं निभा पाईं जिम्मेदारी
हाईकोर्ट ने कहा कि इतने वर्षों में बार-बार दिए गए अवसरों के बावजूद छात्रा अपनी शैक्षणिक जिम्मेदारियों को पूरा नहीं कर पाई। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अब उसे और कोई मौका नहीं दिया जा सकता।
यूजीसी के नियम
यूजीसी की 2022 की गाइडलाइन के अनुसार, पीएचडी छह वर्षों में पूरी करनी होती है। विशेष परिस्थिति में दो साल की अतिरिक्त छूट दी जा सकती है, लेकिन इसके लिए पुनः पंजीकरण जरूरी है। महिला शोधार्थियों को भी दो साल की अतिरिक्त छूट का प्रावधान है। तत्कालीन यूजीसी चेयरमैन एम. जगदीश कुमार के अनुसार, समय सीमा तय करने से योग्य छात्र कम उम्र में पीएचडी पूरी कर पाएंगे और नए रिसर्च स्कॉलर्स को भी मौके मिल सकेंगे।
नही मिली कार्ट से राहत
याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त की ओर से उसे शरणार्थी घोषित किया गया है और भारत सरकार से स्थायी निवास की अनुमति मांगी गई है। हालांकि, हाईकोर्ट ने इस विषय पर कोई टिप्पणी नहीं की लेकिन यह स्पष्ट किया कि छात्रा भारत सरकार के समक्ष स्वतंत्र रूप से शरणार्थी निवास की मांग कर सकती है।