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PK-RCP को नीतीश ने सियासत सिखाई, वही दे रहे चुनौती: मांझी-कुशवाहा ने अलग राह अपनाकर बढ़ाया कद; जानिए करीबियों के दूर होने की पूरी कहानी – Patna News


बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव होना है। चुनाव से पहले दो नई पार्टी बनी है। इनमें से एक प्रशांत किशोर की पार्टी उपचुनाव में भी मैदान में है। वहीं, आरसीपी फिलहाल संगठन को खड़ा कर रहे हैं। ये दोनों ऐसे नेता हैं, जिनकी गिनती नीतीश कुमार के करीबियों मे

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आरसीपी को सियासत में लाने का श्रेय नीतीश कुमार को जाता है। वहीं, पीके को जदयू का राष्ट्र्रीय उपाध्यक्ष तक बनाया गया। कहा जाता तो ये भी है कि इन दोनों नेताओं ने नीतीश से सियासी गुर सिखे, लेकिन अब 2025 में उन्हें चुनौती देने की तैयारी है।

नीतीश कुमार को छोड़ने वाले नेताओं में शामिल आरसीपी सिंह ने कुछ दिन पहले ही अलग पार्टी बनाई। वे कभी नीतीश कुमार की पार्टी में नंबर दो की पोजिशन में थे।

RCP सिंह से पहले प्रशांत किशोर ने अपनी पार्टी बनाई। ये भी सीएम के बेहद करीबी माने जाते थे। बिहार में नीतीशे कुमार हैं का नारा भी दिया, लेकिन बात बिगड़ी तो अब जन सुराज के जरिए नीतीश कुमार को घेर रहे हैं।

इस रिपोर्ट में पढ़िए, नीतीश कुमार से सियासी गुर सीखने वाले नेता आज कैसे उनके लिए परेशानी का सबब बन रहे हैं। कुछ करीबियों ने दूरी बनाकर अपनी राह अलग की और राजनीति में अपना कद बढ़ाने में सफल हुए।

1. आरसीपी सिंह

65 साल के पूर्व IAS ऑफिसर RCP ने 31 अक्टूबर को 2024 को अपनी नई पार्टी ASA बनाई, यानी ‘आप सबकी आवाज’। एक वक्त वो भी था, जब RCP नीतीश कुमार के खासमखास माने जाते थे।

जब नीतीश कुमार देश के रेल मंत्री थे। तब आरसीपी उनके विशेष सचिव थे। 2005 में जब नीतीश बिहार के मुख्यमंत्री बने, उस समय वे नीतीश कुमार के प्रमुख सचिव बनाए गए। 2010 में उन्होंने वीआरएस ले लिया।

नीतीश ने JDU का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया

2010 में जेडीयू ने RCP सिंह को राज्यसभा भेजा। 2016 में उन्हें फिर से राज्य सभा भेजा गया। वे नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के लिए इतने खास थे कि 2020 में उन्हें जेडीयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष तक बनाया गया।

उनकी नजदीकी जेडीयू में रहते हुए बीजेपी से भी ऐसी हुई कि नरेन्द्र मोदी ने 2021 में देश का इस्पात मंत्री बनाया। लेकिन, समय पलटा और 2022 में जेडीयू ने उन्हें पार्टी से हटा दिया। मई 2023 में आरसीपी बीजेपी में शामिल हो गए। आरसीपी को लगा कि बीजेपी में उनका बेहतर भविष्य है, लेकिन जनवरी 2024 में नीतीश एनडीए में वापस लौट गए।

नीतीश की NDA में एंट्री के बाद RCP बीजेपी में भी किनारे कर दिए गए। आरसीपी के लिए दो रास्ते थे या तो वे चुपचाप बीजेपी में पड़े रहते या अपनी अलग राह चुनते। उन्होंने नया रास्ता चुना और नई पार्टी ASA बना ली।

क्या है RCP का प्लान

आरसीपी को बेहतर मालूम है कि एनडीए के अंदर बीजेपी और जेडीयू के बीच या फिर नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार के बीच किस तरह कभी हार्ड और कभी सॉफ्ट पावर वार चलता रहा है।

यही वजह है कि सरदार पटेल जयंती एकता दिवस के दिन पार्टी की स्थापना के दौरान उन्होंने नरेन्द्र मोदी की तारीफ की और साफ कर दिया कि वे किसके खिलाफ उम्मीदवार उतारेंगे और किसके खिलाफ नहीं।

बीजेपी पर सॉफ्ट और नीतीश को निशाने पर लेकर RCP ने लगभग स्पष्ट कर दिया कि पॉलिटिकल लाइन क्या है।

नीतीश कुमार और आरसीपी दोनों नालंदा के हैं और दोनों कुर्मी हैं। आरसीपी ने पार्टी बनाने के पहले ही दिन बिहार में शराबबंदी पर कहा कि शराबबंदी कानून में सुधार की जरूरत है।

उन्होंने मिस कॉल से पार्टी सदस्य बनाने की अपनी रणनीति बताई। बिहार में शिक्षा, रोजगार, उनकी पार्टी के मुख्य एजेंडा में शामिल होगा।

बड़ी बात कि उन्होंने कहा 140 विधानसभा सीटों पर लड़ने के लिए उम्मीदवार तैयार हैं। यानी साफ है वे 243 बिहार विधानसभा सीटों में से 140 से कम पर नहीं लडे़ंगे।

वोटों का नुकसान भी वे पहुंचाएंगे तो नीतीश कुमार को ही बड़ा नुकसान पहुंचाएंगे। सक्रिय राजनीति से दूर हो चुके आरसीपी ने नई पार्टी बनाकर एक बार फिर से खुद को अपनी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना लिया है।

2. प्रशांत किशोर

2 साल बिहार में पदयात्रा करने के बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म दिन 2 अक्टूबर के अवसर पर अपनी पार्टी जन सुराज की नींव रखी। पीके की पार्टी को स्कूल का बस्ता चुनाव चिह्न भी मिल चुका है।

नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का विरोध करने के कारण उन्हें जेडीयू से निष्कासित किया गया था। इससे पहले प्रशांत ने किसी पार्टी को जॉइन नहीं किया था। हां, वे विभिन्न पार्टियों के चुनावी रणनीतिकार रहे थे।

नीतीश कुमार ने 6 साल पहले प्रशांत किशोर को जेडीयू में शामिल कर राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया था। इससे पहले उन्हें जेडीयू राज्य परिषद का सदस्य भी बनाया गया था।

2015 में विधानसभा के चुनाव में एनडीए को शिकस्त देकर बिहार में महागठबंधन की सरकार बनाने के शिल्पकार भी प्रशांत को ही माना जाता है।

मुद्दे पर विवाद ने रिश्ते में खटास बढ़ाई और दोनों के रास्ते अलग हो गए। बाद में सीएम नीतीश कुमार ने यह भी कहा कि अमित शाह के कहने पर प्रशांत किशोर को पार्टी में पद दिया था।

आगे क्या करेंगे प्रशांत

प्रशांत किशोर ने पार्टी गठन के साथ ही कहा कि उनकी सरकार आएगी तो एक दिन में बिहार से शराबबंदी हटा ली जाएगी। बिहार में 4 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में उम्मीदवार उतारा है। साथ ही कहा है कि बिहार विधानसभा की सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगे।

उन्होंने मुसलमानों को 40 और महिलाओं को 40 टिकट बिहार विधानसभा चुनाव में देने का वादा किया है। लेकिन, सत्ता के सेमीफाइनल यानी उपचुनाव में उन्हें दो उम्मीदवार बदलने पड़ गए।

पार्टी के एजेंडा में शिक्षा, रोजगार, पलायन आदि को उन्होंने मुद्दा बनाया है। प्रशांत के निशाने पर सबसे अधिक तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार रहते हैं।

3. उपेन्द्र कुशवाहा

28 अक्टूबर को उपेन्द्र कुशवाहा का बयान बक्सर से आया कि ‘कुछ लोगों की साजिश के कारण लोकसभा चुनाव में काराकाट सीट से परिणाम आशा के अनुरूप नहीं आया।

साजिश करने वाले फिर भी उन्हें सांसद बनने से नहीं रोक सके।’ उन्होंने कहा कि कुछ लोग आरोप लगाते हैं कि ‘उपेंद्र कुशवाहा बार-बार रास्ता बदल लेते हैं। मैंने रास्ता बदला है, लेकिन मंजिल नहीं।’

बता दें काराकाट से लोकसभा का चुनाव हारने के बाद एनडीए से राज्य सभा भेजा गया। अगले विधानसभा चुनाव को देखते हुए कुशवाहा वोट बैंक की अहमियत समझते हुए ऐसा किया गया। राजद ने भी अभय कुशवाहा को आरजेडी संसदीय दल का अध्यक्ष बनाया।

नीतीश कुमार ने भगवान कुशवाहा को विधान परिषद भेजा। बीजेपी ने एक कुशवाहा सम्राट चौधरी को डिप्टी सीएम का पद दे रखा है। उपेन्द्र कई बार नीतीश कुमार से अलग हुए और फिर साथ।

लेकिन, इस बीच अपनी पार्टी भी बनाते रहे। उनकी पार्टी में यह नारा खूब गूंजा करता था- बिहार का मुख्यमंत्री कैसा हो उपेन्द्र कुशवाहा जैसा हो।

इस तरह अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ाई

उपेंद्र कुशवाहा ने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1985 से की। 1988 तक वह युवा लोक दल के प्रदेश महासचिव रहे। 1988 से 1993 तक युवा जनता दल के राष्ट्रीय महासचिव रहे, फिर 1994 से 2002 तक समता पार्टी में महासचिव बने।

2000 में जंदाहा सीट से विधानसभा चुनाव लड़े और विधायक बने। 2007 में उन्होंने जेडीयू से बगावत कर दी। जेडीयू ने उन्हें पार्टी से निकाला तो अपनी पार्टी बना ली, नाम रखा ‘राष्ट्रीय समता पार्टी’। तब वे बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे। 2009 के लोकसभा चुनाव में वे हार गए और नीतीश कुमार से फिर से जा मिले।

नीतीश कुमार ने उन्हें राज्य सभा भेजा। 2013 में जेडीयू और बीजेपी में तनातनी हुई तो उपेंद्र कुशवाहा ने फिर से जेडीयू छोड़ दी और नई पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी बना ली। 2014 में उपेंद्र कुशवाहा ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया और लोकसभा चुनाव में 4 सीटों पर उम्मीदवार उतारा।

बिहार में 3 सीटें जीते और नरेन्द्र मोदी कैबिनेट में उन्हें मंत्री बनाया गया। 2018 में उपेन्द्र ने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। वे एनडीए छोड़ महागठबंधन के साथ चले गए।

2019 के लोकसभा चुनाव में बुरे हाल के बाद महागठबंधन भी छोड़ दिया। अब उन्होंने बसपा और एआईएमआईएम के साथ मिलकर तीसरा मोर्चा बनाया। लेकिन, 2020 में उनका यह प्रयोग भी फेल हो गया।

अपनी पार्टी का विलय जेडीयू में कर दिया था

इस हार के बाद उपेन्द्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी का विलय जेडीयू में कर दिया। नीतीश कुमार ने उन्हें 2021 में बिहार विधान परिषद में एमएलसी बनवाया। 2023 में उन्होंने फिर से जेडीयू छोड़ी और नई पार्टी बनाई ‘ राष्ट्रीय लोक जनता दल’। लेकिन, चुनाव आयोग ने उनकी पार्टी को ‘राष्ट्रीय लोक मोर्चा’ नाम से निबंधित किया।

2024 के लोकसभा चुनाव में वे काराकाट से लोकसभा चुनाव हार गए। यहां माले के राजा राम सिंह को 380581 वोट, निर्दलीय पवन सिंह को 274723 वोट, राष्ट्रीय लोक मोर्चा के उपेन्द्र कुशवाहा को 253876 वोट मिले।

बसपा के धीरेन्द्र कुमार सिंह ने 23657 वोट हासिल किए। चुनाव परिणाम के बाद उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा कि एनडीए की हार से राजद को खुश होने की जरूरत नहीं है। उनको जनता ने नहीं जिताया है, बल्कि एनडीए को एनडीए की ओर से हराए जाने से वे लोग जीते हैं।

उपेन्द्र कुशवाहा की खासियत

उनकी गिनती वैसे नेताओं में की जाती है जो देश के चारों सदन यानी लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा और विधान परिषद के सदस्य रह चुके हैं। वे युवाओं और किसानों की बात करते रहे हैं। 2019 में उन्होंने शिक्षा सुधार यात्रा निकाली थी। शिक्षा सुधार को लेकर उन्होंने हस्ताक्षर अभियान भी दिया था। वे केन्द्र में मानव संसाधन विकास विभाग में राज्य मंत्री रह चुके हैं।

4.जीतन राम मांझी

अपने बयानों से हमेशा चर्चा में रहने वाले नेता हैं। नीतीश कुमार की पार्टी में रहकर मुख्यमंत्री पद हासिल किया, हटाए भी गए, लेकिन अलग पार्टी बनाकर काफी कुछ हासिल किया।

अभी इमामगंज उपचुनाव में अपनी बहू को हम पार्टी से टिकट दिया है। इनके बेटे संतोष मांझी एमएलसी हैं और बिहार सरकार में मंत्री हैं।

2014 से फरवरी 2015 तक बिहार के सीएम रहे मांझी

जीतन राम मांझी को नीतीश कुमार ने मंत्री बनाया और उसके बाद मुख्यमंत्री भी। 2015 में सीएम पद से इस्तीफे के बाद उन्होंने नई पार्टी ‘हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा’ बनाई।

2015 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। 2019 का लोकसभा चुनाव वे महागठबंधन के साथ लड़े, लेकिन फिर करारी हार का सामना करना पड़ा।

2020 के विधानसभा चुनाव में मांझी एनडीए के साथ हो गए और उनकी पार्टी हम को बिहार में चार सीटें हासिल हुईं। इसके बाद मांझी ने घोषणा की कि वे चुनावी राजनीति से संन्यास ले रहे हैं। अब चुनाव नहीं लड़ेंगे।

अधिक उम्र की वजह से उन्होंने ऐसा कहा। लेकिन, नरेन्द्र मोदी के आग्रह पर 2024 के लोकसभा चुनाव में जीतन राम मांझी ने गया से चुनाव लड़ा और सांसद बन गए।

केन्द्र में मंत्री भी बनाए गए। मांझी अपने बेटे संतोष सुमन को दो बार बिहार विधान विधान परिषद का सदस्य बनवाने में भी कामयाब रहे। संतोष सुमन अभी बिहार सरकार में मंत्री हैं।

बिहार में चार सीटों पर हो रहे उपचुनाव में इमामगंज से संतोष सुमन की पत्नी और जीतन राम मांझी की बहू दीपा मांझी खड़ी हैं। जीतन राम मांझी की समधन हम पार्टी से दूसरी बार बाराचट्टी से विधायक हैं।

पार्टी को विलय से बचाया

जीतन राम मांझी की पार्टी हम का विलय हो जाता, अगर उन्होंने कड़ा फैसला नहीं लिया होता। लोकसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी से कहा कि आप अपनी पार्टी हम का विलय जेडीयू में कर दीजिए। मांझी अड़ गए और हम का विलय नहीं किया। मांझी के बेटे संतोष मांझी तब बिहार सरकार में मंत्री थे।

विलय से इनकार करने पर उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर होना पड़ा। नीतीश कुमार ने 9 नवंबर 2023 को बिहार विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान जीतन राम मांझी के बारे में कहा कि मांझी मेरी मूर्खता से मुख्यमंत्री बने थे।

इसके जवाब में मांझी ने कहा- अपनी इज्जत बचाने के लिए मुझे मुख्यमंत्री बनाया था। रबर स्टांप की तरह इस्तेमाल करना चाहते थे। इशारे पर नहीं चला तो हटा दिया।

शराबबंदी के खिलाफ बोलते रहे हैं

नीतीश कुमार की पार्टी में हम का विलय नहीं करके मांझी ने बड़ा फैसला लिया। लेकिन, परिवारवाद का आरोप इन पर लगता रहता है। एनडीए की सरकार में शामिल रहते हुए भी जीतन राम मांझी शराबबंदी पर मुखर दिखते हैं।

शराबबंदी की वजह से जेल गए गरीबों को छोड़ने के हिमायती रहे हैं। एक बार उन्होंने कहा कि बड़े-बड़े अधिकारी शराब का सेवन करते हैं। शराब पीने के मामले में मजदूर और गरीबों को जेल भेजा जा रहा है।

शराब तस्कर नहीं पकड़ा जा रहा है। मेहनत और मजदूरी करने वाले गिरफ्तार किए जाते हैं।

5. रामबदन राय

जब 1994 में नीतीश कुमार, लालू प्रसाद से अलग हुए तब प्रो. रामबदन राय बीस सूत्री के उपाध्यक्ष थे। रामबदन राय, सुधा श्रीवास्तव और वशिष्ठ नारायण सिंह रिजॉइन कर नीतीश के साथ चले गए। समता पार्टी को आगे बढ़ाया। इससे पहले रामबदन राय 1991 में जनता दल के चक्र छाप से चुनाव लड़ चुके थे।

नीतीश कुमार ने इन्हें 2004 में जेडीयू से एमएलसी बनाया। एक-डेढ़ साल का समय बचा होगा कि रिजॉइन कर मुंगेर से आरजेडी के टिकट पर 2009 में लोकसभा का चुनाव लड़े। 2019 में आरजेडी छोड़ जेडीयू में शामिल हो गए। मंगनी लाल मंडल और रामबदन राय ने एक साथ आरजेडी छोड़ी थी।

अगस्त 2023 में रामबदन राय ने कर्पूरी जनता दल नाम से पार्टी बनाई। नई पार्टी की घोषणा के समय नीतीश कुमार पर अति पिछड़ा की उपेक्षा का आरोप लगाया था। 2024 में चुनाव में भी लड़ा और हार गए।

अति पिछड़ा को सीएम बनाने का दांव

नई पार्टी ‘कर्पूरी जनता दल’ की घोषणा करते हुए रामबदन राय ने घोषणा की कि यदि 2025 में हम बिहार में सरकार में आते हैं तो अति पिछड़ा समाज से मुख्यमंत्री देंगे, जिसकी आबादी लगभग 35 फीसदी है।

वहीं, पिछड़ा समाज जिसकी आबादी 15 फीसदी है से एक उपमुख्यमंत्री होगा, मुस्लिम समाज से एक उपमुख्यमंत्री होगा।

एक्सपर्ट बोले- प्रशांत किशोर और आरसीपी एनडीए को परेशान कर रहे

राजनीतिक विश्लेषक रवि उपाध्याय कहते हैं ‘उपेन्द्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी अपनी पार्टी के साथ एनडीए में हैं। लेकिन, दूसरी तरफ प्रशांत किशोर और आरसीपी सिंह अपनी पार्टी के साथ एनडीए के लिए परेशानी का सबब बन रहे हैं। चार विधानसभा उपचुनाव में प्रशांत किशोर ने उम्मीदवार भी दिए है।

आरसीपी सिंह की बात करें तो वे चिराग मॉडल के रूप में उभरते हुए दिख रहे हैं। उन्होंने अपनी पार्टी की घोषणा कर दी है। छठ पर्व के बाद वे काफी एक्टिव दिखेंगे। चार सीटों के उपचुनाव के दौरान भी लव-कुश वोट बैंक पर असर डालेंगे।’

इन लोगों से नीतीश कुमार को फर्क नहीं पड़ताः जेडीयू प्रवक्ता

जेडीयू के प्रदेश प्रवक्ता नीरज कुमार कहते हैं कि ‘नीतीश कुमार का राजनीतिक इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि उनकी कार्यशैली की स्वीकार्यता राष्ट्रीय राजनीति में रही है।

स्वाभाविक है राजनीति के कालचक्र में बहुत लोग नीतीश कुमार को छोड़ते चले गए, लेकिन नीतीश कुमार की स्वीकार्यता बरकरार रही। जिन लोगों ने छोड़ा उन लोगों ने फिर से नीतीश कुमार की नीतियों का भी समर्थन किया और उसे स्वीकार भी।

‘ऐसे मुद्दों का कोई अंतर नीतीश कुमार की सेहत पर नहीं पड़ता। जो बदहाल बिहार, खूनी बिहार, नरसंहार का बिहार था, आज अगर बदलता बिहार किसी को उम्मीद भरी निगाहों से देखता है तो वह नीतीश कुमार ही हैं।’



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