HomeबॉलीवुडRiddhi Tiwari plays Mandodari in mytho drama 'Ishwar' | माइथो ड्रामा ‘ईश्वर’...

Riddhi Tiwari plays Mandodari in mytho drama ‘Ishwar’ | माइथो ड्रामा ‘ईश्वर’ में मंदोदरी बनीं रिधिमा तिवारी: बोलीं-पुनीत इस्सर जैसे थिएटर धुरंधरों के साथ काम किया, अब यह मंच कभी नहीं छोड़ूंगी


17 मिनट पहलेलेखक: इंद्रेश गुप्ता

  • कॉपी लिंक

‘बेगम जान’ जैसी फिल्म, टीवी शोज “क्राइम पेट्रोल’, ‘ससुराल गेंदा फूल’, ‘दो दिल एक जान’,‘गुलाम’, ‘दिव्य दृष्टि’ और सीरीज ‘तुझपे मैं फिदा’ में इंस्पेक्टर की भूमिका के बाद… रिधिमा तिवारी इन दिनों पुनीत इस्सर के साथ एक थिएटर माइथो ड्रामा ‘ईश्वर’ को लेकर चर्चा में हैं। उनसे थिएटर के अनुभव और ड्रामा में मंदोदरी के किरदार समेत अन्य पहलुओं पर विस्तार से हुई बातचीत…

थिएटर शो ‘ईश्वर’ के बारे में बताएं और इसमें आपका क्या रोल था?

यह एक हिंदी महानाटक है जिसका टाइटल है ‘ईश्वर’। इस शो का पॉइंट ऑफ व्यू रावण का है, जो कि बहुत ही अनोखा है। मैंने पहले कभी ऐसा इलस्ट्रेशन नहीं देखा जहां हर किरदार को अपना पहलू रखने का मौका मिला हो। इस नाटक में मैंने मंदोदरी का किरदार निभाया है। बचपन से मैंने रामायण के कई वर्जन देखे हैं लेकिन कभी भी मंदोदरी को इस तरह से जानने का मौका नहीं मिला।

इस प्ले के ज़रिए मुझे मंदोदरी को और ज्यादा समझने का मौका मिला। मुझे ये बातें पता चलीं कि वो रावण से भी ज्यादा इंटेलिजेंट थीं, या कि वो शतरंज में रावण को हरा देती थीं। मंदोदरी की इस बुलंद भूमिका को पहली बार अतुल सत्य कौशिक जी ने ईश्वर महानाटक में प्रस्तुत किया है। मेरा सौभाग्य है कि उन्होंने मुझे इस रोल के लिए चुना।

अतुल सत्य कौशिक के साथ जुड़ना और थिएटर में आना कैसा रहा?

अतुल सत्य कौशिक जी से पहले भी मुझे कई बार थिएटर से जुड़ने के मौके मिले, जब मैं अलग-अलग लोगों के साथ मंच पर आ सकती थी। लेकिन कहते हैं ना, “होइहि सोइ जो राम रचि राखा” — वही होता है जो भगवान राम ने हमारे लिए पहले से तय कर रखा होता है। 2024 मेरे लिए एक अहम मोड़ बनकर आया, जब ‘ईश्वर’ नाटक के ज़रिए राम नाम से गहरा जुड़ाव हुआ। इससे पहले भी थिएटर से जुड़ने के मौके मिले, लेकिन अतुल सत्य कौशिक जी ने जो विश्वास मुझ पर जताया, वो खास था।

मंच पर अनुभवी कलाकार पुनीत जी जैसे दिग्गज के सामने परफॉर्म करना बड़ी बात थी। अनुभव होने के बावजूद लाइव ऑडियंस और पूरी स्क्रिप्ट बोलने में संकोच था, इसलिए मैंने खुद कहा कि मुझे सबसे कम लाइन वाला किरदार दे दीजिए, पर सबने, खासतौर पर अतुल सर ने, मुझ पर मुझसे ज्यादा विश्वास किया।

मंदोदरी के किरदार के रूप में आपके अनुभव कैसे रहे, खासकर डायलॉग को लेकर?

“मंदोदरी’ एक साहसी, संयमी और मौन विद्रोह की प्रतीक है। रावण की पत्नी होते हुए भी उसने लंका को बचाने और उसे सही राह दिखाने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो पाई। उसके लिए धर्म का साथ देना या पति को समझाना, दोनों ही कठिन फैसले थे। रावण, जो ताकतवर राजा था, मंदोदरी के सामने भी एक आंतरिक युद्ध लड़ रहा था। इस नए हिंदी महानाटक को अतुल सत्य कौशिक जी ने बेहद खूबसूरती से काव्यात्मक रूप में रचा है। डायलॉग में लय है, भाव हैं, और हर पंक्ति सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

तालियों से गूंजता ऑडिटोरियम मेरे लिए एक सपना जैसा है, जिसे मैं जी रही हूं। इस नाटक के कारण मैं फिर से हिंदी में लिखने लगी—जो मैं लगभग भूल चुकी थी। इतने वर्षों बाद डायलॉग्स को फिर से हिंदी में हाथ से लिखना मेरे लिए जैसे बचपन की वापसी जैसा था—और यह सब अतुल सर की वजह से संभव हो पाया।

अतुल सत्य कौशिक जी के बारे में आपके क्या विचार हैं?

अतुल सत्य कौशिक सर थिएटर वर्ल्ड के संजय लीला भंसाली हैं। चाहे आउटफिट हो, लाइटिंग, किरदारों का लुक या म्यूजिक—हर चीज़ में उनका विज़न साफ झलकता है। पहली बार लाइव सिंगिंग, डांसिंग और पपेट्स जैसे रिस्क लिए गए, जिन्हें एक लय में प्रस्तुत करना आसान नहीं था लेकिन अतुल सर की प्रिसीजन और कल्पनाशीलता से ये संभव हुआ।

माइथोलॉजी को इतनी समृद्धता और खूबसूरती से पेश करना सबके बस की बात नहीं। भाषा, लेखन और भाव—सब कुछ इतना सधा हुआ था कि हमें बस शब्दों को सही इमोशन और पॉज़ के साथ बोलना था। इस दो-ढाई महीने की मेहनत, रिहर्सल और साथ बिताए समय ने हमें एक परिवार बना दिया है। अब हम एक-दूसरे से दूर रहना भी मुश्किल महसूस करते हैं।

थिएटर में आपका यह पहला अनुभव कैसा रहा और इससे आपने क्या सीखा?

थिएटर में मेरी शुरुआत शून्य से हुई, लेकिन जब अतुल सर कहते हैं, “He is proud of me,” तो लगता है मेरी मेहनत रंग लाई। मैंने उन मंच के दिग्गजों के साथ परफॉर्म किया जिनकी आवाज़, डिक्शन और अनुशासन प्रेरणादायक हैं। खासकर पुनीत जी के सामने खड़े होकर उनकी आवाज़ के साथ तालमेल बिठाना मेरे लिए किसी आशीर्वाद से कम नहीं था। मंदोदरी का इमोशनल ग्राफ एक नया अनुभव है—एक ऐसी पत्नी की पीड़ा, जिसे उसके पति के कर्मों से असहमति है, पर जिसे समझने की कोशिश कभी नहीं की गई। रामायण में हमेशा सीता की पीड़ा दिखाई जाती है, लेकिन मंदोदरी क्या सोचती थी? क्या वो युद्ध के पक्ष में थी? क्या उसने रावण को सही-गलत समझाने की कोशिश की? इस अंतर्द्वंद को मंच पर जीना मेरे लिए बेहद खास और आनंददायक रहा।

थिएटर अनुभव को आगे अपने टीवी, वेब सीरीज या फिल्म के काम में कैसे इस्तेमाल करेंगी?

आप एक-दूसरे को इसमें कंपैरिजन नहीं कर सकते। थिएटर एक अलग माध्यम है जहां आपकी आवाज़, आपका रिएक्शन, आपके इमोशन आपको ऑडियंस तक प्रोजेक्ट करना है। ओटीटी एक ऐसा माध्यम है जहां पर रियलिज्म तो है लेकिन आपको पहुंचाना नहीं है क्योंकि कैमरा आपके ऊपर है, तो उसमें जो प्रोजेक्शन है वो कम हो जाता है। यहां मैंने जो सीखा है, वो है अनुशासन, संवाद की मर्यादा और हर पल सजग रहना। थिएटर में लाइव ऑडियंस का जो एक चस्का लग गया है, उसको मैच-अप करना बहुत मुश्किल है। थिएटर हमें अलर्ट बनाता है, जमीन से जोड़े रखता है। यह हमें हम्बल बनाता है, सक्सेस को सिर पर चढ़ने नहीं देता है।

जब आपको कोई नया किरदार ऑफर होता है, तो सबसे पहले आपके दिमाग में क्या आता है?

जब भी कोई नया किरदार आता है, मैं पहले तो पूरी कहानी सुनती हूं और वो किरदार उस स्टोरी को कैसे फॉरवर्ड डायरेक्शन में लेकर जा रहा है, वो मेरे लिए बहुत ज़रूरी है कि उसका उस स्टोरी में ग्राफ क्या है, उसके शेड्स क्या हैं, या उसकी अगर बैक स्टोरी नहीं है, तो उसकी बैक स्टोरी क्या हो सकती है। मैं उस किरदार या इंसान के एक्जिस्टेंस और उसका ‘क्यों’ समझती हूं कि ये क्या कर रहा है, क्यों कर रहा है? उसका ‘क्या और क्यों’ बहुत जरूरी है।

रिधिमा का ‘मैं’ और उस किरदार का ‘मैं’ किस तरह से मर्ज हो रहा है, अपने पुराने अनुभवों और अन्य पहलुओं को मैं देखती हूं। बाकी अपने आप को चैलेंज करना अच्छा लगता है मुझे। करियर में अभी बहुत कुछ है एक्सप्लोर करने को!

आप अपनी पर्सनल लाइफ और वर्क को कैसे बैलेंस करती हैं?

ये मेरे लिए बहुत आसान हो जाता है क्योंकि मेरे जो पार्टनर हैं, मेरे जो हसबैंड हैं, वो एक्टर हैं और बहुत खूबसूरती से वो इस चीज़ को हम दोनों कर लेते हैं। जब वो देखते हैं कि मुझ पर थोड़ा ज्यादा पड़ रहा है या मुझे कोई मौका मिला है, तो वो बिल्कुल मुझे फ्री कर देते हैं। इन 9 शो के दौरान उन्होंने इतना सपोर्ट किया है, जैसे वो मैं नहीं, वो परफॉर्म कर रहे हों। वो जानते हैं मैं बतौर कलाकार कितनी भूखी हूं, कितनी पैशनेट हूं। वो भी इक्वली डिसिप्लिन और पैशनेट हैं, तो जब उनका कुछ प्रोजेक्ट शुरू होता है तो मैं उनको एकदम बेफिक्र कर देती हूं कि अब आप जाइए, अब आप भूल जाइए घर को, अब मैं संभालूंगी।

थिएटर में आपके आगामी शो क्या हैं?

अभी तो शुरुआत है ना। अभी जैसे 21 और 22 (जून) को हम वापस दिल्ली जा रहे हैं, कमानी ऑडिटोरियम में, इसी प्ले ‘ईश्वर’ के लिए। मैं अब आजीवन थिएटर से जुड़े रहना चाहती हूं क्योंकि यहां पर ऐसा लगा जैसे मेरी घर वापसी हो। मैं बाकी सारी चीजें करूंगी लेकिन थिएटर नहीं छोड़ूंगी। मुझे ऐसा लगा कि यार, मैं इतने साल क्यों, मतलब क्यों दूर थी मैं? ये तो बड़ा घर जैसा है। मुझे ऐसा लगा कि जैसे 14 साल के वनवास के बाद आई हूं।

खबरें और भी हैं…



Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version