दुख-सुख के भागीदार के तौर पर भट्टी समस्त ऐसे काम करते हैं जो बुजुर्ग बच्चों की अनुपस्थिति के चलते खुद नहीं कर सकते हैं। भट्टी बताते हैं कि साल 1993 में चीयरिंग ग्रुप का गठन किया था, जिसका मकसद ही उनके दुख-सुख में शामिल होकर उन्हें खुशी प्रदान करना ही
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7-8 दोस्तों के साथ शुरू यह ग्रुप कब काफिला बन गया पता नहीं चला। साल 2010 में इस ग्रुप का नाम बदलकर अमृतसर चीयरिंग सोसायटी कर दिया गया है। सक्रिय सदस्यों की संख्या भी बढ़कर 35 से ज्यादा हो गई है।
भट्टी ने बताया कि अब तो कई अकेले वृद्ध खुद ही उनके साथ अच्छा समय व्यतीत करने के लिए उन्हें खुद ही फोन कर देते हैं, वह भी किसी का दिल नहीं दुखाते तथा अपनी व्यस्तताओं को छोड़कर उनके चेहरों पर कुछ लम्हों पर खुशी लाने के लिए उनकी खुशी में शामिल होते हो जाते हैं।
भट्टी ने बताया कि अब उनकी सोसायटी के सदस्य राजीव जोशी व अन्य भी उनका अनुसरण करते हुए ऐसे दोस्तों के दुख-सुख में शामिल होते हैं। गुरमीत लूथरा | अमृतसर पर्यावरण प्रेमी प्रकाश भट्टी 32 साल से उदास चेहरों पर मुस्कराहट लाने में जुटे हुए हैं। भट्टी 55 ऐसे बुजुर्गों का अकेलापन दूर करने में जुटे हैं जिनके बच्चे देश के अन्य राज्यों और विदेशों में जाकर जॉब कर रहे हैं।
कुछ बुजुर्गों के बच्चे कनाडा, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे मुल्कों में जाकर बस गए हैं। प्रकाश भट्टी बच्चों के बिना रह रहे बुजुर्गों के चेहरों पर खुशी की एक झलक देखने के लिए उनके घरों में जाकर योजनाबद्ध तरीके से साथियों के साथ केक लेजाकर न सिर्फ सरप्राइज जन्म दिन-विवाह की वर्षगांठ मनाते हैं बल्कि उनके दुख-सुख में भी भागीदार बनते हैं।
अगर कोई वृद्ध नगर निगम कार्यालय में जाकर बिजली-पानी, सीवरेज का बिल भरने में असमर्थ है तो वह खुद अथवा अपनी टीम के किसी भी सदस्य के साथ जाकर उनका बिल भरकर आते हैं, किसी को राशन लाने अथवा कोई अन्य काम करवाना हो तो वह भी भट्टी मैनेज करते हैं। भट्टी बताते हैं।
अमृतसर चीयरिंग सोसायटी के 35 से ज्यादा सदस्य तथा अकेले रह रहे 55 बुजुर्ग सोशल मीडिया के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उन्होंने फेसबुक और व्हाट्सऐप ग्रुप भी बना रखा है, जिसके माध्यम से भी सभी 24 घंटे एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं। अचानक किसी की तबीयत खराब हो जाए, दवाई की जरुरत हो या कोई अन्य काम, एक मैसेज मिलते ही कोई न कोई उस अकेले वृद्ध के घर अविलंब पहुंच जाता है।