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घर नहीं, अब स्टेटस सिंबल है ‘प्रॉपर्टी: IIA NATCON 2025 का समापन: आर्किटेक्ट्स का मंत्र- नदियों और जंगलों को बचाते हुए करें शहरों का विकास – Indore News


आर्किटेक्चरल कॉन्फ्रेंस IIA NATCON 2025 के अंतिम दिन चार टेक्निकल सेशन आयोजित किए।

इंदौर में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ आर्किटेक्ट्स (IIA) एमपी चैप्टर द्वारा आयोजित देश की सबसे बड़ी आर्किटेक्चरल कॉन्फ्रेंस IIA NATCON 2025 के अंतिम दिन चार टेक्निकल सेशन आयोजित किए गए। इन सत्रों में लग्जरी होम्स से लेकर इंस्टीट्यूशनल आर्किटेक्चर और अर्बन

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IIA के वाइस प्रेसिडेंट, आर्किटेक्ट जितेंद्र मेहता ने बताया

इस कॉन्फ्रेंस में देश-विदेश से आए ख्यातनाम आर्किटेक्ट्स द्वारा सुझाए गए सस्टेनेबल डेवलपमेंट मॉडल्स को संकलित कर एक ड्राफ्ट तैयार किया जाएगा, जिसे सरकार के साथ साझा किया जाएगा। उद्देश्य यह है कि शहरी नियोजन में इन सुझावों का उपयोग हो सके।

पर्यावरण-संरक्षण को प्राथमिकता

RIBA और UNESCO जैसे अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित आर्किटेक्ट अनुपमा कुंडू ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि हमें पारंपरिक निर्माण सामग्री जैसे कंक्रीट और स्टील की जगह स्थानीय व पर्यावरण-संवेदनशील विकल्पों को अपनाना होगा। उन्होंने अपने रिसर्च व प्रोजेक्ट्स के माध्यम से यह दर्शाया कि कैसे सस्टेनेबल और लो-बजट आर्किटेक्चर संभव है, यदि हम जागरूक होकर नवाचार की दिशा में सोचें।

डेनमार्क के आर्किटेक्ट काई-उबे बर्गमैन, जो 40 से अधिक देशों में कार्य कर चुके हैं, ने भूटान में चल रहे अपने प्रोजेक्ट्स के बारे में बताया। उन्होंने दिखाया कि किस तरह नदियों, पहाड़ों, जंगलों और जैव विविधता को संरक्षित रखते हुए वहां नए शहरों और एयरपोर्ट्स का निर्माण किया जा रहा है।

घर से शहर तक की प्लानिंग

IIA इंदौर सेंटर के चेयरमैन, आर्किटेक्ट नितिन घुले ने बताया कि इस बार कॉन्फ्रेंस की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि इसमें घर की डिजाइनिंग से लेकर पूरे शहर की प्लानिंग तक पर प्रेजेंटेशन हुए। इसके साथ ही AI और कंप्यूटर डिजाइनिंग जैसे आधुनिक विषयों पर भी विशेषज्ञों ने विचार साझा किए।

नितिन घुले, चेयरमैन (आईआईए इंदौर सेंटर)

स्थानीय मटेरियल से सस्टनेबिलिटी की दिशा में कदम

यूरोप, मिडिल ईस्ट और अमेरिका में कई बड़े प्रोजेक्ट्स का अनुभव रखने वाले आर्किटेक्ट संतोष शनमुगम और राजा कृष्णन ने अपने चार कम्युनिटी प्रोजेक्ट्स प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि किस तरह राजकोट और त्रिची जैसे क्षेत्रों में उन्होंने स्थानीय जलवायु और संसाधनों के अनुसार निर्माण किया।

राजकोट के एक स्कूल प्रोजेक्ट में उन्होंने ‘बेल स्टोन’ जैसी पारंपरिक सामग्री का इस्तेमाल कर जालीदार बाउंड्री वॉल बनाई, जिससे प्राकृतिक वेंटिलेशन सुनिश्चित हुआ। वहीं त्रिची के एक स्कूल में उन्होंने छत में ग्लास का उपयोग कर पूरे परिसर में नेचुरल लाइट की व्यवस्था की।

घर नहीं, अब “प्रॉपर्टी” हो गई है प्राथमिकता

जर्मनी में दो दशकों से काम कर रहे अवॉर्ड विनिंग आर्किटेक्ट वीरेंद्र वखलू ने कहा कि अब लोगों की सोच “मेरा घर” से बदलकर “मेरी प्रॉपर्टी” पर आ चुकी है। घर अब केवल निवास नहीं, बल्कि एक स्टेटस सिंबल बन चुके हैं। उन्होंने बताया कि आज लग्जरी और सस्टनेबिलिटी को एक साथ लाने वाले बिल्डिंग मेटेरियल्स पर तेजी से काम हो रहा है। यूरोपियन देशों में इनका उपयोग बढ़ा है और भारत में भी लोग इनकी ओर आकर्षित हो रहे हैं।



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