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चंबल में दुर्लभ प्रजाति के कछुओं का संरक्षण: अस्थायी हैचरी में लगाकर बालू सहेज रहे अंडे; मई-जून में निकलेंगे बच्चे – Bhind News


भिंड में चंबल नदी के किनारे बरही से अटेर तक कछुओं की नेस्टिंग (अंडे देने की प्रक्रिया) शुरू हो गई है। वन्यजीव संरक्षण दल दुर्लभ प्रजाति के कछुए के अंडे एकत्रित करने के लिए अस्थायी हैचरी लगा रहे है।

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वे चंबल की बालू में इन अंडों संरक्षित कर कर रहे है। यहां से निर्धारित टाइम के बाद स्थायी हैचरी में लाएंगे। जहां गर्मी के महीने मई और जून में इन अंडों से छोटे-छोटे कछुए बाहर निकलेंगे, जिन्हें सुरक्षित माहौल में पालन पोषण किया जाएगा।

बता दें कि, वन विभाग साल, बटागुर, गुदरी और मोरपंखी जैसी विलुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण पर विशेष ध्यान दे रहा है। इनमें से कई प्रजातियां केवल चंबल क्षेत्र में ही पाई जाती हैं। अंडों का सबसे अधिक संकलन अंजनपुरा, इकोनेक सांकरी और कनकपुरा से किया गया है। फरवरी के अंत व मार्च के प्रारंभ होते हुए कछुए की नेस्टिंग शुरू हो जाती है। अब तक बढ़ी संख्या में दुर्लभ प्रजाति के इन कछुए के अंडे सहेजने का काम किया जा चुका है।

कछुए के अंडों को सुरक्षित रेत में रखा गया।

रेत में सुरक्षित रखे गए अंडे

ये दुर्लभ प्रजाति के कछुए का संरक्षण नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत किए जा रहे हैं। ये दुर्लभ प्रजाति के कछुए नदियों में मृत जानवरों की बॉडी का भक्षण कर सफाई का काम करते है। गंगा सफाई अभियान के दौरान इस कछुए की मांग बढ़ी है। ये कछुए की बढ़ी तादाद भिंड क्षेत्र में बहने वाली चंबल नदी में है जिनका संरक्षण पर केंद्र सरकार कर रही है।

कछुओं के अंडों को अस्थायी हैचरी में डेढ़ फीट गहराई तक रेत में दबाया जा रहा है। जब गर्मी अपने चरम पर होगी, तब इन अंडों से बच्चे बाहर निकलेंगे। इस दौरान वन्यजीव कर्मचारी अंडों को एकत्र कर सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं।

चंबल नदी में कछुओं की 8 प्रजातियां

चंबल नदी में बटागुर और साल जैसी दुर्लभ प्रजातियों के संरक्षण के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। बरही में एक कछुआ संरक्षण केंद्र स्थापित किया गया है, जहां विभिन्न घाटों पर अस्थायी हैचरियां बनाई गई हैं। यहां से अंडों को संरक्षित कर चार महीने बाद सुरक्षित माहौल में छोड़ा जाता है।

संरक्षण के प्रयासों की मौजूदा स्थिति

  • पिछले साल – 1145 अंडे संरक्षित किए गए थे
  • वर्तमान स्थिति- जिनमें से 1020 कछुए जीवित।
  • अब तक – 350 अंडे एकत्र किए जा चुके हैं।
  • संरक्षित कछुए – 145 बच्चों को विशेष देखरेख में रखा गया है।
  • आगे का प्लान – दो साल से अधिक उम्र के कछुए नदियों में ​छोड़े जाएगा

फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के एसडीओ भूरा रायकवार ने बताया-

चंबल में कछुए की नेस्टिंग शुरू हो जाती है, उनके संरक्षण पर काम किया जा रहा है। पहले अस्थाई हैचरी में अंडे कलेक्ट किए जाते है फिर स्थायी में लाकर पालन पोषण किया जाता है।



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