Homeराज्य-शहरहिमाचल में विकास का बजट कम होना खतरे की घंटी: पूंजीगत-निवेश...

हिमाचल में विकास का बजट कम होना खतरे की घंटी: पूंजीगत-निवेश को 100 में से 24 रुपए; सैलरी-पेंशन, लोन की रीपेमेंट-ब्याज से दबाव में अर्थव्यस्था – Shimla News


हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू

हिमाचल प्रदेश में कैपिटल एक्सपेंडीचर (पूंजीगत व्यय) हर साल घटता जा रहा है। सैलरी, पेंशन, कर्ज, मुफ्त रेवड़ियों और चुनावी गारंटियों के दबाव में विकास कार्य का बजट हर साल बढ़ने के बजाय कम हो जा रहा है। अगले फाइनेंशियल ईयर यानी 2025-26 के दौरान पूंजीगत नि

.

साल 2022-23 में हिमाचल 100 रुपए में से 29 रुपए विकास कार्य पर खर्च कर रहा था। साल 2023-24 में भी 29 रुपए और 2024-25 में 28 रुपए खर्च कर रहा था। वहीं 2018-19 में लगभग 39 रुपए विकास कार्य पर खर्च हो रहे थे।

आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में भी 7.54% कटौती का उल्लेख

करंट फाइनेंशियल ईयर की विधानसभा के पटल पर डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री द्वारा पांच दिन पहले पेश आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट भी पूंजीगत निवेश में कटौती की पुष्टि करती है। इस रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 में पूंजीगत व्यय 2023-24 की तुलना में 7.54 प्रतिशत हुआ है।

यानी 2024-25 के दौरान सड़क, स्कूल, रेल, भवन निर्माण इत्यादि के काम के बजट में कटौती हुई है। साल 2024-25 के दौरान विकास कार्यों पर 6 हजार 270 करोड़ रुपए खर्च किए गए, जबकि 2023-24 में 6 हजार 781 करोड़ खर्च किए गए थे। अगले वित्त वर्ष में पूंजीगत निवेश 5500 करोड़ तक गिरने का अनुमान है।

सुधारात्मक कदम उठाने जरूरी

जानकारों की माने तो सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए और खर्चे कम नहीं की गई तो आने वाले समय में सरकार केवल कर्मचारियों की सैलरी और पेंशनर की पेंशन देने तक सीमित रह जाएगी। विकास कार्य के लिए सरकार के पास पैसे नहीं होंगे।

यह स्थिति कर्ज लेकर घी पीने की वजह से

प्रदेश में यह स्थिति कर्ज लेने की वजह से हुई है। पूर्व की सरकारों ने खर्च पर ही ध्यान दिया। आय के स्त्रोत बढ़ाने के प्रयास नहीं किए। खासकर पिछले सात-आठ सालों में अंधाधुंध कर्ज लिया गया। आलम यह है कि पुराने कर्ज को लौटाने के लिए भी नया कर्ज लेना पड़ रहा है।

46 साल में जितना कर्ज लिया, जयराम-सुक्खू ने उससे ज्यादा 7 साल में लिया

हिमाचल ने जितना कर्ज बीते 46 सालों में नहीं लिया था, पूर्व की जयराम नेतृत्व वाली बीजेपी और मौजूदा सुक्खू सरकार ने उससे ज्यादा कर्ज इन 7 सालों में ले लिया है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2017 में जब वीरभद्र सरकार थी तो उस दौरान लगभग 47 हजार करोड़ का कर्ज राज्य पर था। आज एक लाख 3 हजार करोड़ के आसपास कर्ज हो चुका है। इसका ब्याज और मूलधन चुकाने की वजह से अर्थव्यवस्था दबाव में आ गई है। लगभग 10 हजार करोड़ की कर्मचारी पेंशनर की देनदारी बकाया है।

इन वजह से दबाव में अर्थव्यवस्था

राज्य की अर्थव्यवस्था सैलरी और पेंशन के बोझ के कारण दबाव में रही है। रही सही कसर सरकार की मुफ्त रेवड़ियां पूरी कर रही है। मुफ्त बिजली, पूर्व में मुफ्त पानी, सब्सिडाइज्ड बस यात्रा, महिलाओं को 1500 रुपए, ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली जैसे योजनाओं से सरकारी कोष पर दबाव बड़ा है।

इसके विपरीत केंद्र से मिलने वाली मदद हर साल कम होती जा रही है। साल 2020-21 में हिमाचल को केंद्र से 10 हजार करोड़ से ज्यादा की रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट मिल रही थी। अगले साल यह कम होकर 3257 करोड़ रुपए रह जाएगी।



Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version