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ट्रैफिक व्यवस्था को कंट्रोल करने के लिए रस्सी खींचकर बनाया डिवाइडर – Hazaribagh News



हजारीबाग शहर में इन दिनों पुलिस विभाग द्वारा ट्रैफिक व्यवस्था को दुरुस्त करने के प्रयास देखे जा रहे हैं। इसी प्रयास का हिस्सा है रस्सी से खींचकर बनाया गया डिवाइडर। इंद्रपुरी और झंडा चौक समेत कई ऐसे चौक हैं, जहां पर शहर के ट्रैफिक व्यवस्था को बेहतर बन

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हजारीबाग मेन रोड में बना अधूरा और पूरी तरह से टूटा-फूटा डिवाइडर सड़क जाम का बड़ा कारण है। यह डिवाइडर इंद्रपुरी चौक से झंडा चौक तक ही बना हुआ है। जबकि इसका निर्माण खिरगांव चौक तक होना था। झंडा चौक में शेष तीन ओर डिवाइडर है ही नहीं।

मेन रोड में जब भीड़ जुटती है तो इस आधे अधूरे डिवाइडर के कारण जाम लग जाता है। झंडा चौक के दुकानदारों का कहना है कि इंद्रपुरी चौक से रेलवे स्टेशन तक डिवाइडर बने। डिवाइड नहीं बनने से जाम के कारण झंडा चौक की स्थिति बदतर हो जाती है। बता दें कि मेन रोड का डिवाइडर ढाई दशक से अधूरा और क्षतिग्रस्त है। इतना ही नहीं झंडा चौक पर जिस चौराहे का नव निर्माण किया गया था वह धीरे-धीरे ध्वस्त हो चुका है। लाइटें खराब हो गई है। टाइल्स पूरी तरह से उखड़ चुके है। चौराहे पर बने गुंबज का कोई अता पता नहीं।

एक तो आधा अधूरा और ध्वस्त डिवाइडर दूसरी और बदहाल चौक, यह ना सिर्फ़ शहर की शोभा को विखंडित करता है बल्कि रोज आने जाने वाले लोगों के लिए जाम का कारण बनता है। लोग कहते है कि डिवाइडर को नए सिरे से बनाया जाए और इंद्रपुरी से लेकर के रेलवे स्टेशन तक इसका पूरा निर्माण किया जाना चाहिए । तभी जाकर कुछ हद तक जाम से मुक्ति मिल पाएगी और रस्सी खींचकर डिवाइडर बनाने की मजबूरी भी नहीं खड़ी होगी।

आवाज उठाने वाले की कोई सुनता नहीं आश्चर्य की बात यह है कि तमाम आवाज को प्रशासन ने हमेशा से दरकिनार कर दिया है। लोग इस कुव्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाते हैं लेकिन सुनने वाला कोई नहीं है। इस संबंध में एक और बात बहुत ही महत्वपूर्ण है की पिछले दो ढाई वर्षों से लगातार यह बात सामने आ रही है कि विभिन्न चौक चौराहों पर ट्रैफिक लाइट की व्यवस्था की जाएगी। लेकिन ये प्रस्तावित ट्रैफिक लाइट कभी भी खबरों से बाहर नहीं आई खबरों तक है सिमटी हुई है।

और ना ही डिवाइडर को लेकर कभी भी कोई ठोस पहल किसी भी स्तर पर देखा गया है। हजारीबाग को बड़ी राजनीतिक हस्तियों की भी कर्मभूमि माना जाता रहा है । लेकिन सड़कों और चौक चौराहों की बदहाल स्थिति को देखकर एक अलग ही कहानी उभर कर सामने आती है वो है हालत को नजरअंदाज करते रहना।ऐसे में ढाई दशक का इंतजार अभी और लंबा खींच सकता है।



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