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डॉ. अरुणा कुमार की डीएमई नियुक्ति पर विवाद: जब-जब जिम्मेदारी मिली, तब-तब सामने आया विरोध – Bhopal News


डॉ. अरुणा कुमार को डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन (डीएमई) पद की जिम्मेदारी दी गई है।

गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) समेत प्रदेशभर के मेडिकल संस्थानों में इन दिनों एक ही नाम चर्चा में है, डॉ. अरुणा कुमार। वजह है हाल ही में जारी हुआ आदेश, जिसमें उन्हें डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन (डीएमई) पद की जिम्मेदारी दी गई है। गुरुवार शाम जैसे ही यह आदेश

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जूनियर डॉक्टर एसोसिएशन (जूडा) से लेकर मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन (एमटीए) तक इस फैसले के खिलाफ एकजुट हो गए हैं। डॉ. अरुणा कुमार के प्रशासनिक कार्यकाल को लेकर पहले भी विवाद होते रहे हैं। हर बार जब उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी दी गई, उसी के साथ विरोध भी सामने आया।

जब-जब जिम्मेदारी मिली, विरोध भी हुआ

  • साल 2000 में डॉ. कुमार को सुल्तानिया अस्पताल में स्त्री रोग विभाग की प्रमुख बनाया गया। सूत्रों के अनुसार, उनके कार्यकाल में 25 से ज्यादा विभाग से जुड़े स्टाफ ने नौकरी छोड़ी।
  • साल 2017 में नर्सिंग स्टाफ ने भी उनके खिलाफ प्रदर्शन किया था।
  • साल 2018 में वह पहली बार जीएमसी की डीन बनीं, लेकिन साल 2019 में छात्रों के विरोध के चलते उन्हें पद से हटाया गया। तत्कालीन कलेक्टर ने अपनी जांच रिपोर्ट में उन्हें छात्रों के प्रति असंवेदनशील बताया था।
  • साल 2020 में दोबारा डीन बनीं, लेकिन मेडिकल टीचर्स और स्टाफ से टकराव के चलते उन्हें फिर हटाना पड़ा।
  • साल 2023 में बाला सरस्वती आत्महत्या मामले के बाद उन्हें विभागाध्यक्ष पद से हटाकर डीएमई में स्थानांतरित किया गया।
  • जनवरी 2024 में जब उन्हें स्त्री रोग विभाग में वापस भेजने का आदेश जारी हुआ, तो जूडा ने काम बंद कर हड़ताल कर दी। मामला बढ़ता देख उपमुख्यमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा और आदेश निरस्त हुआ।
  • मई साल 2025 यानी अब जब उन्हें प्रदेश की मेडिकल शिक्षा प्रणाली की सबसे ऊंची जिम्मेदारी डीएमई पद सौंप दी गई है तो एक बार फिर जूडा से लेकर एमटीए विरोध में आ गया है।

यही वह मामला था, जिसने डॉ. कुमार को जीएमसी से हटाया था

31 जुलाई 2023 को गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) में स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की थर्ड ईयर पीजी स्टूडेंट बाला सरस्वती ने आत्महत्या कर ली थी। 27 वर्षीय मेडिकल स्टूडेंट ने एनेस्थीसिया इंजेक्शन का ओवरडोज लेकर जान दी थी। घटनास्थल से मिले सुसाइड नोट में उसने लिखा था, ‘मेरी थीसिस कभी पूरी नहीं होगी, भले ही मैं अपनी आत्मा, खून, सबकुछ दे दूं।’

इस घटना के बाद जीएमसी परिसर में हड़कंप मच गया था। जूनियर डॉक्टर एसोसिएशन (जूडा) ने इस आत्महत्या के लिए डॉ. अरुणा कुमार को मुख्य रूप से जिम्मेदार ठहराया और उनके खिलाफ मोर्चा खोलते हुए हड़ताल पर चले गए थे। संगठन ने आरोप लगाया था कि छात्रा को थीसिस सबमिशन को लेकर लगातार मानसिक दबाव और प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा था।

जमकर विरोध के बाद प्रशासन ने स्थिति को संभालने के लिए डॉ. अरुणा कुमार को जीएमसी से हटाकर डायरेक्टोरेट ऑफ मेडिकल एजुकेशन (डीएमई) में स्थानांतरित कर दिया था, जहां से वे अब तक कार्यरत थीं। अब उसी डायरेक्टोरेट में उन्हें डायरेक्टर पद पर पदोन्नत किया गया है, जिससे एक बार फिर विरोध हो रहा है।

बाला सरस्वती सुसाइड केस के बाद स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की समस्त महिला चिकित्सकों ने एमटीए पदाधिकारियों को यह पत्र लिखा था।

शासन के सामने एक बार फिर वही पुरानी स्थिति

  • क्या यह नियुक्ति छात्रों, शिक्षकों और चिकित्सा व्यवस्था के हित में है?
  • विरोध जताने वाले संगठन सरकार से इस आदेश को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो बड़े स्तर पर विरोध और आंदोलन की चेतावनी दी गई है।
  • यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की नियुक्ति नहीं, बल्कि चिकित्सा शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता, जवाबदेही और विश्वास की परीक्षा बन चुका है।



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